UP Board syllabus ए. पी. जे. अब्दुल कलाम – परिचय – हम और हमारा आदर्श |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी गद्य- | ए. पी. जे. अब्दुल कलाम // हम और हमारा आदर्श |
Chapter | 8 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
परिचय ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
नाम | अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम |
जन्म | 15 अक्टूबर, 1931 |
जन्म स्थान | रामेश्वरम, तमिलनाडु |
पिता का नाम | जैनुलाब्दीन |
शिक्षा | अन्तरिक्ष विज्ञान में स्नातक |
लेखन विधा | आत्मकथा, निबन्ध |
मृत्यु | 27 जुलाई, 2015 शिलांग, मेघालय |
जीवन परिचय तथा साहित्यिक उपलब्धियाँ
भारत रल अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम अर्थात् ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1981 को धनुषकोडी गाँव, रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था, जो मछुवारों को किराए पर नाव दिया करते थे। कलाम जी की आरम्भिक शिक्षा रामेश्वरम में ही पंचायत प्राथमिक विद्यालय में हुई, इसके पश्चात् इन्होंने मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अन्तरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के पश्चात् इन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। वर्ष 1962 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन में आने के पश्चात् इन्होंने कई परियोजनाओं में निदेशक की भूमिका निभाई। इन्होंने एस. एल. वी. 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, इसी कारण इन्हें मिसाइल मैन भी कहा गया। इसरो के निदेशक पद से सेवानिवृत्त । होने के पश्चात्, ये वर्ष 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे, जिसके पश्चात् इन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। अपने अन्तिम क्षणों में भी । ये शिलांग में प्रबन्धन संस्थान में पढ़ा रहे थे। वहीं पढ़ाते हुए 27 जुलाई, 2015 में इनका निधन हो गया। इन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों से मानद (मान-प्रतिष्ठा देने वाला) उपाधियाँ प्राप्त होने के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा वर्ष 1981 व 1990 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
साहित्यिक सेवाएँ
कलाम जी ने रचनाओं के द्वारा विद्यार्थियों व युवाओं को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। इन्होंने अपने विचारों को विभिन्न पुस्तकों में समाहित किया है।
कृत्तियाँ
इण्डिया 2020, ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, माई जर्नी, इग्नाइटेड माइण्डस, विंग्स ऑफ फायर, भारत की आवाज, टर्निंग प्लॉइण्टेज, हम होंगे कामयाब इत्यादि।
भाषा शैली
फारसी प्रतिरूप से होने के कारण कभी-कभी अब्दुल कलाम आजाद की शैली और विचारों को समझना थोड़ा मुश्किल था। इन्होंने विचारों के लिए नए मुहावरों का प्रयोग किया और निश्चित रूप से आज की उर्दू भाषा को आकार देने में उनका बहुत योगदान रहा है।
योगदान
डॉ कलाम एक बहुआयामों व्यक्तित्व के धनी थे। विज्ञान प्रौद्योगिकी, देश के विकास और युवा मस्तिष्क को प्रज्जवलित करने में अपनी तल्लीनता के साथ-साथ वे पर्यावरण को चिन्ता भी बहुत करते हैं। डॉ. कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की। यह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे।
पाठ का सारांश – हम और हमारा आदर्श
प्रस्तुत निबन्ध हम और हमारा आदर्श’ अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम द्वारा लिखित है। इस निबन्ध में वे राष्ट्र को समृद्ध बनाने का दायित्व नागरिकों को देते हुए कहते हैं कि जब तक वे स्वयं सुख-सुविधाओं से पूर्ण समृद्ध राष्ट्र में जीने की इच्छा नहीं रखेंगे तब तक राष्ट्र का विकास असम्भव है
नागरिकों में समृद्ध राष्ट्र की इच्छा होना
‘हम और हमारा आदर्श’ अध्याय में कलाम जी ने राष्ट्र की प्रगति के लिए स्वयं लोगों द्वारा सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीने की इच्छा रखने और पूर्ण करने हेतु हृदय से प्रयास करने के लिए कहा है। साथ ही वे भौतिकता व आध्यात्मिकता को परस्पर एक-दूसरे का पूरक भी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।
प्रगति के लिए स्वयं के महत्त्व को पहचाना
लेखक कलाम जी स्वयं की युवा छात्रों से मिलने की प्रवृत्ति पर विचार करते हुए, स्वयं के रामेश्वरम द्वीप से निकलकर जीवन में प्राप्त की गई अपनी उपलब्धियों पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। इन उपलब्धियों के मल में वे अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्रवृत्ति पर विचार-विमर्श करते हए इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उनके द्वारा समाज के प्रति दिए गए योगदान के अनुसार अपना मूल्यांकन करना ही महत्त्वपूर्ण था। वे कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त सभी वस्तुओं का उपभोग करने का अधिकार है और जब तक मनुष्य के भीतर स्वयं समृद्ध भारत में जीने की इच्छा एवं विश्वास नहीं होगा, वह अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। विकसित अर्थात जी-8 देशों के नागरिकों का समृद्ध राष्ट्र में जीने का। विश्वास ही उनके विकास का रहस्य है।
जीवन में भौतिक वस्तुओं का महत्त्व
कलाम जी भौतिकता और आध्यात्मिकता को न तो एक-दूसरे का विरोधी मानते हैं और । न ही भौतिकतावादी मानसिकता को गलत। वे स्वयं अपना उदाहरण देते हुए न्यूनतम वस्तुओं का उपभोग करने की अपनी प्रवृत्ति के विषय में बताते हैं और कहते हैं कि समृद्धि मनुष्य में सुरक्षा व विश्वास के भाव को संचारित करती है, जो उनमें स्वतन्त्र होने के भाव को पैदा करती है। कलाम जी ब्रह्माण्ड का व बगीचे में खिले फूलों का उदाहरण देते हुए प्रकृति द्वारा प्रत्येक कार्य को पूर्णता से करने के गुण को उद्धारित करते हैं। वे महर्षि अरविन्द द्वारा प्रत्येक वस्तु को ऊर्जा का अंश मानने का उदाहरण देते हुए कहते । हैं कि आत्मा व पदार्थ सभी का अस्तित्व है, दोनों परस्पर जुडे हुए हैं। अतः भौतिकता कोई बुरी चीज नहीं है।
स्वेच्छा पूर्ण कार्य ही आनन्द का साधन
कलाम जी कहते हैं कि भौतिकता को सदैव निम्न स्तरीय माना गया है और न्यनतम में । जीवन व्यतीत करने को श्रेयस्कर कहा जाता है। वे कहते हैं कि स्वयं गाँधी जी ने ऐसा । जीवन व्यतीत किया, क्योंकि यह उनकी इच्छा थी। मनष्य को सदैव अपने भीतर से । उपजी इच्छाओं के अनुरूप जीवन-शैली को अपनाना चाहिए, अनावश्यक रूप से त्याग । की प्रतिमूर्ति बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। वे कहते हैं कि युवा छात्रों से मिलने का । मूल उद्देश्य उन्हें इसी गुण से परिचित कराते हुए उन्हें सुख-सुविधाओं से पूर्ण जीवन के सपने देखने और उन्हें पूर्ण करने के लिए शुद्ध भाव से प्रयास करने के लिए प्रेरित । करना है। ऐसा करने के उपरान्त ही वे अपने चारों ओर खुशियों का प्रसार कर पाएंगे।
गद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर
- में खासतौर से युवा छात्रों से ही क्यों मिलता हूँ? इस सवाल
का जवाब तलाशते हुए मैं अपने छात्र जीवन के दिनों के बारे
में सोचने लगा। रामेश्वरम के द्वीप से बाहर निकलकर यह
कितनी लम्बी यात्रा रही। पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो विश्वास
नहीं होता। आखिर वह क्या था, जिसके कारण यह सम्भव हो
सका? महत्त्वाकांक्षा? कई बातें मेरे दिमाग में आती हैं। मेरा
ख्याल है कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि मैंने अपने
योगदान के मुताबिक ही अपना मूल्य आँका। बुनियादी बात
जो आपको समझनी चाहिए, वह यह है कि आप जीवन की
अच्छी चीजों को पाने का हक रखते हैं, उनका जो ईश्वर की
दी हुई हैं। जब तक हमारे विद्यार्थियों और युवाओं को यह
भरोसा नहीं होगा कि वे विकसित भारत के नागरिक बनने के
योग्य हैं, तब तक वे जिम्मेदार और ज्ञानवान नागरिक भी कैसे बन सकेंगे। विकसित देशों की समृद्धि के पीछे कोई रहस्य नहीं छिपा है। ऐतिहासिक तथ्य बस इतना है कि इन राष्ट्रों-जिन्हें जी-8 के नाम से पुकारा जाता है के लोगों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस विश्वास को पुख्ता किया कि मजबूत और समृद्ध देश में उन्हें अच्छा जीवन बिताना है। तब सच्चाई उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप ढल गई।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) लेखक अपने छात्र जीवन के विषय में क्यों सोचने लगता है?
उत्तर लेखक को युवा छात्रों से मिलना, उनसे बातें करना अत्यधिक रुचिकर लगता था। वह स्वयं की युवा छात्रों से मिलने की प्रवृत्ति पर प्रश्न अंकित करता है कि उसे यह क्यों अच्छा लगता है? और इसी प्रश्न का उत्तर ढूँढते हुए वह अपने छात्र जीवन के विषय में सोचने लगता है।
(ii) लेखक के अनुसार मनुष्य जीवन में बड़ा बनने का मल कारण क्या है?
उत्तर कलाम जी के अनुसार, मनुष्य का जीवन में बड़ा बनने का मूल कारण उसकी महत्त्वाकांक्षा है। मनुष्य महत्त्वाकांक्षा के बल पर ही अपने जीवन में आगे बढ़ पाता है।
(iii) किसी राष्ट्र के युवा कब तक राष्ट्र की उन्नति में अपनी भूमिका नहीं निभा सकते?
उत्तर किसी राष्ट्र के नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं व विद्यार्थियों में जब तक यह विश्वास नहीं होगा कि वे स्वयं विकसित राष्ट्र के नागरिक बनने के योग्य हैं, तब तक वे राष्ट्र के विकास एवं उन्नति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते, क्योंकि राष्ट्र के विकास के लिए उन्हें स्वयं जिम्मेदारियों को उठाते हुए अपना योगदान देना होगा।
(iv) लेखक के अनुसार विकसित देशों की समद्धि के पीछे क्या तथ्य है?
उत्तर लेखक के अनुसार विकसित देशों की समृद्धि के पीछे कोई रहस्य नहीं छिपा, अपितु इसके पीछे छिपा ऐतिहासिक तथ्य यह है कि इन देशों के नागरिक समृद्ध राष्ट्र में जीने का विश्वास रखते हैं।
(v) ‘महत्त्वाकांक्षा’ एवं ‘विद्यार्थी शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हए सन्धि का नाम भी लिखिए।
उत्तर महत्त्व + आकांक्षा = महत्त्वाकांक्षा (दीर्घ सन्धि)
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (दीर्घ सन्धि)
- मैं यह नहीं मानता कि समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के
विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच
है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भोग करते
हुए जीवन बिता रहा हूँ, लेकिन में सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता
हूँ, क्योंकि यह अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो
अन्तत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है। आप
आस-पास देखेंगे, तो पाएंगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम
आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में
आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी अथवा ऊपर की तरफ
ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपके अनन्त तक फैला दिखाई देगा।
आपके यकीन से भी परे।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश ‘हम और हमारा आदर्श’ से लिया गया है। इसके लेखक ए. पी. जे. अब्दुल कलाम हैं।
(ii) लेखक अध्यात्म एवं भौतिकता को एक-दूसरे के समान मानने के विषय में क्या तर्क देता है?
उत्तर लेखक अध्यात्म एवं भौतिकता को एक-दूसरे के समान मानने के विषय में तर्क देते हैं कि समृद्धि अर्थात् धन, वैभव व सम्पन्नता को अध्यात्म के समान महत्त्व देते हुए उन्हें एक-दूसरे का विरोधी मानने से इनकार करते हैं तथा साथ ही वे भौतिकतावादी
मानसिकता रखने वालों को गलत मानने के पक्षधर नहीं हैं।
(iii) भौतिक समृद्धि के महत्त्व के विषय में लेखक का मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर लेखक मनुष्य के जीवन में धन-वैभव, सम्पन्नता आदि को महत्त्वपूर्ण मानते हुएउत्तर स्पष्ट करते हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएँ मनुष्य में सुरक्षा एवं विश्वास का भाव उत्पन्न करती हैं, जो उनकी स्वतन्त्रता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का
निर्वाह करती हैं तथा मनुष्य में आत्मबल का संचार करती हैं। ।
(iv) लेखक के अनुसार मनुष्य को जीवन में भौतिक एवं आध्यात्मिक वस्तुओं को किस प्रकार स्वीकार करना चाहिए?
उत्तर लेखक के अनुसार जिस प्रकार प्रकृति अपने सभी कार्य पूरे समभाव से करती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में वस्तुओं को भौतिक एवं आध्यात्मिक दो वर्गों में विभाजित नहीं करना चाहिए, अपितु उन्हें सहज भाव से एक स्वरूप स्वीकारते हुए जीवन को जीना चाहिए।
(v) ‘समृद्धि’ शब्द के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर समृद्धि-अत्यन्त सम्पन्नता, धन।
न्यूनतम में गुजारा करने और जीवन बिताने में भी निश्चित रूप से कोई हर्ज नहीं है। महात्मा गाँधी ने ऐसा ही जीवन जिया था, लेकिन जैसा कि उनके साथ था, आपके मामले में भी यह आपकी पसन्द पर निर्भर करता है। आपकी ऐसी जीवन-शैली इसलिए है, क्योंकि इससे वे तमाम जरूरतें पूरी होती हैं, जो आपके भीतर की गहराइयों से उपजी होती हैं, लेकिन त्याग की प्रतिमूर्ति बनना और जोर-जबरदस्ती से चनने-सहने का गुणगान करना अलग बातें हैं।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) लेखक के अनुसार किस प्रकार का जीवन व्यतीत करने में परेशानी नहीं है?
उत्तर लेखक स्पष्ट करते हैं कि भौतिकता को सदैव निम्न स्तरीय माना गया और न्यूनतम में जीवन व्यतीत करने को श्रेयस्कर कहा जाता है अर्थात् यदि हमें कम में भी जीवन व्यतीत करने को कहा जाए, तो इसमें कोई परेशानी नहीं है।