UP board chapter 4 Class 12 THE HORSE |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter name | THE HORSE |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 12th |
UP Board Syllabus Chapter 4 Class 12th English (Prose) |
Introduction to the lesson
Introduction to the lesson : This lesson has been written by Rabindranath Tagore. This is a fine story. God created horse. He was delighted in His creation. But
Man caught it and kept it in his stable. God asked Man to release it. Man released it but he tied its front legs with a rope. Now the horse only could hop like a frog.
Then God asked Man to take it back to his stable. Man said that it would be a burdeti to him. God answered that by accepting the burden you would show your
greatness of heart.
पाठ का परिचय
पाठ का परिचय : प्रस्तुत पाठ रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित है। यह एक उत्तम कहानी है। ईश्वर ने घोड़ा बनाया। वह अपने निर्माण से प्रसन्न था। किन्तु मनुष्य ने घोड़े को पकड़ लिया और अपने अस्तबल में रख लिया। ईश्वर ने मनुष्य से उसे मुक्त करने को कहा। मनुष्य ने उसे छोड़ दिया लेकिन
उसने उसकी आगे की टाँगें एक रस्सी से बाँध दीं। अब घोड़ा केवल मेढक की तरह उछल सकता था। फिर ईश्वर ने मनुष्य से उसे अस्तबल में ले जाने को कहा। मनुष्य ने कहा कि यह उस पर वजन होगा। व ईश्वर ने उत्तर दिया कि इस वजन को स्वीकार करके तुम अपने हृदय की विशालता प्रदर्शित करोगे।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
जब संसार के निर्माण का कार्य लगभग समाप्त हो गया तो सृष्टि के रचयिता (ईश्वर) के मन में एक नया विचार आया। उसने एक सहायक को बुलाया और कहा, “मेरे लिए कुछ और सामग्रियाँ लाओ, मैं पशु की एक नई ।
नस्ल बनाऊँगा!
सहायक ने घुटनों के बल
सहायक ने घुटनों के बल खड़े होकर उत्तर दिया. “परमपिता, जब निर्माण के उत्साह में आपने हाथी, व्हेल, शेर और अजगर बनाए, आपने थोड़ा भी उस पदार्थ की मात्रा के बारे में नहीं सोचा जो
उनके निर्माण में प्रयुक्त हुआ। भारी और कठोर पदार्थों में से बहुत थोड़ी सी सामग्री शेष बची है। किन्तु हल्की सामग्री भण्डार में अब भी पर्याप्त है।
निर्माता ने एक क्षण के लिए सोचा : “अच्छा, जो भी तुम्हारे पास है मुझे लाकर दे दो।
इस बार निर्माता ने कठोर सामग्रियों
इस बार निर्माता ने कठोर सामग्रियों में से केवल थोड़ी सी सामग्री प्रयोग करने का ध्यान रखा। उस नये पश, जिसे उसने बनाया उसे न सींग दिए न पंजे; उसने उसे ऐसे दाँत दिए जो चबा सकते थे परन्त काट नहीं सकते थे। जो ताकत उसने उसे दी वह उसे युद्ध के मैदान में उपयोगी बनाने के लिए पर्याप्त था, परन्तु ईश्वर ने उसे युद्ध के लिए कोई रुचि नहीं दी। वह पशु घोड़ा कहलाया जाने लगा।।
निर्माता मे उसके
निर्माता मे उसके बनाने में ऐसे पदार्थ का पर्याप्त भाग लगा दिया था, जिनसे कि वायु और प्रकाश इसका परिणाम यह हुआ कि उस पशु (घोडा) का मस्तिष्क स्वतन्त्रता की लालसा से भरा था। वह
वायु के साथ दौड़ लगाता
वायु के साथ दौड़ लगाता और उस स्थान तक तेज दौड़कर पहुँचता जहाँ आकाश पृथ्वी को छूता था। अर्थात् घोड़े में लगातार दौड़ने की असीम क्षमता थी। अन्य पश किसी उद्देश्य से दौड़ते थे, किन्तु घोड़ा किसी स्पष्ट कारण के इधर-उधर दौड़ लगाता. मानो वह अपने आपसे दूर उड़ जाने का तत्पर हो।
वह शिकार पर झपटता नहीं
वह शिकार पर झपटता नहीं था, लेकिन केवल दौड़ते रहना पसन्द करता था। बुद्धि मान लोग कहते है कि ऐसा तब होता है जब आपमें वायु और प्रकाश के तत्व बहुत अधिक हो
निर्माता अपने इस कार्य से बहुत प्रसन्न हुआ। कुछ पशुओं को रहने के लिए उसने वन दिये, कुछ उसने गुफा या माँद दी। परन्तु वह घोड़े को बिना उद्देश्य के दौड़ लगाते देखना पसन्द करता था, उसने उसे एक खुला मैदान दिया।
उस मैदान के बाहर
उस मैदान के बाहर मनुष्य रहता था। वह उन बोझों के भार से झुक गया था जिनको उसने जा कर लिया था। जब उसने धोड़े को देखा, वह जान गया कि यदि किसी प्रकार वह उसे पकड़ सके तो अपने बोझ को उसकी पीठ पर लादने में समर्थ हो सकेगा।
एक दिन उसने अपना जाल फेंककर घोड़े को पकड़ लिया। उसने उसकी पीठ पर एक जीन रखी और मुंह में एक लगाम लगा वी और उसे एक कारागार में बन्द कर दिया अर्थात् उसे अस्तबल में बल कर दिया।
चीता अपने जंगल के
चीता अपने जंगल के घर में रहा और शेर अपनी गुफा में, परन्तु घोड़े ने अपना घर (युला मैदाना खो दिया। स्वतन्त्रता के लिए अपने पक्के प्रेम के होते हुए भी वह बन्धन से मुक्त नहीं हो सका।
जब जीवन उसके लिए असहनीय हो गया, उसने अपनी जेल की दीवारों पर जोर से लात मारी। इससे घोड़े के खरों की अपेक्षा वीवार को कम चोट पहुंची। परन्तु लगातार लातें मारने से पलस्तर के ट्रकड़े गिरने लगे। इससे मनुष्य को क्रोध आ गया। उसने कहा, “इसे कृतघ्नता कहते हैं। मैं इसे खिलाता हूँ. मैंने इसकी देखभाल करने के लिए नौकर रखे हैं, लेकिन दुष्ट जानवर मेरे उपकारों को नहीं देखता।
घोड़े को पालतू बनाने के लिए कठोर कदम उठाए गए । अन्त में मनुष्य गर्व के साथ कह सका कि घोड़े से अधिक उसके प्रति वफादार और कोई प्राणी नहीं है।
पंजे और सींग उसके पास पहले से ही नहीं थे, न उसके पास ऐसे दाँत थे जो काट सकें। कोड़े के डर से उसे लात मारना भी छोड़ना पड़ा। जो कुछ अब उसके पास बचा था, वह था उसका हिनहिनाना।
एक दिन निर्माता ने दुखभरी हिनहिनाहट सुनी। वह अपने ध्यान से जागा और ऊपर से ही पृथ्वी के खुले मैदान को देखा । योझ वहाँ नहीं था।
.’ उसने मृत्यु को बुलवाया और कहा, “यह तुम्हारा कार्य है. तुमने मेरे घोड़े को पकड़ लिया है। मृत्यु ने कहा, “अमर पिता, आप सदा मुझ पर ही सन्देह करते है. कृपा करके मनुष्य के घर पर नजर डलिए।’ ..
निर्माता ने फिर
निर्माता ने फिर नीचे देखा और घोड़े को एक सँकरी दीवार से घिरी जगह में दीनतापूर्वक हिनहिनाते
देखा।
उसका दिल करुणा से भर गया और उसने मनुष्य से कहा, ‘यदि तुमने घोड़े को स्वतन्त्र नहीं किया तो मैं इसको चीते के समान दाँत और पजे दे दूंगा।
मनुष्य ने कहा, ‘परमपिता, आपका यह प्राणी स्वतन्त्रता के योग्य नहीं है। देखिए, मैंने इसकी सुख सुविधा के लिए कितना अच्छा अस्तबल बनाया है
परन्तु निर्माता ने जोर देकर कहा कि घोड़े को स्वतन्त्र किया जाना चाहिए।
- मनुष्य ने कहा, मैं आपकी इच्छा का पालन करूंगा। परन्तु मुझे विश्वास है कि आप एक सप्ताह में अपना विचार बदल देंगे और इस बात से सहमत होंगे कि मेरा अस्तबल इसके लिए सर्वोत्तम स्थान है।।
मनुष्य ने घोड़े की आगे की टाँगों को एक साथ रस्सी से बाँध दिया और उसे स्वतन्त्र कर दिया। इस प्रकार बाँध देने पर घोड़ा केवल मेढक की तरह इधर-उधर उछल सकता था।
स्वर्ग से निर्माता घोड़े को देख सकता था, परन्तु रस्सी को नहीं। वह शर्म से लाल हो गया तो इस प्रकार का प्राणी बनाया है मैंने! उसने अपने मन में स्वीकार किया कि उसकी भयंकर भलों में से एक भूल यह भी है।
- मनुष्य ने कहा, “अब इसका क्या किया जाए ? क्या स्वर्ग में खुले मैदान नहीं हैं जहाँ इसे घूमने के। लिए भेजा जा सके ?
निर्माता ने उत्तर दिया, ‘मैं इससे भर गया। इस प्राणी को अपने अस्तबल में ले जाओ
मनुष्य ने कहा, परन्तु परमपिता, मेरे लिए यह भार होगा।
. निर्माता ने उत्तर दिया, “हाँ, परन्तु भार को स्वीकार करके तुम अपने हृदय की विशालता का परिचय दोगे
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