कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर – परिचय – राबर्ट नर्सिंग होम में |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी गद्य- | कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर // राबर्ट नर्सिंग होम में |
Chapter | 4 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
संक्षिप्त परिचय कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर |
नाम | कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर |
जन्म | 1906 ई. |
जन्म स्थान | देवबन्द (सहारनपुर) |
पिता का नाम | पण्डित रमादत्त मिश्र |
शिक्षा | हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत का स्वाध्ययन तथा खुर्जा की संस्कृत पाठशाला से शिक्षा ग्रहण की। |
लेखन विधा | रेखाचित्र, संस्मरण, निबन्ध। |
भाषा | तत्सम प्रधान, शुद्ध तथा साहित्यिक खड़ी बोली। |
शैली | भावात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक, नाटकीय। |
साहित्यिक पहचान | पत्रकार और साहित्यकार में |
साहित्यि स्थान | प्रभाकर जी हिन्दी-साहित्य में एक महान् गद्यकार व साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। |
मृत्यु | 1995 ई. |
जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का जन्म 1906 ई. में देवबन्द (सहारनपुर) के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. रमादत्त मिश्र था। वे कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे। प्रभाकरजी की आरम्भिक शिक्षा ठीक प्रकार से नहीं हो पाई; क्योंकि इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इन्होंने स्वाध्याय से ही हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया तथा कुछ समय तक खुर्जा की संस्कृत पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की। वहाँ पर राष्ट्रीय नेता आसफ अली का व्याख्यान सुनकर ये इतने अधिक प्रभावित हुए कि परीक्षा बीच में ही छोड़कर राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े। तत्पश्चात् इन्होंने अपना शेष जीवन राष्ट्रसेवा के लिए अर्पित कर दिया। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इन्होंने स्वयं को पत्रकारिता में लगा दिया। लेखन के अतिरिक्त अपने वैयक्तिक स्नेह और सम्पर्क से भी इन्होंने हिन्दी के अनेक नए लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया। 9 मई, 1995 को इस महान् साहित्यकार का निधन हो गया।
साहित्यिक सेवाएँ
हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रकारों, संस्मरणकारों और निबन्धकारों में प्रभाकरजी का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी रचनाओं में कलागत आत्मापरकता चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता को ही प्रमुखता प्राप्त हुई है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में इन्होंने स्वतन्त्रता सेनानियों के अनेक मार्मिक संस्मरण लिखे। इस प्रकार संस्मरण, रिपोर्ताज और पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रभाकर जी की सेवाएँ चिरस्मरणीय हैं।
कृतियाँ
प्रभाकर जी के कुल 9 ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं
रेखाचित्र नई पीढ़ी के विचार, जिन्दगी मुस्कुराई, माटी हो गई सोना, भूले-बिसरे चेहरे।
लघु कथा आकाश के तारे, धरती के फूल)
संस्मरण दीप जले-शंख बजे।
ललित निबन्ध क्षण बोले कण मुस्कराये, बाजे पायलिया के धुंघरू। सम्पादन प्रभाकर जी ने नया जीवन’ और ‘विकास’ नामक दो समाचार-पत्रों का सम्पादन किया। इनमें इनके सामाजिक, राजनैतिक और शैक्षिक समस्याओं पर आशावादी और निर्भीक विचारों का परिचय मिलता है। इनके अतिरिक्त, ‘महके आँगन चहके द्वार’ इनकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है।
भाषा-शैली
प्रभाकर जी की भाषा सामान्य रूप से तत्सम प्रधान, शुद्ध और साहित्यिक खड़ी बोली है। उसमें सरलता, सुबोधता और स्पष्टता दिखाई देती है। इनकी भाषा भावों और विचारों को प्रकट करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने इनकी भाषा को और अधिक सजीव तथा व्यावहारिक बना दिया है। इनका शब्द संगठन तथा वाक्य-विन्यास अत्यन्त सुगठित है। इन्होंने प्राय: छोटे-छोटे व सरल वाक्यों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में स्वाभाविकता, व्यावहारिकता और भावाभिव्यक्ति की
क्षमता है। प्रभाकर जी ने भावात्मक, वर्णनात्मक, चित्रात्मक तथा नाटकीय शैली का प्रयोग मुख्य रूप से किया है। इनके साहित्य में स्थान-स्थान पर व्यंग्यात्मक शैली के भी दर्शन होते हैं।
हिन्दी साहित्य में स्थान
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ मौलिक प्रतिभासम्पन्न गद्यकार थे। इन्होंने हिन्दी-गद्य की अनेक नई विधाआ पर अपनी लेखनी चलाकर उसे समृद्ध किया है। हिन्दी भाषा के साहित्यकारों में अग्रणी और अनेक दृष्टियों से एक समर्थ गद्यकार के रूप में प्रतिष्ठित इस महान् साहित्कार को, मानव-मूल्यों के सजग प्रहरी के रूप में भी सदैव स्मरण किया जाएगा।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ राबर्ट नर्सिंग होम में प्रभाकर जी द्वारा लिखित रिपोर्ताज है। इसमें लेखक ने इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम की एक साधारण घटना को इतने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है कि यह घटना हमारे लिए सच्चे धर्म अर्थात मानव-सेवा और समता का पाठ पढ़ाने वाली घटना बन गई है। लेखक ने इस नर्सिंग होम में सेवारत तीन ईसाई महिलाओं-मदर मारिट, मदर टेरेजा और सिस्टर किस्ट हैल्ड की उदार मानवता तथा निःस्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा करने का वर्णन किया है।
लेखक का अतिथि से परिचारक बनना
लेखक कल तक जिनका अतिथि था, आज उनका परिचारक बन गया है, क्योंकि उसकी आतिथया अचानक बीमार हो गईं और लेखक को उन्हें इन्दौर के राबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती कराना पड़ा। नर्सिंग होम में लेखक की मुलाकात महिला नौं मदर मार्गरेट, मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड से होती है।
पीड़ितों के जीवन में हँसी बिखेरती मदर टेरेजा
लेखक अपने बीमार आतिथेया की चिन्ता में डूबा था। उसी समय राबर्ट नर्सिंग होम की अध्यक्षा मदर टेरेजा ने प्रवेश किया। उन्होंने एक माँ के समान रोगी के परिजनों को निर्देश दिया कि रोगी के पास निराश और दु:खी चेहरा लेकर नहीं जाना चाहिए। साथ ही मदर (जो माँ के समान भावनाओं को अपने चेहरे एवं गतिविधियों में समाहित किए हुए थी) ने रोगी के दोनों गालों पर अपने गोरे हाथ थपथपाए, तब रोगी के चेहरे पर एक मुसकान आ गई। इस प्रकार माँ के समान दिखने वाली नर्स ने लेखक के चेहरे पर हँसी ला दी, तभी डॉक्टर ने कमरे में प्रवेश किया और मदर टेरेजा से कहा कि तुम रोगियों में हँसी बिखेरती हो।
मदर टेरेजा और क्रिस्ट हैल्ड साथ-साथ
फ्रांस की रहने वाली मदर टेरेजा और जर्मनी की रहने वाली क्रिस्ट हैल्ड, दोनों के रूप, रस, ध्येय (उद्देश्य) सब एक जैसे लग रहे थे। दोनों में कहीं से भी असमानता नजर नहीं आ रही थी। लेखक को यह जानने की अत्यधिक उत्सुकता हुई कि जर्मनी के हिटलर ने फ्रांस को तबाह कर दिया था। दोनों एक-दूसरे के शत्रु देश बन गए थे, लेकिन यहाँ तो शत्रु देश की नसों के बीच मित्रता का अद्भुत संगम दिख रहा था। इसी दौरान लेखक को यह अहसास हुआ कि ये दोनों महिला नसें विरोधी देशों की होने के बावजूद एक हैं। उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
भेदभाव की दीवारें मनुष्य द्वारा निर्मित
लेखक को मदर टेरेजा एवं क्रिस्ट हैल्ड के अनुभव से अहसास हुआ कि वास्तव में धर्म, जाति. राष्ट. वर्ग आदि को आधार बनाकर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव करने वाले वास्तव में मनुष्य ही है। मनुष्य ही अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए भेदभाव की भिन्न-भिन्न दीवारें खड़ी करता है।
क्रिस्ट हैल्ड और लेखक के मध्य वार्तालाप
क्रिस्ट हैल्ड ने पाँच वर्षों के लिए सेवा करने का व्रत लिया है। वह रोगी के काले घने बाल देखकर अपने पिता की यादों में खो जाती है। लेखक को लगता है कि जैसे वह स्वयं क्रिस्ट हैल्ड है, जो अपने माता-पिता से हजारों मील दूर एक अनजान देश में बिलकुल अकेला है, यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ गए। क्रिस्ट हैल्ड लेखक के आँसुओं को रूमाल से पौंछती है। लेखक उससे पूछता है कि अपना घर छोड़ने के बाद तुम रोई थीं? वह भोले स्वर में कहती है, नहीं परन्तु माँ बहुत रोई थी। लेखक को आश्चर्य होता है, वह अकसर हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन भाषाओं के शब्द मिलाकर बोलती है। जब लेखक ने उसे बिस्किट भेंट किए तो वह धन्यवाद, बैंक यू, तांग शू बोलकर हँसती-हँसती वहाँ से चली गई। .
मदर टेरेजा द्वारा पूजा-गृहों के सम्मेलन की चर्चा
लेखक मदर टेरेजा से प्रश्न करता है कि अपने घर से आने के बाद क्या आप कभी घर नहीं गई। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने एक कहानी सुनाई। कई वर्ष पहले फ्रांस में विश्व भर के पूजा-गृहों का सम्मेलन हुआ है। भारत की दो मदर भी प्रतिनिधि बनकर उस सम्मेलन में गई थीं वे दोनों फ्रांस की ही थीं। उनके माता-पिता फ्रांस में ही थे। उन्हें पता था कि उनकी बेटियाँ आ रही हैं। जब दोनों माताएँ अपनी बेटियों का स्वागत करने आईं तो वे अपनी बेटियों को पहचान नहीं पाईं और एक-दूसरे से पूछने लगीं, तुम्हारी बेटी कौन-सी है? अन्त में उनका नाम पूछकर उन्हें गले से लगाया। कहानी पूरी होते ही मदर टेरेजा वहाँ से उठकर चली गई, क्योंकि उनमें से एक न पहचाने जाने वाली बेटी वे स्वयं ही थीं।
मदर टेरेजा के आत्म त्याग की भावना का परिचय
मदर टेरेजा रोगियों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थीं। वह असह्य रोगियों की सेवा किया करती थीं। उन्होंने इस जगत् में मानवता के लिए स्वयं को अर्पित कर दिया था। वह पीड़ित व्यक्तियों के लिए प्रार्थना आदि भी किया करती थीं। उन्होंने अपना प्यार अधिक दुःखी व्यक्ति के लिए समर्पित कर दिया था।
वृद्ध मदर मार्गरेट का सेवा भाव तथा जादई व्यक्तित्व
लेखक वृद्ध मदर मार्गरेट के सेवा भाव से बहुत प्रभावित हुआ। उसने उनके जादुई व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए उन्हें गडिया कहा और साथ ही स्पष्ट किया कि उनकी चाल चुस्त और व्यवहार मस्त था। वह रोगियों से मुसकराते हुए बात करती थीं। उनको देखकर व्यक्ति के मन का दु:ख दूर हो जाता था। इस मानव सेवा में वे ऐसी आनन्दमग्न थीं कि उसके सामने उन्हें जीवन की कोई भी इच्छा तुच्छ (छोटी) दिखाई देती थीं
परोपकार एवं मानवीयता की भावना को च. रेतार्थ करना
लेखक कहना चाहता है कि राबर्ट नर्सिंग होम की महिला नर्से जिस आत्मीयता, ममता, स्नेह, सहानुभूति की भावना से रोगियों की सेवा कर रही हैं, वह सचमुच सभी के लिए अनुकरणीय हैं। हम भारतीय तो गीता को पढ़ते हैं, समझते हैं और याद रखते हैं। इतना करके ही हम अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं, लेकिन ये महिला नर्से तो उस गीता के सार को अपने जीवन में उतारती हैं। सच में ये धन्य हैं, ये मानव जाति के उज्ज्वल पक्ष हैं।
गद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर
प्रश्न-पत्र में गंद्य भाग से दो गद्यांश दिए जाएंगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।
- नश्तर तेज था, चुभन गहरी पर मदर का कलेजा उससे अछूता रहा। बोली, “हिटलर बुरा था, उसने लड़ाई छेड़ी, पर उससे इस लड़की का भी घर ढह गया और मेरा भी; हम दोनों एक।” ‘हम दोनों एक मदर टेरेजा ने झूम में इतने गहरे डूब कर कहा कि जैसे मैं उनसे उनकी लड़की को छीन रहा था और उन्होंने पहले ही दाँव में मुझे चारों खाने दे मारा। मदर चली गईं, मैं सोचता रहा: मनुष्य-मनुष्य के बीच मनुष्य ने ही कितनी दीवारें खड़ी की हैं-ऊँची दीवारें, मजबूत फौलादी दीवारें, भूगोल की दीवारें, जाति-वर्ग की दीवारें, कितनी मनहूस, कितनी नगण्य, पर कितनी अजेया मैंने बहुतों को रूप से पाते देखा था, बहुतों को धन से और गुणों से भी बहुतों को पाते देखा था, पर मानवता के आँगन में समर्पण और प्राप्ति का यह अद्भुत सौम्य स्वरूप आज अपनी ही आँखों देखा कि कोई अपनी पीड़ा से किसी को पाए और किसी का उत्सर्ग सदा किसी की पीड़ा के लिए ही सुरक्षित रहे।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश ‘राबर्ट नर्सिंग होम’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।
(ii) मनुष्य ने मनुष्य के बीच किस प्रकार की दीवारें खड़ी की है।
उत्तर मनुष्य ने मनुष्य को लड़ाने के लिए जाति, धर्म, वर्ग तथा भौगोलिक सीमा आदि- की दीवारें खड़ी की हैं। ये दीवारें इतनी सूक्ष्म हैं कि इन पर विजय पाना अब मनुष्य की सामर्थ्य में भी नहीं है।
(iii) लेखक ने व्यक्तियों को किन कारणों से प्रसिद्धि प्राप्त करते हुए देखा है?
उत्तर लेखक ने अनेक व्यक्तियों को अपने रूप-सौन्दर्य, आर्थिक सम्पन्नता तथा सद्गुणों एवं सद्व्यवहार के कारण प्रसिद्धि प्राप्त करते हुए देखा है।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने मदर टेरेसा के मानवतावादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए हमें सन्देश दिया है कि हमें उदार मन, सद्भावना एवं निःस्वार्थ भाव से मानव सेवा करनी चाहिए।
(v) जिसे जीता न जा सके वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए।
उत्तर ‘जिसे जीता न जा सके’ वाक्यांश के लिए एक शब्द ‘अजेय’ है।
- आदमियों को मक्खी बनाने वाला कामरूप का जादू नहीं, मक्खियों को आदमी बनाने वाला जीवन का जादू-होम की सबसे बुढ़िया मदर मार्गरेटा कद इतना नाटा कि उन्हें गुड़िया कहा जा सके, पर उनकी चाल में गजब की चुस्ती, कदम में फुती और व्यवहार में मस्ती, हँसी उनकी यों कि मोतियों की बोरी खुल पड़ी और काम यों कि मशीन मात माने। भारत में चालीस वर्षों से सेवा में रसलीन, जैसे और कुछ उन्हें जीवन में अब जानना भी तो नहीं।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) मदर मार्गरेट कौन थीं? लेखक ने उनके व्यक्तित्व का वर्णन किस रूप में किया?
उत्तर मदर मार्गरेट राबर्ट नर्सिंग होम की सबसे वृद्ध मदर थीं। उनका कद एक गुड़िया की भाँति छोटा था। वे व्यवहार में खुशमिजाज एवं फुर्तीली स्वभाव की थीं। ..
(ii) लेखक ने नर्सिंग होम की मदर मार्गरेट को जादूगरनी क्यों कहा है?
उत्तर मदर मार्गरेट अपनी ममता, सेवा भावना से एक दीन-हीन निराश रोगी के जीवन में आशा का संचार करके उन्हें स्वस्थ, हँसता-खेलता व्यक्ति बना देती थीं। इसलिए लेखक ने मदर मार्गरेट को जादूगरनी कहा है।
(iii) ‘जैसे और कुछ उन्हें जीवन में सब जानना भी तो नहीं।’ से लेखक का । क्या आशय है?
उत्तर लेखक स्पष्ट करता है कि मदर मार्गरेट अपना कार्य एकाग्र एवं मग्न होकर करती थीं कि जीवन में वह अब किसी और वस्तु को प्राप्त करना ही नहीं नहीं चाहती। चाहतीं। वे इस सेवा के अतिरिक्त किसी अन्य विषय में सोचना व जानना भी
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने क्या अभिव्यक्त किया है?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने मदर मार्गरेट की सेवा भावना तथा उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए उनके परोपकारी चरित्र की अभिव्यक्ति की है। लेखक ने इसी के साथ उनके नि:स्वार्थ भाव से । मान-सेवा के गुण को भी उजागर करने का सफल प्रयास किया है।
(v) ‘जीवन’, ‘फुर्ती शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर जीवन – मृत्युः फुर्ती – सुस्ती।
- मझे मानव-जाति की दुर्दम-निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है। मनुष्य की जीवनी-शक्ति बड़ी निर्मम है,वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। न जाने कितने धर्माचारों, विश्वासों, उत्सवों और व्रतों को
धोती-बहाती सी जीवन-धारा आगे बढ़ी है। संघर्षों से मनुष्य ने नई
शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है, वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ में मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा (जीने की इच्छा) है। वह गंगा की अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है। सभ्यता और संस्कृति का मोह क्षण-भर बाधा उपस्थित करता है, धर्माचार का संस्कार थोड़ी देर तक इस धारा से टक्कर लेता है, पर इस दुर्दम धारा में सब कुछ बह जाता है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने किस ओर संकेत किया है?
उत्तर मानव सभ्यता एक प्रवाहमान धारा के समान है। हमारी सभ्यता और संस्कृति भी अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का मिला-जुला रूप है। इन्हीं तथ्यों की ओर लेखक ने संकेत किया है।
(ii) मानव जाति किस मोह को रौंदती चली आ रही है?
उत्तर मनुष्य की जीवन-शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है। अब तक न जाने उसने कितनी जातियों एवं संस्कृतियों को अपने पीछे छोड़ दिया है।
(iii) मानव का व्यवहार किस प्रकार परिवर्तित होता है?
उत्तर मानव कभी भी वर्तमान स्थिति से सन्तुष्ट नहीं रहता। अतः हमेशा ही उसके व्यवहार एवं संस्कृति में परिवर्तन होता रहता है। इसके लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहा है।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किन बातों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश में लेखक मनुष्य की जीने की इच्छा के बारे में ध्यान आकृष्ट कराना चाहता है। वह बताना चाहता है कि मनुष्य की जीने की इच्छा इनती प्रबल है कि अब तक न जाने कितनी सभ्यताओं और संस्कृतियों का उत्थान और पतन हुआ है। न जाने कितनी जातियाँ और संस्कृतियाँ पनपी और नष्ट हो गईं, परन्तु आज जो अब तक शुद्ध और जीवित है, वह है मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा अर्थात् उसकी जीने की इच्छा।
(v) ‘दुर्दम’ और ‘निर्मम’ शब्दों में से उपसर्ग और मूल शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर दुर्दम = ‘दुर्’ (उपसर्ग), दम (मूल शब्द) निर्मम = ‘निर् ‘ (उपसर्ग), मम (मूल शब्द)
- आज जिसे हम बहुमूल्य संस्कृति मान रहे हैं, वह क्या ऐसी ही बनी रहेगी? सम्राटों-सामन्तों ने जिस आचार-निष्ठा को इतना मोहक और मादक रूप दिया था, वह लुप्त हो गई; धर्माचार्यों ने जिस ज्ञान और वैराग्य को इतना महार्घ समझा था, वह लुप्त हो गया; मध्ययुग के मुसलमान रईसों के अनुकरण पर जो रस-राशि उमड़ी थी, वह वाष्प की भाँति उड़ गई, क्या यह मध्ययुग के कंकाल में लिखा हुआ व्यावसायिक-युग का कमल ऐसा ही बना रहेगा? महाकाल के प्रत्येक पदाघात में धरती धसकेगी। उसके कुंठनृत्य की प्रत्येक चारिका कुछ-न-कुछ लपेटकर ले जाएगी। सब बदलेगा, सब विकृत होगा-सब नवीन बनेगा।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का क्या उददेश्य है?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य यह बताना है कि सभ्यता एवं संस्कृति निरन्तर परिवर्तनशील हैं। समय के प्रहार से कोई नहीं बच सकता। …
(ii) धर्माचार्यों के महाघ ज्ञान-वैराग्य का क्या हुआ?
उत्तर लेखक कहता है कि संसार का नियम है, जो आज जिस रूप में है, कल वह अवश्य नए रूप में परिवर्तित होगा। अतः धर्म के आचार्यों ने जिस ज्ञान और वैराग्य को कीमती व प्रतिष्ठित समझा था, आज उसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
(iii) मध्ययुगीन रस-राशि से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर मध्ययुगीन रस-राशि से लेखक का तात्पर्य मध्ययुग में मुस्लिम शासकों के अनुकरण से समाज में उमड़ी रसिक संस्कृति से है। लेखक कहता है कि वह ‘संस्कृति भी भाप बनकर कहाँ लुप्त हो गई अर्थात् समाप्त हो गई।
(iv) निम्न शब्दों का अर्थ लिखिए, मोहक, विकृत, बहुमूल्य।
उत्तर मोहक – आकर्षित, मोहने वाला विकृत – खण्डित बहुमूल्य – कीमती .
(v) निम्न शब्दों के विलोम लिखिए – वैराग्य, नवीन।
उत्तर वैराग्य – अनुराग नवीन – प्राचीन