अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध – परिचय – पवन-दूतिका

अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध – परिचय – पवन-दूतिका
BoardUP Board
Text bookNCERT
SubjectSahityik Hindi
Class 12th
हिन्दी पद्य-अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध – पवन-दूतिका
Chapter 3
CategoriesSahityik Hindi Class 12th
website Nameupboarmaster.com

संक्षिप्त परिचय

नामअयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
जन्म 1865 ई. में निजामाबाद, उत्तर प्रदेश
माता का नाम श्रीमती रुक्मिणी देवी
पिता का नाम पण्डित भोलासिंह उपाध्याय
शिक्षास्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी,फारसी,
संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञानप्राप्त किया।
कृतियाँकाव्य संग्रह प्रियप्रवास, वैदेही वनवास,
रसकलश (प्रबन्ध काव्य) चोखे चौपदे,
चुभते चौपदे, पद्य-प्रसून, ग्राम-गीत,
कल्पलता (मुक्तक काव्य)। उपन्यासप्रेमकान्ता,
ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिलाफूल। नाटक
प्रद्युम्न विजय, रुक्मिणीपरिणय आदि।
उपलब्धियाँ हिन्दी साहित्य सम्मेलनों के सभापति,कवि
सम्राट, साहित्य वाचस्पति आदिउपाधियों
सहित प्रियप्रवास परमंगलाप्रसाद, पारितोषिका
मृत्यु1947 ई.

जीवन परिचय अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध

द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और लेखक अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 1865 ई. में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में निजामाबाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। स्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। वकालत की शिक्षा पूर्ण कर इन्होंने लगभग 20 वर्ष तक कानूनगो के पद पर कार्य किया, किन्तु इनके जीवन का ध्येय अध्यापन था, इसलिए इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अवैतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया। यहाँ से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् ये आजमगढ़ में रहकर रचना कर्म से जुड़े रहे। इनकी रचना ‘प्रियप्रवास’ पर इन्हें हिन्दी के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया।
1947 ई. में इनका देहावसान हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ

प्रारम्भ में ‘हरिऔध’ जी ब्रजभाषा में काव्य रचना किया करते थे, परन्तु बाद में महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से ये खड़ीबोली हिन्दी में काव्य रचना करने लगे। इन्हें हिन्दी साहित्य के तीन युगों (भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, छायावादी यग) में रचना करने का गौरव प्राप्त है। हरिऔध जी के काव्य में लोकमंगल का स्वर मिलता है।

कृतियाँ

हरिऔध जी की 15 से अधिक लिखी रचनाओं में तीन रचनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-प्रियप्रवास, पारिजात तथा वैदेही वनवास। प्रियप्रवास खड़ीबोली में लिखा गया पहला महाकाव्य है। ‘पारिजात स्फुट गीतों का संकलन है व वैदेही वनवास’ में राम के राज्याभिषेक के बाद सीता के वनवास की करुण कथा का वर्णन है। इनके अतिरिक्त ‘रसकलश’ रीतिकालीन शैली में ब्रजभाषा में रचित ग्रन्थ है। प्रबन्ध काव्यों के अतिरिक्त इनकी मुक्तक कविताओं के अनेक संग्रह-चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, पद्य-प्रसून, ग्राम-गीत, कल्पलता आदि उल्लेखनीय हैं।

नाट्य कृतियाँ प्रद्युम्न विजय, रुक्मिणी परिणय।
उपन्यास प्रेमकान्ता, ठेठ हिन्दी का ठाठ तथा अधखिला फूल।

काव्यगत विशेषताएँ

भाव पक्ष

  1. वर्ण्य विषय की विविधता हरिऔध जी की प्रमुख विशेषता है।
    इनके काव्य में प्राचीन कथानकों में नवीन उदभावनाओं के दर्शन
    होते हैं। इनकी रचनाओं में इनके आराध्य भगवान मात्र न होकर
    जननायक एवं जनसेवक हैं। उन्होंने कृष्ण-राधा, राम-सीता से
    सम्बन्धित विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को लेकर
    उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
  2. वियोग और वात्सल्य वर्णन हरिऔध जी के काव्य में वियोग
    एवं वात्सल्य का वर्णन मिलता है। उन्होंने प्रिय प्रवास में कृष्ण के
    मथुरा गमन तथा उसके बाद ब्रज की दशा का अत्यन्त मार्मिक
    वर्णन किया है। हरिऔध जी ने कृष्ण के वियोग में दुःखी
    सम्पूर्ण ब्रजवासियों का तथा पुत्र वियोग में व्यथित यशोदा का
    करुण चित्र भी प्रस्तुत किया है।
  3. लोक-सेवा की भावना हरिऔध जी ने कृष्ण को ईश्वर के रूप
    में न देखकर आदर्श मानव एवं लोक-सेवक के रूप में अपने ।
    काव्य में चित्रित किया है।
  4. प्रकति-चित्रण हरिऔध जी का प्रकृति-चित्रण सराहनीय है।।
    उन्हें काव्य में जहाँ भी अवसर मिला, उन्होंने प्रकृति का चित्रण ।
    किया है, साथ ही उसे विविध रूपों में भी अपनाया है। हरिऔध जी का प्रकृति-चित्रण सजीव एवं परिस्थितियों के अनुकूल है। प्रकृति प्राणियों के सुख में सुखी एवं दुःख में दु:खी दिखाई देती है। कृष्ण के वियोग में ब्रज के वृक्ष भी रोते हैं-
    फूलों-पत्तों सकल पर हैं वादि-बूंदें लखातीं,
    रोते हैं या विपट सब यों आँसुओं को दिखा के।

कला पक्ष

  1. भाषा भाव, भाषा, शैली, छन्द एवं अलंकारों की दृष्टि से हरिऔध जी की काव्य साधना महान् है। इनकी रचनाओं में कोमलकान्त पदावलीयुक्त ब्रजभाषा (‘रसकलश’) के साथ संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली (‘प्रियप्रवास’, ‘वैदेही वनवास’) तथा मुहावरेदार बोलचाल की खड़ीबोली (‘चोखे चौपदे’, ‘चुभते चौपदे’) के प्रयोग के साथ-साथ सामासिक एवं आलंकारिक शब्दावली का प्रयोग भी मिलता है। इसलिए आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘द्विकलात्मक कला’ में सिद्धहस्त कहा है।
  2. शैली इन्होंने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों का सफल प्रयोग अपने काव्य में किया। इसके अतिरिक्त इनके काव्यों में इतिवृत्तात्मक, मुहावरेदार, संस्कृत-काव्यनिष्ठ, चमत्कारपूर्ण एवं सरल हिन्दी शैलियों का अभिव्यंजना- शिल्प की दृष्टि से सफल प्रयोग मिलता है।
  3. अलंकार एवं छन्द हरिऔध जी ने शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का भरपूर एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके काव्यों में उपमा के अतिरिक्त रूपक, उत्प्रेक्षा, अपहृति, व्यतिरेक, सन्देह, स्मरण, प्रतीप, दृष्टान्त, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का भावोत्कर्षक प्रयोग मिलता है। सवैया, कवित्त, छप्पय, दोहा आदि इनके प्रिय छन्द हैं और इन्होंने इन्द्रवज्रा, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, मालिनी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्बित आदि
    संस्कृत वर्णवृत्तों का भी प्रयोग किया।

हिन्दी साहित्य में स्थान

हरिऔध जी अपने जीवनकाल में ‘कवि सम्राट’, ‘साहित्य वाचस्पति’ आदि उपाधियों से सम्मानित हुए। हरिऔध जी अनेक साहित्यिक सभाओं एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलनों के सभापति भी रहे। इनकी साहित्यिक सेवाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। निःसन्देह ये हिन्दी साहित्य की एक महान विभूति हैं, इसलिए निराला जी ने इन्हें हिन्दी का सार्वभौम । कवि कहा है।

पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या

  1. बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।
    आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
    आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।
    प्रात:वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।
    सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
    धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यो।।
    प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
    क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।

शब्दार्थ खिन्ना -अप्रसन्न; यक -एक; गेह -घर; दृग-युगल -दोनों नेत्र सदन -घर,भवन पुष्प-सद्गन्ध-फूल की खुशबू, सुपवन -हवा; वातयन खिड़की, झरोखा; सन्ताप -दुःख, विपुल-अधिक, दुःखिता-व्यथित; पवन -हवा कलुषित -दूषित;काल -समय क्रूरता -कठोरता।।

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा द्वारा प्रातःकालीन पवन को फटकार लगाने का वर्णन किया गया है। राधा को लगता है कि प्रातः की सुगन्धित वायु उसके दु:ख को और अधिक बढ़ा रही है।

व्याख्या कवि कहता है कि एक दिन जब राधा उदास, खिन्न मन के साथ घर में अकेली बैठी हुई थी और उसकी दोनों आँखों से आँसू बहकर ज़मीन पर गिर रहे थे, तभी प्रातःकालीन सुगन्धित पवन रोशनदानों से होक घर के अन्दर प्रवेश करती है, किन्तु इससे राधा का दु:ख और अधिक बढ़ गया और वह दुःखी होकर पवन को फटकार लगाते हुए बोली कि हे प्रातःकालीन पवन! तू मुझे
और क्यों सता रही है? क्या तू भी समय की कठोरता से दूषित हो गई है? क्या तुझ पर भी समय की क्रूरता का प्रभाव पड़ गया है? कहने का अभिप्राय यह है कि दुःखी राधा को सुगन्धित पवन का झोंका और भी दु:खी कर रहा है। इसे वह पवन की क्रूरता मान रही हैं और पवन से पूछ रही हैं कि आखिर वह क्रूर क्यों हो गई है?

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) राधा की मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण हुआ है।
(ii) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध
छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार अनुप्रास तथा मानवीकरण
गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

  • 2 मेरे प्यार नव जलद से कंज से नेत्रवाले।
    जाके आए न मधुबन से औ न भेजा सँदेसा।।
    मैं रो रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ।
    जा के मेरी सब दु:ख कथा श्याम को तू सुना दे।
    ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।
    शोभावाली सुखद कितनी मंजु कँजें मिलेंगी।
    प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे।
    तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।

शब्दार्थ नव-नया; जलद-बादल; कंज-कमल; मधुबन-ब्रज का एक प्राचीन वन; प्रिय-विरह-प्रेमी से वियोग; बावली-पागल; तज-छोड़कर; अल्प-थोड़ा; मंजु-सुन्दर; कुंजे-लता-झाड़ियों से घिरा क्षेत्र; मृदुल-मधुर, मीठा; लख-जानकर, देखकर।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा के द्वारा पवन को दूतिका मानकर कृष्ण के लिए सन्देश भेजा जा रहा है। वे पवन से मार्ग में पड़ने वाली सुष्मा का वर्णन करते हुए, उसे उससे प्रभावित नहीं होने के लिए कहती हैं।

व्याख्या पवन से अपनी विरह-व्यथा बताती हुई राधा कहती हैं कि नवीन बादल से शोभायमान एवं कमल समान सुन्दर नेत्रों वाले मेरे प्रियतम कृष्ण ब्रज के इस वन (मधुबन) को छोड़कर जाने के पश्चात् फिर यहाँ नहीं आए और न तो उन्होंने मेरे लिए कोई सन्देश ही भेजा। उनसे बिछड़ कर मेरी दशा अत्यन्त दयनीय हो गई है। मैं रोते-रोते पागल हो रही हैं। अतः तुम जाकर मेरे इन दःखों ।
से उन्हें अवगत कराना। राधा पवन से रास्ते में आने वाले विभिन्न प्राकृतिक सौन्दर्य से सचेत रहने के। लिए कहते हुए आगे कहती हैं कि मेरे घर से कुछ ही दूर जाने के बाद तुम्हें। अत्यन्त मनोहारी और सुख प्रदान करने वाली कुंजे मिलेंगी। वहाँ की शीतल छाया।
एवं जल-प्रवाह व पक्षियों के कलरव की मधुर ध्वनियाँ तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगी, किन्तु मेरे दुःख को ध्यान में रखकर तुम वहाँ विश्राम न करने लगना।

काव्य सौन्दर्य

भाव पक्ष
(i) राधा प्रिय विरह से उत्पन्न व्याकुलता के विषय में पवन को बताते हुए उसे उसके सन्देश के शीघ्र अतिशीघ्र प्रिय तक पहुँचाने के लिए कहती हैं।
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता
अलंकार उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, अन्त्यानुप्रास एवं मानवीकरण
गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

  • 3 थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।
    अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली।।
    वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।
    आना जाना इस विपिन से मुह्यमाना न होना।।
    जाते जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
    तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
    धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
    सद्गन्धों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।

शब्दार्थ सरस-मधुर; रव-शब्द, आवाज; धाम-घर, स्थान;
सत्पुष्पवाला- सैकड़ों फूलों वाला; दुम-वृक्ष, पेड़, वृन्दाविपिन-वृन्दावन; मुह्यमाना-मोहित; पथ-रास्ता, मार्ग: क्लान्त-थका हुआ; सन्निकट-अति पास क्लान्तियों- थकावटों; परस-स्पर्श: गात-शरीर; उत्ताप-गर्मी, कष्ट; सद्गन्ध-सुगन्ध, खुशबू; अमित-थके हुए; जन-लोगः हर्षित-प्रसन्न, खुश।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा मथुरा जाने वाली पवन-तिका को मार्ग में मिलने वाले मनोरम स्थलों व दृश्यों से अवगत कराती हुई उसे उनसे मोहित न होने, किन्तु दुखियों के कष्ट दूर करने की सीख देती हैं।

व्याख्या राधा मथुरा जा रही पवन-दूती से कहती हैं कि यहाँ से तनिक आगे जाने पर तुम्ह अत्यन्त रमणीय स्थल वृन्दावन मिलेगा, सैकड़ों पुष्पों वाले उस धाम में पक्षियों की मधुर ध्वनियाँ, तरह-तरह के सुन्दर वृक्ष और लताएँ तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगी, किन्तु आने-जाने के क्रम में तुम उस वन से मोहित मत होना। राधा, दूती से आगे कहती हैं कि मार्ग में तुम्हें कोई थका-हारा व्यक्ति मिल
जाए तो तुम उसके पास चले जाना। फिर धीरे-धीरे उसके शरीर का स्पर्श कर उसके दुःख-सन्ताप को मिटा देना। साथ ही उसके चारों और अपनी सुगन्ध बिखेर कर उस थके व्यक्ति को प्रफुल्लित कर देना।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ राधा का दूसरों के दुःख से दुःखी होने का भाव दर्शाया गया है।
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार पुनरुक्तिप्रकाश तथा अनुप्रास गुण प्रसाद
शब्द शक्ति अभिधा भाव साम्य निम्न पंक्तियों में उपरोक्त पद्यांश से मिलता-जुलता भाव प्रदर्शित किया गया है-
“माना जंगल प्यारा है गहरा है और घना है,
पर हाय! मुझे अपने वादे को पूरा भी करना है।”

  • 4 लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।
    होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।।
    जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।
    होठों की औ कमल-मख की म्लानताएँ मिटाना।।
    कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।
    धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
    जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
    छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।

शब्दार्थ पथिक-मुसाफिर, यात्री; दृष्टि आए-दिखाई दे;
विकृत-वसना-वस्त्र को अस्त-व्यस्त करना अथवा उड़ाना; श्रान्ति-थकान; म्लानता-मलिनता; कृषक ललना-किसान स्त्री; व्योम-आकाश; तप्त-दुःखी, विकल; भूतांगना-स्त्री।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग राधा पवन को दतिका बनाकर कृष्ण के पास भेजते हुए कहती है कि उसे मार्ग में मिले पथिकों का उपकार करते हुए जाने की प्रेरणा देती है। अपने दुःख में भी उन्हें अन्य लोगों के दुःख की चिन्ता है।

व्याख्या कृष्ण की विरह-अग्नि में जलती हुई राधा पवन-दतिका को
समझाती हुई कहती है, हे पवन! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई। दे तो तू उसके वस्त्रों को मत उड़ाना। यदि वह थोड़ी भी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटा देना, साथ ही उसके होंठों और कमल सदृश-दिखने वाले उसके मुख की मलिनता को हर लेना। । राधा पवन से यह भी कहती हैं कि यदि तम्हें मार्ग में खेत में काम करने वाली कोई थकी हुई स्त्री दिखे तो तुम धीरे-धीरे उसके पास पहुँचकर अपने स्पर्श से उसकी थकान मिटा देना। साथ ही आकाश में बादल के दिखाई देने पर उसे पास लाकर उसकी छाया के द्वारा उस थकी हुई स्त्री को शीतलता
प्रदान करना, उसे आराम पहुँचाना।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने विरहिणी राधा को पर-पीड़ा से व्यथित दिखाया गया है!
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता
अलंकार रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश एवं मानवीकरण
गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

  • 5 जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो।
    न्यारी शोभा वर नगर की देखना मुग्ध होना।
    तू होवेगी चकित लख के मेरु से मन्दिरों को।
    आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क से हैं।
    देखे पूजा समय मथुरा मन्दिरों मध्य जाना।।
    नाना वाद्यों मधुर स्वर की मुग्धता को बढ़ाना।
    किंवा लेके रुचिर तरु के शब्दकारी फलों को।
    धीरे-धीरे मधुर रव से मुग्ध हो-हो बजाना।

शब्दार्थ उत्सका अत्यधिक इच्छुक, उत्साहित; न्यारी-सुन्दर; वर-श्रेष्ठ, मेरु-सुमेरु पर्वत, पर्वत समान ऊँचे आभावाले प्रकाशित, चमकीले; अर्क-सूर्य; नाना अनेक; किंवा अथवा; रुचिर-मनोहर, अच्छा; तरु-वृक्ष, पेड़, शब्दकारी-आवाज करने वाले।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन को मथुरा भेजने से पूर्व वहाँ के भव्य मन्दिरों की शोभा का बखान कर रही हैं।

व्याख्या कृष्ण के पास पवन को भेजने के क्रम में राधा उससे कहती हैं। कि मथुरा नगरी की शोभा अद्भुत है। वहाँ पहुँचकर तुम स्वयं ही उसकी सुन्दरता को देखने के लिए लालायित हो जाओगी, किन्तु ऐसे में तुम अपनी उत्सुकता पर रोक मत लगाना, अपितु नगरी की अनुपम शोभा को देखकर उस पर मुग्ध होना। तुम सूर्य के समान चमकते हुए कलशों से युक्त सुमेरु पर्वत जैसे ऊँचे-ऊँचे भव्य मन्दिरों को देख विस्मित रह जाओगे। राधा पवन से कहती हैं कि जब मथुरा के मन्दिरों में पूजा अर्चना की जा रही हो, उस समय तुम वहाँ जाकर वहाँ बज रहे वाद्यों की आवाज में आवाज मिलाकर उनकी मधुरता को बढ़ाना अन्यथा अपनी रुचि से किसी वृक्ष के शब्द रूपी फलों के स्वरों को सुनकर मुग्ध हो अपने मधुर स्वर से उनका साथ देना।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) पद्यांश में मथुरा के भव्य मन्दिरों का गुणगान किया गया है।
(ii) रस शान्त

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध अलंकार पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा एवं अनुप्रास गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा छन्द मन्दाक्रान्ता

  • 6 तू देखेगी जलद तन को जा वहीं तद्गता हो।
    होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।
    मुद्रा होगी वर वदन की मूर्ति-सी सौम्यता की।
    सीधे-सीधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।।
    नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है।
    पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला।
    छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती।
    सदवस्त्रों में नवल तन की फटती-सी प्रभा है।

शब्दार्थ जलद तन-बादल के समान शरीर वाले अर्थात श्रीकृष्ण:
तदगता-तल्लीन; लोने-सलोने, सुन्दर; नयन-नेत्र, आँख; ज्योति
उत्कीर्णकारी-प्रकाश बिखेरने वाले; मुद्रा-भाव-भंगिमा; वर वदन-सुन्दर मुख; । सौम्यता-सुन्दर, कान्तिमान; सिक्त-सीचे हुए; सुधा-अमृत; श्यामता-साँवलापन; कटि-कमर; फबीला-सुन्दर दिखने वाला; अलक-केश, बाल; सदवस्त्र-सुन्दर कपड़े; नवल-नया प्रभा-प्रकाश, दीप्ति/

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्य में पवन को दूत के रूप में मथुरा भेजने के क्रम में राधा उसे श्रीकृष्ण की पहचान बताता है।

व्याख्या राधा पवन से कहती हैं कि मथुरा जाने पर तुम बादलों जैसे श्यामवर्ण वाले कृष्ण को उन्हीं में तल्लीन होकर देखोगी। उनकी सन्दर आँखों से प्रकाश निकल रहा होगा। उनके सुन्दर, सौम्य मुख को देख ऐसा प्रतीत होगा जैसे । वह कोई मनोहर सौम्य मूर्ति हो, तुम्हें उनके बोले हुए शब्द अमृत से सींचे हुए-स। प्रतीत होंगे।

हे दूती! उनका शरीर नीले खिले हुए कमल के समूह के सदृश साँवला और । मनोरम है। वे कमर पर पीताम्बर अर्थात् पीला वस्त्र पहनते हैं, जो अति शोभायमान लगता है। उनके बालों से लटकी एक लट उनके मुख की शोभा और । बढ़ा देती है। सुन्दर वस्त्र धारण किए हुए कृष्ण के सौम्य शरीर से प्रकाश की किरणें-सी निकलती रहती है।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ श्रीकृष्ण के अद्भुत रूप का सुन्दर वर्णन है।
(ii) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार उपमा, अनुप्रास एवं रूपक गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा भाव साम्य मीराबाई के इस पद में उपरोक्त पद्यांश से मिलता-जुलता भाव दर्शाया गया है
“बसो मेरे नैनन में नन्दलाल।
मोहनी मूरति, साँवरि, सुरति नैना बने विसाल।
अधर सुधारस मुरली बाजति, उर बैजन्ती माल।
क्षुद्र घण्टिका कटि-तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।”

  • 7 साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।
    सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।
    दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।
    लम्बी बाँहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।
    राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।।
    शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।
    नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।
    मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।

शब्दार्थ सकल सम्पूर्ण; वपु-शरीर; सरभि सुगन्ध; सम्पोषिका-पोषण करने वाली;वषभ-वर-से-साँड़ के समान श्रेष्ठ, कलभ-कर-सी-हाथी की सूंड जैसी; पेटिका-पिटारी; लसा-शोभित; आपीड़-मुकुट; उभय श्रुति दोनों कान; नाना अनेक, विभिन्न; भजभुजा, हाथ; । केयूर भुजबन्द; कम्बु-शंख।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्य में राधा द्वारा पवन को कृष्ण की शोभा बताई जा रही। है, ताकि वह उन्हें आसानी से पहचान ले।

व्याख्या राधा पवन से कृष्ण की शोभा का गुणगान करती हई कहती हैं। कि उनका सम्पूर्ण शरीर साँचे में ढला हुआ अर्थात् सुडौल है, जिसे देख अलौकिक सौन्दर्य के दर्शन का आभास होता है। उनके शरीर से निकलने वाली सुगन्धित पुष्पों के सदृश सुगन्ध प्राणों का पोषण करने वाली अर्थात् मन को आह्लादित कर देने वाली है। उनके कन्धों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है। जैसे वे उत्तम कोटि के साँड़ के कन्धे हों। यहाँ कहने का भाव यह है कि। श्रीकृष्ण के कन्धे अति बलिष्ठ हैं। राधा आगे कहती हैं कि कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सूड के सदृश बल की पिटारी अर्थात् अति शक्तिशाली है।

उनके मस्तक पर राजाओं के समान अपूर्व सौन्दर्य से युक्त मुकुट ।
विराजमान होगा। उनके दोनों कान मनोहर स्वर्ण-कुण्डलों से सुशोभित होंगे, वे अपनी दोनों भुजाओं में रत्न-जड़ित भुजबन्द धारण किए हुए होंगे। शंख जैसी सुन्दर और सुडौल दिखने वाली उनकी गर्दन में मोतियों की माला होगी। ।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) राधा के कथन के माध्यम से कवि ने श्रीकृष्ण के सम्पूर्ण शरीर का शोभा-वर्णन उपयुक्त बिम्बों की सहायता से किया है।
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता
अलंकार उपमा और अनुप्रास गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा
भाव साम्य निम्न पद्यांशों में उक्त पद्यांश से भाव-सौम्यता दर्शाई गई है
“मोर मुकुट और कानन कुण्डल ।
पीताम्बर सोहे अति माधुरी।
सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
इहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।” ।

  • 8 तेरे में है न यह गुण जो तू व्यथाएँ सुनाए।
    व्यापारों को प्रखर मति औ युक्तियों से चलाना।
    बैठे जो हों निज सदन में मेघ-सी कान्तिवाले।
    तो चित्रों को इस भवन के ध्यान से देख जाना।
    जो चित्रों में विरह-विधुरा का मिले चित्र कोई।
    तो जा जाके निकट उसको भाव से यों हिलाना।
    प्यारे हो के चकित जिससे चित्र की ओर देखें।
    आशा है यों सुरति उनको हो सकेगी हमारी।।

शब्दार्थ व्यथा-पीड़ा; प्रखर-तेज, तीव्र; मति-बुद्धि; युक्ति-यत्न, उपाय; सदन-घर; कान्तिवाले-शोभावाले; विरह-विधरा-वियोग से दुःखी; सुरति-स्मृति।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा, श्रीकृष्ण के पास भेज रही पवन को समझाती हैं। कि मुख-विहीन होने पर भी किस प्रकार विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से वह उन्हें अपना सन्देश सुनाए।

व्याख्या राधा पवन से कहती हैं कि तुम कृष्ण के सम्मुख मेरे दुःखों को वाणी से कह पाने में असमर्थ हो, इस कारण मेरी व्यथा और सन्देश को उन तक पहुँचाने में अपनी तीव्र बुद्धि और विवेक का प्रयोग करते हुए उचित क्रिया-व्यापारों के माध्यम से अपना कार्य पूर्ण करना। यदि मथुरा पहुँचने पर तुम्हें मेरे प्रियतम जो
बादलों की कान्ति के सदृश प्रतीत होते हैं, अपने घर में बैठे मिले, तब तुम भवन के सारे चित्रों को ध्यानपूर्वक देखना। राधा आगे कहती हैं कि यदि उन चित्रों में वियोग से व्यथित किसी स्त्री का
चित्र दिखे तो तुम उसके निकट पहुँचकर उसे इस भाव से हिलाना कि मेरे प्रिय विस्मय के साथ उसे देखने लगें। मुह गता है कि उस विरहिणी का चित्र देख उन्हें मेरी याद आने लगेगी अर्थात् उन्हें आभास होने लगेगा कि मैं भी विरह-अग्नि । में उसी प्रकार जल रही हूँ, जिस प्रकार इस चित्र में यह स्त्री।।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ कवि ने मुख-विहीन पवन दूती के माध्यम से राधा का सन्देश कृष्ण तक पहुँचाने हेतु उसके कार्य-व्यापार का सहारा लिया है, जो अनुपम है।।
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार उपमा, अनुप्रास एवं मानवीकरण गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

  • 9 जो कोई भी इस सदन में चित्र उद्यान का हो।
    औ हों प्राणी विपुल उसमें घूमते बावले से।
    तो जाके सन्निकट उसके औ हिला के उसे भी।
    देवात्मा को सुरति ब्रज के व्याकुलों की कराना।
    कोई प्यारा कुसुम कुम्हला गेह में जो पड़ा हो।
    तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को।
    यों देना ऐ पवन बतला फूल-सी एक बाला।
    म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।

शब्दार्थ उद्यान बगीचा; विपल-बहुत से; बावला-पागल; सन्निकट- पास, नजदीक; देवात्मा श्रीकृष्ण; कसम फूल; कुम्हला-प्रभाहीन; गेह-घर । चरण-पैर; बाला बालिका; म्लाना उदास; कमल-पग-कमल रूपा परा

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन से कहती है कि यदि श्रीकृष्ण के घर ऐसा कोई चित्र है, जिसमें उद्यान में बेचैन से घूमते प्राणी दर्शाए गए हो ता, शाए हुए फूल को श्रीकृष्ण के चरणों पर रखने के लिए। कहती है।

व्याख्या राधा पवन से कहती हैं कि यदि तुम्हें कृष्ण के घर में ऐसा कोई । चित्र दिखे, जिसमें अनेक जीव-जन्तु बगीचे में पागलों की तरह घूम रहे हों तो उसके निकट जाकर तुम उसे भी हिला देना ताकि कृष्ण को उसे देख विरह में व्याकुल ब्रजवासियों की याद आ जाए। यदि कृष्ण के घर में तुम्हें कोई । सुन्दर-सा फूल मुरझाया हुआ दिखे तो उसे उड़ाकर उनके चरणों पर डाल देना, ताकि उन्हें यह आभास हो सके कि कुम्हलाए हुए फूल-सी उदास कोई ।
बालिका व्याकुल होकर उनके चरण चूमना चाहती है।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ राधा चित्र और कुम्हलाए हुए फूल के माध्यम से पवन दूती को कृष्ण तक अपना सन्देश सुनाने का तरीका बता रही है।
(ii) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार उपमा और अनुप्रास शब्द शक्ति अभिधा गुण प्रसाद

  • 10 जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।
    छिद्रों में जा क्वणित करना वेण-सा कीचकों को।
    यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।
    जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।
    ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।
    थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।
    यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।
    आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।।

शब्दार्थ वाटिका-बगीचा, क्वणित-बजाना; वेण-बाँसुरी; कीचक-बाँस; गोपाँगना-गोपिकाओं; श्रवण-सुनना; दीर्घ उत्कण्ठ-अति व्याकुल होकर; व्यग्र-व्याकुल; भगिनि-बहन; जतलाना-बताना; अम्भोजनेत्रा-कमल के समान नेत्र वाली; वारि-जल; बोरना-डुबोना।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तत पद्यांश में राधा पवन को कृष्ण के समक्ष अपना सन्देश भेजने के लिए बाँसों ओर कमल के खिले हुए फूलों को माध्यम बनाने की सीख दे रही हैं।

व्याख्या राधा पवन को कहती हैं कि यदि तुम्हें कृष्ण किसी उपवन अथवा बगीचे में खड़े नजर आएँ तो तुम बाँसों के छिद्रों में पहुँचकर उन्हें बाँसुरी के सदृश बजाना, ताकि उन्हें उनकी बाँसुरी सुनने के लिए व्याकुल होती गोपियों की याद आ जाए। राधा आगे कहती हैं कि मेरे प्रियतम के समक्ष ही खिले हुए कमल की। पंखुड़ियों को व्याकुल होकर थोड़ा-थोड़ा जल में डुबोना, ताकि ऐ बहन! यह
देख कृष्ण को इसका आभास हो जाए कि कमल नेत्रों वाली राधा वियोग में व्यथित होकर अपने नेत्रों को आँसुओं में डुबोए रखती है अर्थात् दिन-रात रोती. रहती हैं।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में राधा द्वारा पवन को बगीचे में खड़े कृष्ण तक अपना सन्देशा पहुँचाने की विधियाँ बता रही हैं।
(i) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार उपमा, अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा
भाव साम्य सूरदास के इस पद में उपरोक्त पद्यांश से भाव साम्यता दर्शाई गई है- “निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहँ, उर बिच बहत पनारे।।
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे।।”

  • 11 धीरे लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई।
    औ प्यारे के चपल दृग के सामने डाल देना।
    ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
    कैसी होती विरह वश मैं नित्य रोमांचिता हूँ।।
    बैठ नीचे जिस विटप के श्याम होवें उसी का।
    कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना।।
    यों प्यारे को विदित करना चातुरी से दिखाना।
    मेरे चिन्ता-विजित चित का क्लान्त हो काँप जाना।

शब्दार्थ वहन-उठाना; नीप-कदम्ब; चपल-चंचलदृग-आँख; नित्य-सदा; । आशंकिता-आशाओं, सन्देहों से परिपूर्ण: विरह वश-वियोग के अधीन: विटप-पेड़; विदित-ज्ञात, बताना; चातुरी-चतुराई: चिन्ता-विजित-चिन्ता द्वारा जीते गए; क्लान्त-थका हुआ, मुरझाया।।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन को कदम्ब के पुष्प और वृक्ष के पत्ते के माध्यम से अपना सन्देशा सुनाने की विधियाँ बता रही हैं।

व्याख्या राधा पवन दूती से कहती हैं हे पवन! मेरे प्रियतम (कृष्ण) की चंचल आँखों के आगे धीरे से कदम्ब का फूल रख देना, जिससे यह प्रकट हो सके कि मैं उनके वियोग में प्रतिदिन किस प्रकार शंकाओं से घिरी रहती हूँ और मिलन की आस में कदम्ब के फूल जैसी पुन:-पुन: रोमांचित हो उठती हूँ। हे दूतिका! कृष्ण जिस पेड़ के नीचे बैठे हों, तुम उसी का पत्ता उनकी आँख के समक्ष लाकर हिलाना। पत्ते को चतुराई पूर्वक हिलाकर तुम मेरे प्रियतम को इस
बात से अवगत करा देना कि चिन्ता ने मेरे हृदय पर विजय पाकर मुझे किस प्रकार थका दिया है अर्थात् प्रिय के वियोग में वह प्रत्येक क्षण उन्हीं के विषय में चिन्तित रहती है।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i)प्रस्तुत पद में राधा पवन को विभिन्न प्राकृतिक उपादानों का प्रयोग कर कृष्ण के वियोग में चिन्ता से ग्रसित उनकी स्थिति से अवगत कराने के लिए कहती
(ii) रस वियोग श्रृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली छन्द मन्दाक्रान्ता गुण प्रसाद शैली प्रबन्ध
अलंकार उपमा और अन्त्यानुप्रास शब्द शक्ति अभिधा

  • 12 सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो।
    तो पाँवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।
    यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो।
    मेरा होना अति मलिन औ सूखते नित्य जाना।
    कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो।
    तो प्यारे के दुग युगल के सामने ला उसे ही।।
    धीरे-धीरे सँभल रखना और उन्हें यों बताना।।
    पीला होना प्रबल दुःख से प्रोषिता-सा हमारा।।

शब्दार्थ मलिन -उदास; लतिका-लता, बेल,धरा-धरती;प्रीति -प्रेम;
वंचिता -अलग; नित्य -सदा; नवल तरु-नया पेड़,पीत -पीला; दृग युगल – दोनों आँखें;प्रोषिता -पति से बिछुड़ी हुई।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग राधा, श्रीकृष्ण के पास पवन को दूत के रूप में भेजने से पहले समझा रही हैं कि वह मथुरा की भूमि पर पड़ी हुई मलिन लतिका और पेड़ के पीले पत्ते के माध्यम से उनके प्रिय को उनकी प्रेमिका की स्थिति का भान कैसे कराएगी।

व्याख्या राधा पवन से कहती है कि यदि मथुरा की भूमि पर तुम्हें कहीं मुरझाई हुई लता दिखाई दे तो उसे कृष्ण के पैरों के पास ले जाकर गिरा देना। इस प्रकार, उनके समक्ष स्पष्ट रूप से यह प्रकट कर देना कि प्रेम-विहीन रहकर मैं भी उसी लतिका की तरह मुरझाकर सदा सखते जा रही हैं। यदि नए पेड़ के पीले पड़ गए पत्ते पर तुम्हारी दृष्टि पड़े तो तुम हमारे प्रियतम की आँखों के आगे उसे धीरे से रख देना और उन्हें बताना कि पति से बिछड़ी हुई
स्त्री के समान मैं भी नित्य पीली पड़ती जा रही हूँ

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में विरहिणी राधा ने अपनी शारीरिक दुर्बलता को बताने के लिए मलिन लता व पीले पत्ते का सहारा लिया है।
(ii) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता अलंकार उपमा और पुनरुक्तिप्रकाश गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

  • 13 यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।
    धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।
    थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।
    हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकूँगी।
    पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।
    तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
    छु के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।
    जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तझी को लगाके।।

शब्दार्थ विदित -अवगत कराना; सर्व-सभी; धूलि-धूल; चरण-रज-पैर की धूल व्यथित -दुखी; चित को बोध -मन को समझाना; विनय -विनती; कमल-पग -कमलरूपी पैर।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन से कहती हैं कि वह कृष्ण के पास जाकर उनके चरणों की धूल ले आए और यदि उससे कुछ भी न हो सके तो बस उनके पाँवों को छूकर ही चली आए।

व्याख्या कृष्ण के वियोग में व्यथित राधा, पवन-दूतिका से कहती हैं कि मेरे द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर तुम कृष्ण के समक्ष मेरी सारी व्यथाएँ रखना और आते हुए उनके पैरों की धूल ले आना, क्योंकि उसके बिना मैं अपने दुःखी मन को समझा नहीं सकूँगी। राधा आगे कहती है कि यदि तुम मेरे द्वारा समझाए गए
कार्यों को पूर्ण करने में सक्षम न हो सको, तो मेरी बस एक विनती मान कर तुम उनके कमल रूपी चरणों को प्रेमपूर्वक स्पर्श करके चली आना। मैं तुम्हें ही हृदय से लगाकर स्वयं में नवजीवन का संचार करूँगी अर्थात् स्वयं को जीवित रख सकूँगी।

काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ राधा के कथनों के द्वारा उनके आत्मिक प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। अतः कृष्ण से राधा का प्रेम कायिक न होकर आत्मिक है।
(ii) रस वियोग शृंगार

कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली शैली प्रबन्ध छन्द मन्दाक्रान्ता
अलंकार पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास एवं मानवीकरण
गुण प्रसाद शब्द शक्ति अभिधा

पद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

  1. बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।
    आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
    आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।
    प्रात:वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।
    सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
    धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों।।
    प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
    क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राधा की किस स्थिति का वर्णन किया है।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने विरहावस्था के कारण दुःखी नायिका का वर्णन किया है। जिसके नयनों से अशुओं की धारा बह रही है तथा मन को हर्षित एवं आनन्दित करने वाली प्रातःकालीन पवन भी नायिका को दुःखी करती है। नायिका की इसी स्थिति का वर्णन कवि ने किया है।

(ii) नायिका ने पवन को कर क्यों कहा?
उत्तर नायिका का मन खिन्न एवं उदास था। उसके नयन अश्रुओं से भरे हुए थे। नायिका की इस दैन्य दशा में प्रातःकालीन पवन जब सभी में उमंग एवं उत्साह का संचार कर रही थी, तब वह नायिका के लिए हदय विदारक बनकर उसके दुःख को बढ़ा रही थी, इसलिए नायिका ने उसे क्रूर कहा।

(iii) नायिका ने पवन से क्या कहा?
उत्तर नायिका ने पवन से कहा कि वह इतनी क्रूर, निर्दयी व उसकी पीड़ा को बढ़ाने वाली क्यों बनी हुई है? क्या वह भी उसी के समान किसी पीड़ा से व्यथित है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में वियोग शृंगार रस है। इस पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था का वर्णन किया है।
(v) ‘सद्गन्ध’ व ‘कर’ शब्दों के विपरीतार्थी लिखिए।
उत्तर शब्द विपरीतार्थी सद्गन्ध दुर्गन्ध (क्रूर दयालु

  • 2 थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।
    अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली।।
    वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।
    आना जाना इस विपिन से मुह्यमाना न होना।।
    जाते-जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
    तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
    धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
    सद्गन्धों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित कविता “पवन-दूतिका’ से उद्धृत है। .

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका पवन से क्या कहती है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में नायिका अर्थात् राधा पवन को मथुरा जाने के लिए कहती है. साथ ही उसे मार्ग में मिलने वाले मनोरम स्थलों एवं दश्यों से अवगत करती हुई उनसे मोहित न होने, लेकिन दीन-दुखियों के कष्ट दूर करने के लिए कहती है।

(iii) राधा पवन को किन वस्तुओं से मोहित न होने के लिए कहती है? ।
उत्तर राधा पवन से कहती है कि मथुरा जाते समय उसे मार्ग में वृन्दावन जैसा रमणीय स्थल मिलेगा जहाँ विभिन्न प्रकार के पुष्प खिले होंगे, पक्षी चहचहा रहे होंगे, अनेकानेक प्रकार के वृक्ष होंगे। ये सभी उपादान तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगे, किन्तु तुम इन पर मोहित न होना।

(iv) नायिका पवन से किस प्रकार लोगों की सहायता करने के लिए कहती है?
उत्तर नायिका पवन से थके-हारे लोगों की सहायता करने के लिए कहकर उससे कहती है कि तुम ऐसे लोगों के पास जाकर उनके शरीर को धीरे-धीरे स्पर्श करते हुए उनके सभी दु:खों को दूर कर देना और उनके चारों ओर अपनी सुगन्ध बिखेर कर उनके जीवन को खुशहाल बना देना।।

(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पवन को दूत के रूप में प्रस्तुत किया है। अतः सम्पूर्ण पद्यांश में मानवीकरण अलंकार है। मानवीकरण अलंकार के अतिरिक्त ‘अच्छे-अच्छे’, ‘जाते-जाते’ व ‘धीरे-धीरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा ‘श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना’ में उपमा अलंकार है।

  • 3 लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।
    होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
    जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।
    होठों की औ कमल-मुख की म्लानताएँ मिटाना।।
    कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।
    धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
    जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
    छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका के द्वारा पवन को कही गई बातों के माध्यम से परोपकार की भावना को महत्त्व दिया है। नायिका द्वारा स्वयं की पीड़ा से पहले दूसरों की पीड़ा एवं कष्टों को दूर करने का सन्देश दिया गया है। ।

(ii) नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति कैसा आचरण अपनाने के लिए कहती है?

उत्तर नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति स्नेह एवं प्रेम का आचरण अपनाने के लिए कहते हुए कहती है कि यदि उसे मार्ग में कोई लज्जाशील महिला मिले तो वह उसके वस्त्रों को न उड़ाए। यदि वह उसे थोड़ी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान और मुख की मलिनता को हर लेना।

(iii) नायिका पवन से किस प्रकार कृषक महिला की सहायता करने के लिए कहती है?
उत्तर नायिका पवन से कहती है कि यदि उसे मथुरा जाते समय तुम्हें कोई कृषक महिला खेतों में काम करते हुए दिखाई दे, तो उसके पास जाकर अपने स्पर्श से उसकी थकान को मिटा देना। साथ ही आकाश में छाए बादलों को अपने वेग से उडाकर उनकी छाया के द्वारा उसे शीतलता प्रदान करना और उसकी सहायता करना।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प सौन्दर्य का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ीबोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्ध शैली में नायिका की वियोगावस्था का वर्णन किया है। कवि ने रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग करके पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में वृद्धि कर दी है।
(v) जलद’ व ‘व्योम’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर शब्द पर्यायवाची
जलद बादल, मेघ
व्योम आकाश, गगन

  • 4 तू देखेगी जलद तन को जा वहीं तद्गता हो।
    होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।
    मुद्रा होगी वर वदन की मर्ति-सी सौम्यता की।
    सीधे-सीधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।
    नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है।
    पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला।
    छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती।
    सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा है।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में श्रीकृष्ण की तुलना किन-किन उपादानों से की गई है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने श्रीकृष्ण की तुलना जलद अर्थात बादल व नीलकमल से की है, क्योंकि श्रीकृष्ण का वर्ण (रंग) बादल व नीलकमल के समान श्याम वर्ण का है।

(ii) कवि ने श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर कवि ने श्रीकृष्ण को बादल एवं नीलकमल के समान मानते हुए उनका वर्णन किया है। कवि कहता है कि उनका रूप अत्यन्त सुन्दर एवं मनोरम है, उनकी वाणी अमत के समान प्रतीत होती है। पीले वस्त्र उन पर अत्यधिक शोभा दे रहे हैं तथा उनके बालों से लटकी लट उनके रूप के सौन्दर्य को और अधिक बढ़ा रही है।

(iii) ‘नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि श्रीकृष्ण के श्यामवर्णीय शरीर की तुलना। नीले रंग के कमल से करते हए कहते हैं कि हे पवन! उनका वर्ण नीले रंग के कमल के समान श्यामल एवं मनोरम है।

(iv) ‘सदद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा है। पंक्ति में कौन-सा
अलंकार है?
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति में उपमा अलंकार है। पंक्ति में श्यामवर्णीय श्रीकृष्ण द्वारा पहने गए पीले रंग के वस्त्रों की तुलना प्रातःकालीन सूर्य की पीली किरणों से की गई है। अतः इसमें पीले वस्त्रों व सूर्य की पहली किरणों में साम्यता प्रकट करने के कारण उपमा अलंकार है।

(v) ‘सौम्यता’, ‘सुधा’, ‘श्यामता’ का विलोमार्थक शब्द लिखिए।
उत्तर शब्द
विलोमार्थक सौम्यता कठोरता
सुधा विष श्यामता धवल

  • 5 साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।
    सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।
    दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।
    लम्बी बाँहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।
    राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।
    शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।
    नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।
    मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने किसे प्राण पोषिका के समान बताया है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में नायिका अर्थात् राधा, पवन को श्रीकृष्ण के विषय में बताते हुए कहती है कि उनका सुडौल शरीर साँचे में ढला हुआ प्रतीत होता है। उनके तन से आने वाली सुगन्ध प्राणों को पोषित करने वाली है अर्थात् वह मन को आह्लादित करने वाली है।

(ii) नायिका ने श्रीकृष्ण की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर नायिका श्रीकृष्ण की विशेषताएँ बताते हुए कहती है कि उनका शरीर सुडौल है, उनके कन्धे वृषभ के समान बलिष्ठ हैं, उनकी भुजाएँ हाथी की सँड के समान बलशाली हैं, उनके मस्तिष्क पर राजाओं के समान अपूर्व सौन्दर्य से युक्त मुकुट विराजमान है। उनकी गर्दन सुन्दर एवं सुडौल है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था एवं श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम को उद्घाटित किया है। नायिका कृष्ण से दूर ब्रज प्रदेश में है, किन्तु उसके मन-मस्तिष्क में उनकी छवि विद्यमान है। वह कृष्ण रूप, बल आदि से अत्यधिक आकर्षित है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली संक्षेप में लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ीबोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्धात्मक शैली में नायिका की विरह व्यथा को प्रस्तुत किया है। भाषा में तुकान्तता एवं लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अभिधा शब्द शक्ति व प्रसाद गुण के प्रयोग से काव्य की भाषा अधिक प्रभावशाली हो गई है।

(v) “स्वर्ण’ व ‘सुरभि’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर शब्द पर्यायवाची
स्वर्ण कनक, कुन्दन
सुरभि मनोरम, खुशबू

  • 6 तेरे में है न यह गुण जो तू व्यथाएँ सुनाए।
    व्यापारों को प्रखर मति औ युक्तियों से चलाना।
    बैठे जो हों निज सदन में मेघ-सी कान्तिवाले।
    तो चित्रों को इस भवन के ध्यान से देख जाना।
    जो चित्रों में विरह-विधुरा का मिले चित्र कोई।
    तो जा जाके निकट उसको भाव से यों हिलाना।
    प्यारे हो के चकित जिससे चित्र की ओर देखें।
    आशा है यों सुरति उनको हो सकेगी हमारी॥
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) नायिका पवन से क्या प्रश्न करती है।
उत्तर नायिका राधा पवन को दूत बनाकर श्रीकृष्ण के पास उनके वियोग में स्वयं व्यथा का सन्देश देते हुए भेजती है। पवन को सन्देश देते हुए वह उससे प्रश्न करती है कि क्या उसमें यह गुण या सामर्थ्य है कि वह उसकी व्यथा व उसके दुख को
पूर्ण संवेदना के साथ जस का तस उन्हें सुना सके।

(ii) नायिका पवन को सन्देश देने के लिए क्या करने को कहती है?
उत्तर नायिका पवन से कहती है कि जब वह उनके महल में पहुँचे तो तुम भवन के सभी चित्रों को ध्यानपूर्वक देखना और उन चित्रों में यदि तुम्हें वियोग से व्यथित किसी स्त्री का चित्र दिखे तो तुम उसके निकट जाकर उसे इस प्रकार हिलाना कि वे उसे देखने लगे। उस चित्र को देखने पर अवश्य ही उन्हें मेरा स्मरण हो। जाएगा।

(iii) पद्यांश में श्रीकृष्ण की तुलना किससे की गई है?
उत्तर पद्यांश में नायिका श्रीकृष्ण के श्याम वर्णीय होने के कारण उनकी तुलना बादलों से करके पवन को उनकी पहचान बताते हुए कहती है कि मथुरा पहुँचने पर उसे बादलों की कान्ति के सदश जो व्यक्ति दिखे वही उसके प्रियतम हैं।

(iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर पद्यांश में कवि ने विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘निज सदन में मेघ-सी कान्तिवाले’ में उपमा अलंकार, ‘चित्रों में विरह-विधुरा का’ में ‘व’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार तथा सम्पूर्ण पद्यांश में पवन का दूत के रूप में वर्णन करने के कारण काव्य में मानवीकरण अलंकार है।

(v) ‘भवन’ शब्द का सन्धि-विच्छेद करते हुए उसका भेद बताइए।
उत्तर ‘भवन’ का सन्धि-विच्छेद ‘भु + अन’ है, इसमें अयादि स्वर सन्धि है।

  • 7 जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।
    छिद्रों में जा क्वणित करना वेण-सा कीचकों को।
    यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।
    जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।
    ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।
    थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।
    यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।
    आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) राधा श्रीकृष्ण को अपना सन्देश देने के लिए पवन से क्या कहती है?
उत्तर राधा पवन को उसकी विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए। बाँसों एवं कमल के खिले हुए फूल को माध्यम बनाने के लिए कहती है।

(ii) श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से क्या कहती है?

उत्तर श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से कहती है। कि अगर तुम्हें कृष्ण उपवन में दिखाई दें, तो तुम बाँस में प्रवेश करके उसे बाँसुरी की तरह बजाना, जिससे श्रीकृष्ण को उनकी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनने के लिए लालायित गोपियों की याद आ जाए।

(ii) राधा स्वयं विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए पवन को क्या उपाय सुझाती है?
उत्तर राधा श्रीकृष्ण को स्वयं की विरहावस्था एवं पीड़ा से अवगत कराने हेत पवन से कहती है कि श्रीकृष्ण के समक्ष उपस्थित कमल के पत्तों को पानी में डुबोना, ताकि उस दृश्य को देखकर श्रीकृष्ण कमल से नयनों वाली राधा की वियोगावस्था को पहचान लें।

(iv) पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर पद्यांश में श्रीकृष्ण के मथुरा से द्वारका आ जाने के कारण ब्रज की गोपियों व राधा की विरहावस्था का वर्णन किया गया है। अतः पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता विद्यमान है।

(v) ‘कमल दल’ का समास विग्रह करते हुए समास का भेद बताइए।
उत्तर ‘कमल दल का समास विग्रह ‘कमल का दल’ होगा। यह तत्परुष समास का उदाहरण है।

  • 8 धीरे लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई।।
    औ प्यारे के चपल दृग के सामने डाल देना।
    ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
    कैसी होती विरह वश मैं नित्य रोमांचिता हूँ।।
    बैठ नीचे जिस विटप के श्याम होवें उसी का।
    कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना।
    यो प्यारे को विदित करना चातुरी से दिखाना।
    मेरे चिन्ता-विजित चित का क्लान्त हो काँप जाना।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) नायिका पवन से कदम्ब के फूल को नायक के समक्ष रखने के लिए क्यों कहती है?

उत्तर नायिका पवन से कदम्ब के फूल को नायक के समक्ष रखने के लिए इसलिए कहती है, ताकि नायक अर्थात् श्रीकृष्ण को इस बात का भान हो सके कि नायिका उनके वियोग में किस प्रकार आशंकित और मिलन की आस में रोमांचित हो उठती है।

(ii) राधा श्रीकृष्ण को वियोग में उत्पन्न चिन्ता से अवगत कराने के लिए पवन से क्या कहती है?
उत्तर राधा श्रीकृष्ण को अपनी चिन्ता से अवगत कराने के लिए पवन से कहती है कि वे जिस वृक्ष के नीचे बैठे हों, उसी वृक्ष के पत्ते को चतुराई से उनके पास लाकर हिला देना, इससे उन्हें मेरी स्थिति का अनुमान हो जाएगा।

(iii) नायिका स्वयं की तुलना किससे करती है?
उत्तर नायक अर्थात् श्रीकृष्ण के वियोग में जीवनयापन कर रही नायिका अपनी तुलना सूखी हुई लता व पेड़ से अलग होकर पीले पड़े पत्ते से करते हुए कहती है कि उनके वियोग में उसकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गई है। अतः उन्हें उससे। अवश्य मिलने आना चाहिए।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प-पक्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ‘हरिऔध’ ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ीबोली का प्रयोग करते हुए प्रबन्धात्मक शैली में काव्य रचना की है। मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग करते हुए पद्यांश में उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश व अत्यानुप्रास अंलकारों का सहज प्रयोग हुआ है। वियोगात्मक स्थिति को प्रकट करने में प्रसाद गुण एवं अभिधा शब्द
शक्ति का प्रयोग हुआ है।

(v) ‘विटप’ व ‘नेत्र’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर शब्द पर्यायवाची
विटप वृक्ष, तरु
नेत्र नयन, चक्षु

  • 9 यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।
    धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।
    थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।
    हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकूँगी।
    पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।
    तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
    छु के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।
    जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तझी को लगाके।।
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर पद्यांश में नायक के प्रति नायिका के असीम प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। नायिका पवन से श्रीकृष्ण को अपनी व्यथा बताने और ऐसा न कर पाने की स्थिति में उनके चरणों की धूल लाने अथवा उनके चरणों का स्पर्श करके आने के लिए कहती है।

(ii) नायिका श्रीकृष्ण की चरण रज लाने के लिए क्यों कहती है?
उत्तर नायिका पवन से श्रीकष्ण को अपनी व्यथा सुनाने और ऐसा न कर पाने पर उनके चरणों की धूल लाने के लिए कहती है, ताकि वह उसे पाकर ही अपने दुःखी मन को समझा ले।

(iii) “जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगाकै। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से राधा पवन से कहती है कि यदि वह श्रीकृष्ण की चरण रज को न ला पाए और केवल उनके चरणों का स्पर्श करके भी आ जाए तो वह भी उसके लिए काफी है, क्योंकि वह पवन को ही हृदय से लगाकर अपने प्रियतम की पूर्ण अनुभूति प्राप्त कर लेगी और स्वयं में नव जीवन का संचार कर लेगी।

(iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर पद्यांश में कवि ने पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास, रूपक व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया है। पद्यांश में ‘धीरे-धीरे वहन कर के’ में पुनरुक्ति प्रकाश, ‘जी जाऊँगी हृदयतल’ में अनुप्रास अलंकार, ‘प्यारे कमल-पग को’ में रूपक अलंकार
तथा सम्पूर्ण काव्य रचना में मानवीकरण अलंकार है।।

(v) ‘कमल-पग’ का समास विग्रह करके समास का भेद भी बताइए।
उत्तर ‘कमल-पग’ का विग्रह ‘कमल के समान पग’ है, जोकि कर्मधारय समास का उदाहरण है।

UP Board Syllabus Tags
Numbertags
1Online Study For Class 12 Hindi
2Online  Study Class 12th Hindi
3Online 12th Class Study Hindi
4Online Study For Class 12 Hindi
5Online Study For Class 12 Hindi
6Cbse Class 12 Online Study
7UP Board syllabus
8Online Study For Class 12 Commerce
9Online Study Class 12
1012th Class Online Study Hindi
11Online Study For Class 12 Hindi
12Online Study For Class 12th Hindi
13Online Study English Class 12 Hindi
14UP Board
15UP Board Exam
16 Go To official site UPMSP
17UP Board syllabus in Hindi
18UP board exam
19Online school
20UP board Syllabus Online

Leave a Comment