UP Board Master श्रवण कुमार डॉ. शिवबालक शुक्ल
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी खण्डकाव्य | श्रवण कुमार – डॉ. शिवबालक शुक्ल |
Chapter | 6 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
(मेरठ, आजमगढ़, बस्ती, रायबरेली, हरदोई, बांदा, बहराइच, हमीरपुर जिलों के लिए)
प्रश्न-उत्तर
प्रश्न-पत्र में पठित खण्डकाव्य से चरित्र-चित्रण, खण्डकाव्य के तत्वों व तथ्यों पर आधारित दो लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक का उत्तर लिखना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
कथावस्तु पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1. ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ काव्य के श्रवण’ शीर्षक सर्ग (चतुर्थी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के अभिशाप’ सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में वर्णित ‘आश्रम’ शीर्षक सर्ग की प्रमुख विशेषताओं पर अपने विचार लिखिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अयोध्या और आश्रम’ खण्ड की कथा संक्षेप में लिखिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग ‘सन्देश सर्ग’ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में नौ सर्ग हैं। खण्डकाव्य की सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है
प्रथम सर्ग: अयोध्या
अयोध्या के गौरवशाली इतिहास में अनेक महान् राजाओं की गौरव गाथा छिपी हुई है। अनेक राजाओं; जैसे-पृथु, इक्ष्वाकु, ध्रुव, सगर, दिलीप, रघु ने अयोध्या को प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया। इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चन्द्र और गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ ने शासन किया। राजा रघु के नाम पर ही इस कुल का नाम रघुवंश पड़ा। महाराज दशरथ राजा अज के पुत्र थे। अयोध्या के प्रतापी शासक राजा दशरथ के राज्य में सर्वत्र शान्ति थी। चारों ओर कला-कौशल, उपासना-संयम तथा धर्मसाधना का साम्राज्य था। सभी वर्ग सन्तुष्ट थे। महाराज दशरथ स्वयं एक महान् धनुर्धर थे, जो शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्धहस्त थे।
द्वितीय सर्ग : आश्रम
अत्यन्त आज्ञाकारी एवं अपने माता-पिता का भक्त था।
सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था, जहाँ श्रवण कुमार अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता के साथ सुख एवं शान्तिपूर्वक निवास करता था। वह
तृतीय सर्ग: आखेट
एक दिन गोधूलि बेला में राजा दशरथ विश्राम कर रहे थे, तभी उनके मन में आखेट की इच्छा जाग्रत हुई। उन्होंने अपने सारथी को बुलावा भेजा। रात्रि में सोते समय राजा ने एक विचित्र स्वप्न देखा कि एक हिरन का बच्चा उनके बाण से मर गया और हिरनी खड़ी आँसू बहा रही है। राजा सूर्योदय से बहुत पहले जगकर आखेट हेतु वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं। दूसरी ओर श्रवण कुमार माता-पिता की आज्ञा से जल लेने के लिए नदी के तट पर जाता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं। यह बाण सीधे श्रवण कुमार को जाकर लगता है, वह चीत्कार कर उठता है। श्रवण कुमार की चीत्कार सुन राजा दशरथ चिन्तित हो उठते हैं।
चतुर्थ सर्ग: श्रवण
राजा दशरथ के बाण से घायल श्रवण कुमार को यह समझ में नहीं आता है कि उसे किसने बाण मारा? वह अपने अन्धे माता-पिता की चिन्ता में व्याकुल है कि अब उसके माता-पिता की देखभाल कौन करेगा? वह बड़े दु:खी मन से राजा से कहता है कि उन्होंने एक नहीं बल्कि एक साथ तीन प्राणियों की हत्या कर दी है। उसने राजा से अपने माता-पिता को जल पिलाने का आग्रह किया। इतना कहते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा दशरथ अत्यन्त दु:खी हुए और स्वयं जल लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गए।
पंचम सर्ग : दशरथ
राजा दशरथ दुःख एवं चिन्ता में भरकर सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे। वे अत्यन्त आत्मग्लानि एवं अपराध भावना से भरे हुए थे। पश्चाताप, आशंका और भय से भरकर वे आश्रम पहुँच जाते हैं।
षष्ठ सर्ग : सन्देश (मार्मिक प्रसंग)
श्रवण के माता-पिता अपने आश्रम में पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस बात से आशंकित थे कि अभी तक उनका पत्र लौटकर क्यों नहीं आया? उसी समय उन्होंने किसी के आने की आहट सनी। वे राजा दशरथ को श्रवण कुमार ही समझ रहे थे। जब राजा ने उन्हें जल लेने के लिए कहा, तो उनका भ्रम दूर हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें अपना परिचय दिया और जल लाने का कारण बताया। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके वृद्ध माता-पिता अत्यन्त व्याकुल हो उठे।
सप्तम सर्ग : अभिशाप
सप्तम सर्ग में ऋषि दम्पत्ति के करुण विलाप का चित्रण है। वे आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए नदी के तट पर पहुँचे और विलाप करते-करते अचेत हो जाते हैं। अचेत होते ही राजा दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि यह अपराध तुमसे अनजाने में हुआ है, पर इसका दण्ड तो तुम्हें भुगतना ही होगा। वह श्राप देते हैं कि जिस प्रकार पत्र-शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूँ, उसी प्रकार एक दिन तुम भी अपने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दोगे।
अष्टम सर्ग : निर्वाण
श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप को सुनकर राजा अत्यन्त दुःखी होते हैं। श्रवण के माता-पिता भी जब रो-रोकर शान्त होते हैं तो उन्हें श्राप देने का दु:ख होता है। अब पिता को आत्मबोध होता है और वे सोचते हैं कि यह तो नियति का विधान था। तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और उसने अपने माता-पिता को सांत्वना दी। पुत्र-शोक में व्याकुल माता-पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं।
नवम सर्ग: उपसंहार
राजा दशरथ दु:खी मन से अयोध्या लौट आते हैं। वे इस घटना का जिक्र किसी से नहीं करते हैं, परन्तु राम जब वन को जाने लगते हैं, तो उन्हें उस श्राप का स्मरण हो आता है और वह यह बात अपनी रानियों को बताते हैं।
प्रश्न 2. ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु का विवेचन कीजिए।
अथवा/ श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ काव्य में अंकित भारतीय संस्कृति का
सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार की
मातृ-पितृ भक्ति पर प्रकाश डालिए।
अथवा श्रवण कुमार एक सफल खण्डकाव्य है। इस पर प्रकाश
डालिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में कथावस्तु का सफल विन्यास हुआ है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर श्रवण कुमार खण्डकाव्य के रचयिता डॉ. शिवबालक शक्ल हैं। कवि ने इस खण्डकाव्य की रचना का आधार भावात्मकता को बनाया है। इस खण्ड काव्य में शुरू से लेकर अन्त तक भावों की ही प्रमुखता है। इस खण्डकाव्य की सबसे बड़ी विशेषता भी यही है। खण्डकाव्य की अन्य विशेषताएँ इसकी सहायक हैं। इस खण्डकाव्य की कथावस्तु की सभी विशेषताओं में भावों को ही कवि ने प्रथम स्थान दिया है। इस खण्डकाव्य की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
(i) कथानक या कथावस्तु ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथानक वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड से उद्धृत है, परन्तु कवि ने भावात्मकता से प्रेरित होकर कई जगहों पर कल्पना का भी आश्रय लिया है। जैसे-सारथी की कल्पना करना, दिव्य चमत्कार, देवत्व का प्रतिपादन आदि।
(ii) मानवीयता का सृजन ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में मानवीयता के आदर्शों का कवि ने सृजन किया है। इस परिप्रेक्ष्य में कवि ने श्रवण कुमार, उसके अन्धे माता-पिता और राजा दशरथ के चरित्र आदर्श एवं महान् हैं, जो अनुकरणीय भी हैं।
(iii) सव्यवस्थित ‘श्रवण कमार’ खण्डकाव्य का कथानक पूर्णरूपेण अच्छी प्रकार व्यवस्थित है। इसमें कहीं भी भावात्मक एवं भाषात्मक (भाषागत) असमानता दृष्टिगोचर नहीं होती।
(iv) भारतीय संस्कृति का अंकन इस खण्डकाव्य में कवि ने युग के अनुसार वर्ण-व्यवस्था, छुआछूत, समानता इत्यादि नवीनताओं का भी समावेश किया है, परन्तु भारतीय संस्कृति के मूल आधार को भी दृष्टिगत रखा है। जीवन मल्यों और भावों का अंकन भी उसी के अनुसार किया है। श्रवण की माता-पिता के प्रति असीम भक्ति और प्रेम, दशरथ का अपयश के भय से वन में घटित घटना को किसी को न बताना, श्राप देने के उपरान्त श्रवण के पिता का आत्मबोध कि नियतिवश हुई गलती पर उन्हें अपराधी (दशरथ) को दण्ड स्वरूप में श्राप नहीं देना चाहिए था। ये सभी बातें इस खण्डकाव्य में भारतीय संस्कृति की संवाहक के रूप में प्रस्तुत की गई हैं अर्थात् भारतीय संस्कृति की संवाहक बनकर आई हैं।
(v) स्वाभाविकता ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के पात्र, घटना, वातावरण आदि बिल्कुल स्वाभाविक प्रतीत होते हैं। खण्डकाव्य में कहीं भी ऐसा। प्रतीत नहीं होता जहाँ इन्हें बलपूर्वक थोपा गया हो। पात्रों के चिन्तन में तो सहृदयी भावुकता प्रत्येक जगह दिखाई देती है। चाहे चिन्तन श्रवण कुमार का हो, चाहे दशरथ का, चाहे श्रवण के अन्धे माता-पिता का कहीं भी कृत्रिमता के दर्शन नहीं होते हैं। पाठक को ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि घटना अभी घटी हो।
(vi) भारतीय दर्शन के आदशों का वर्णन कवि ने इस खण्डकाव्य में भारतीय दर्शन के आदर्शों-सत्य, अहिंसा, अस्तेय, शौच, सन्तोष, तप, प्रेम, संयम, कर्तव्यपरायणता इत्यादि के पालन करने पर बल दिया है। ऐसा करना भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम एवं श्रद्धा का प्रतीक है। इस सम्बन्ध में यहाँ एक कथन दर्शनीय है
दम, अस्तेय, अक्रोध, सत्य, धृति, विद्या, क्षमा, बुद्धि सुकुमार शौच तथा इन्द्रिय निग्रह हैं, दस सदस्य मेरे परिवार।
(vii) विषयानुरूपता कवि ने इस खण्डकाव्य में विषय के अनुसार ही भाषा और शैली, रस, छन्द, अलंकार आदि का प्रयोग किया है, जिसके कारण खण्डकाव्य के सौन्दर्य में अभिवृद्धि हुई है।
(viii) सर्ग-योजना इस खण्डकाव्य में कुल नौ सर्ग हैं, जिनमें भावात्मकता को पर्याप्त स्थान दिया गया है। इस खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग में मंगलाचरण और अन्तिम सर्ग में उपसंहार है। इस खण्डकाव्य की सर्ग-योजना उचित एवं सुन्दर है।
(xi) भक्ति का चरमोत्कर्ष इस खण्डकाव्य में मातृ-पितृ भक्ति का चरमोत्कर्ष देखने को मिलता है। यही इस खण्डकाव्य की सबसे बड़ी विशेषता भी है। इस खण्डकाव्य के प्रधान नायक के चरित्र की भी सबसे बड़ी विशेषता उसकी मातृ-पितृ भक्ति ही है। मातृ-पितृ भक्ति का ऐसा आदर्श, जिससे आगामी पीढ़ी के बालक प्रेरणा ग्रहण कर सकें अन्यत्र दुर्लभ है। इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए हम कह सकते हैं कि श्रवण कुमार एक सफल खण्डकाव्य है, जिससे मानवीय आदर्शों और भारतीय संस्कृति की भरणा प्राप्त होती है। इस खण्डकाव्य का कथानक भावात्मकता से परिपूर्ण ससम्बद्ध एवं प्रभावशाली है।
प्रश्न 3. ‘श्रवण कुमार के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य) पर प्रकाश डालिए।
अथवा श्रवण कुमार’ एक भावप्रधान (मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी घटना की मार्मिकता से पूर्ण) खण्डकाव्य है। सतर्क सोदाहरण प्रमाणित
कीजिए।
अथवा सिद्ध कीजिए कि ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में करुण रस की प्रधानता है।
उत्तर डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक पौराणिक कथानक पर आधारित है। कवि ने इसमें अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यन्त
कुशलता से किया है। यह खण्डकाव्य भावपक्षीय एवं कलापक्षीय दोनों दृष्टियों से उत्तम विशेषताओं को धारण किए हए है. जिनका विवेचन इस प्रकार है भावपक्षीय विशेषताएँ श्रवण कुमार खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) अन्तर्मुखी भावों की अभिव्यक्ति श्रवण कुमार खण्डकाव्य में मार्मिक स्थलों की कुशल अभिव्यक्ति की गई है। स्वप्न देखते समय, श्रवण कुमार को तीर से मरते देखकर, अभिशाप सर्ग में दशरथ का पश्चाताप एवं दुःख प्रकट हुआ है। तीर लगने के बाद श्रवण कुमार की मन:स्थिति का चित्रण कवि ने बड़ी कुशलता से किया है। कवि ने मन:विश्लेषण को स्वाभाविक अभिव्यक्ति
देने का प्रयत्न किया है।
(ii) भारतीय संस्कृति का गौरव गान प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय संस्कृति का गौरव गान किया है। मानव के आदर्शों एवं प्राचीन स्वरूप के गौरव का दर्शन कराना ही इस खण्डकाव्य का मल उददेश्य है। इसकी अभिव्यक्ति में। कवि ने अपनी पूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया है।
(iii) रस योजना इस खण्डकाव्य का प्रमुख रस करुण है। करुण रस का सहज स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। कवि ने रस योजना में अपनी प्रतिभा का सफल प्रयोग किया है। “निर्मम एक बाण ने उनसे, छीन लिया उनका वात्सल्या”
कलापक्षीय विशेषताएँ
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) भाषा-शैली प्रस्तुत खण्डकाव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ीबोली है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। पारिभाषिक और समसामयिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी दर्शनीय है। शैली की दृष्टि से इतिवृत्तात्मक, चित्रात्मक, आलंकारिक, छायावादी आदि शैलियों के दर्शन होते हैं। विभिन्न शैलियों का कुशल प्रयोग तो हुआ ही है, साथ ही अभिव्यंजना शक्ति के पूर्ण स्वरूप के दर्शन भी होते हैं।
(ii) अलंकार योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में उपमान-विधान के लिए विस्तृत भावभूमि का चयन किया गया है। श्लेष, यमक, वक्रोक्ति, वीप्सा, पुनरुक्ति, विरोधाभास, अनुप्रास आदि शब्दालंकारों के साथ ही उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, उदाहरण, सन्देह, यथासंख्य, परिसंख्या आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया गया है।
(iii) छन्द योजना प्रधान छन्द ‘वीर’ है। 16, 15 पर यति तथा अन्त में गुरु, लघु का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं 30 मात्रा वाले छन्द भी आ गए हैं। ऐसे मात्र 3 छन्द हैं और छन्द के दृष्टिकोण से यह सामान्य बात है। अन्तिम तीन छन्दों में ताटक और लावनी छन्दों का भी प्रयोग हुआ है। कवि ने इस खण्डकाव्य के माध्यम से युवावर्ग को श्रवण कुमार की भाँति बनने की प्रेरणा दी है। उनकी भाँति वह भी अपने जीवन में, अपने आचरण में इन आदर्शों को उतार सकें और गर्व से यह कह सकें कि ‘मुझे बाणों की चिन्ता नहीं सता रही है, मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है, लेकिन मुझे अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की चिन्ता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा?’
उद्देश्य
डॉ. शिवबालक शुक्ल ने इस खण्डकाव्य की रचना इस प्रधान उद्देश्य से की है, जिससे कि वह राष्ट्र को शक्तिशाली एवं समृद्ध बना सके। राष्ट्र शक्तिशाली एवं समद्ध तब बनेगा जब युवा नैतिक मूल्यों को जीवन में अपनाएँगे तथा अनैतिकता, उद्दण्डता और अनुशासनहीनता जैसे भयानक रोगों से बचेंगे। इसकी
शिक्षा इस खण्डकाव्य से मिलती है। यह खण्डकाव्य बालकों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
प्रश्न 4. ‘श्रवण कुमार’ काव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग में करुण रस का सांगोपांग वर्णन है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा “श्रवण कुमार खण्डकाव्य में करुणा और प्रेम की विह्वल
मन्दाकिनी प्रवाहित होती है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग की कथावस्तु की उद्धरण (उदाहरण) देते हुए समीक्षा कीजिए।
उत्तर ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथा वाल्मीकि रामायण के
अयोध्याकाण्ड के श्रवण कुमार के प्रसंग पर आधारित है। कवि द्वारा इस कथा में यग के अनुरूप परिवर्तन किया गया है तथा उसे नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस खण्डकाव्य में कुल नौ सर्ग हैं, जिनमें अन्तिम छ: सर्गों में करुण रस की धारा कवि द्वारा प्रवाहित की गई है। तीर लगने पर श्रवण का मार्मिक क्रन्दन, श्रवण के माता-पिता का करुण-विलाप, दशरथ की आत्मग्लानि, श्रवण के
पिता का दशरथ को श्राप देना, पुत्र के शोक में श्रवण के माता-पिता का प्राण त्यागना और दशरथ का दुःखी मन से अयोध्या वापिस आना आदि। ऐसे करुण रस से परिपूर्ण प्रसंग है, जिन्हें पढ़कर किसी भी सहृदय पाठक के मन में करुणा का भाव जाग्रत हुए बिना नहीं रह सकता। इस करुणा का यह प्रभाव है कि इस खण्डकाव्य की कथावस्तु साधारण-से-साधारण व्यक्ति के मानस पटल पर अमिट रूप से अंकित है और श्रवण कुमार का नाम माता-पिता की भक्ति का पर्याय बनकर रह गया है। इस सर्ग की यही मुख्य विशेषता भी है, इसी कारण यह पाठकों को अच्छा भी लगता है और उन्हें प्रभावित भी करता है।।
‘अभिशाप’ सर्ग इस खण्डकाव्य का सबसे बड़ा और प्रधान सर्ग है, जिसमें माता-पिता का पुत्र के प्रति प्रेम अर्थात् वात्सल्य रस और करुण रस का सुन्दर समन्वय है। इस सर्ग की मुख्य विशेषता यह है कि इस सर्ग में करुण रस के सभी अंगों को स्वाभाविक रूप से व्यक्त किया गया है। श्रवण कुमार के पार्थिव शरीर को स्पर्श करना, माता-पिता के मनोभावों का वर्णन, सिर पटकना, रोना आदि में
आलम्बन विभाव, उद्दीपन विभाव और अनुभाव के दर्शन होते हैं। स्मरण, गुण वर्णन, चिन्ता, प्रलाप और अभिलाषा आदि वृत्तियों की सहायता से करुण रस की उत्पत्ति हुई है, जो इस सर्ग में दर्शनीय है। इस सर्ग में श्रवण के माता-पिता का चरित्र देवत्व और मनुष्यत्व के मध्य संघर्ष करता हुआ प्रतीत होता है। ऋषि होकर भी वे क्रोध पर नियन्त्रण नहीं कर सके और पुत्र की हत्या के कारण क्रोध के
वशीभूत होकर दशरथ को श्राप देते हुए कहते हैं कि-
पुत्र-शोक में कलप रहा हूँ, जिस प्रकार मैं अजनन्दन।
सुत-वियोग में प्राण तजोगे, इसी भाँति करके क्रन्दन।।
श्रवण की माता के विलाप में भी करुण रस प्रकट हुआ है कवि द्वारा उसका वर्णन इन पंक्तियों में दर्शाया गया है-
मणि खोए भुजंग-सी जननी फन-सा पटक रही थी, शीश।
अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश।
इसी के साथ वात्सल्य रस का उदाहरण भी दृष्टव्य है ।
धरा स्वर्ग में रहो कहीं भी ‘माँ’ मैं रहूँ सदा अय प्यार।
रहो पुत्र तुम, ठुकराओ मत मुझ दीना का किन्तु दुलार।।
इस सर्ग के आखिर में श्रवण कुमार के माता-पिता में मनुष्यों के समान कमजोरी भी दिखाई गई है। उन्होंने पुत्र वध के कारण क्रोध के वशीभूत होकर दशरथ को श्राप दे दिया, किन्तु दशरथ की निर्दोष पत्नी के प्रति सहानुभूति भी दिखाई है। पत्र की हत्या करने वाले और उसकी सहधर्मिणी के प्रति संवेदनात्मक भाव कि ‘गेहूँ’ के साथ घुन पिसेगा मानव आदर्श की चरम सीमा को दर्शाता है।
इस सर्ग में दशरथ की अन्त:अनुभूति और उनके अन्त:मन का द्वन्द्व भी अपना विशेष महत्त्व रखता है। पश्चाताप और अपराध बोध से दबा हुआ एक राजा, श्रवण कुमार। के माता-पिता के सामने उनके पुत्र के पार्थिव शरीर के साथ जिस मन:स्थिति में उपस्थित है वह कवि की अनभव पर आधारित संवेदना का परिचायक है और उसकी उस स्थिति का वर्णन करने में रसों का जो अद्भुत समन्वय किया है, वह प्रशंसनीय है।
चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 5. ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्रांकन । कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के श्रवण कुमार की मातृ-पितृभक्ति पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार की चरित्रगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में श्रवण किन आदर्शों का प्रतीक है?
अथवा ‘चरित्र ही व्यक्ति को महान् बनाता है।’ इस कथन के सन्दर्भ में श्रवण कुमार के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के वर्ण्य-विषय की वर्तमान सन्दर्भो में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ का चरित्र-चित्रण करते हए यह बताइए कि वह भारतीय संस्कृति के किन आदर्शों का प्रतीक है?
अथवा ‘श्रवण कुमार’ में वर्णित आदर्श चरित्र से आज के परिप्रेक्ष्य में क्या शिक्षा मिलती है?
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख नायक/पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का नायक ऋषि पुत्र श्रवण कुमार है। वह सरयू के तट पर अपने अन्धे माता-पिता के साथ एक आश्रम में रहता है। कवि ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक चित्रित किया है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ।
(i) मातृ-पितृभक्त श्रवण कुमार एक आदर्श मातृ-पितृभक्त पुत्र है। वह हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करता है। वह अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा है। वह उन्हें काँवड़ में बिठाकर विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्राएँ कराता है। मृत्यु के समीप पहुँचने पर भी उसे सिर्फ अपन माता-पिता की ही चिन्ता सताती है।
(ii) सत्यवादी श्रवण कुमार सत्यवादी है। जब राजा दशरथ ब्रह्महत्या की सम्भावना प्रकट करते हैं, तो वह उन्हें साफ़-साफ़ बता देता है कि वह ब्रह्म कमार नहीं है। उसके पिता वैश्य और माता शद हैं।
(iii) क्षमाशील श्रवण कुमार स्वभाव से ही बड़ा सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईर्ष्या या द्वेष का भाव नहीं है। दशरथ द्वारा छोड़े गए बाण से आहत होने पर भी उसके मन में किसी प्रकार का क्रोध उत्पन्न नहीं होता है, इसके विपरीत वह उनका सम्मान ही करता है।
(iv) भाग्यवादी श्रवण कुमार भाग्य पर विश्वास करता है अर्थात् जो भाग्य में होता है वही मनुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य को भाग्य के अनुसार ही फल मिलता है। उसे कोई टाल नहीं सकता, यही जीवन का अटल सत्य है। दशरथ द्वारा बाण लगने में वह उन्हें कोई दोष नहीं देता इसे वह भाग्य का ही खेल मानता है।
(v) आत्मसन्तोषी श्रवण कुमार आत्मसन्तोषी है। उसे भोग व ऐश्वर्य की कोई कामना नहीं है। उसके मन में किसी वस्तु के प्रति कोई लोभ-लालच नहीं है। वह सन्तोषी जीव है। उसके मन में किसी को पीड़ा पहुँचाने का भाव ही जागृत नहीं होता-
“वन्य पदार्थों से ही होता,
रहता, मम जीवन-निर्वाह।
ऋषि हूँ, नहीं किसी को पीड़ा,
पहुँचाने की उर में चाह।।”
(vi) भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी वह भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। वह माता-पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करता है। अत: कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में सभी उच्च आदर्श विद्यमान हैं। वह मातृ-पितृभक्त है, तो साथ ही क्षमाशील, उदार, सन्तोषी और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है। वह खण्डकाव्य का नायक है।
प्रश्न 6. “श्रवण कुमार’ के आधार पर महाराज दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग के आधार पर राजा दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा श्रवण कुमार’ के पंचम और सप्तम् सर्गों में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व (मनोभावों) पर प्रकाश डालिए।
अथवा “दशरथ का अन्तर्द्वन्द्व ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में दशरथ का चरित्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वे एक योग्य शासक एवं आखेट प्रेमी हैं। वे रघुवंशी राजा अज के पुत्र हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य में वे आद्यन्त विद्यमान हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।
(i) योग्य शासक राजा दशरथ एक योग्य शासक हैं। वे अपनी प्रजा की देखभाल पुत्रवत रूप में करते हैं। उनके राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी है। चोरी का नामोनिशान नहीं है। उनके शासन में चारों ओर सुख-समृद्धि का बोलबाला है। वे विद्वानों का यथोचित सत्कार करते हैं।।
(ii) उच्चकुल में उत्पन्न राजा दशरथ का जन्म उच्चकुल में हुआ था। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज जैसे महान् राजा इनके पूर्वज थे।
(iii) आखेट प्रेमी राजा दशरथ आखेट प्रेमी हैं। इसलिए सावन के महीने में जब चारों ओर हरियाली छा जाती है, तब उन्होंने शिकार करने का निश्चय किया। शब्दभेदी बाण चलाने में वे अत्यन्त कुशल हैं। ।
(iv) अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण शब्दभेदी बाण से जब श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, तो वह सोचते हैं कि मैंने यह पाप कर्म क्यों कर डाला? यदि मैं थोड़ी देर और सोया रहता या रथ का पहिया टूट जाता या और कोई रुकावट आ जाती, तो मैं इस पाप से बच जाता। उन्हें लगता है कि मैं अब श्रवण कुमार के अन्धे माता-पिता को कैसे समझाऊँगा, कैसे उन्हें तसल्ली दूंगा? दुःख तो इस बात का है कि अब युगों-युगों तक उनके साथ यह पाप कथा चलती रहेगी।
(v) उदार वे अत्यन्त उदार हैं। श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप को वे चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। किसी और को वे इस बारे में नहीं बताते हैं, पर मन-ही-मन यह पीड़ा उन्हें खटकती रहती है।
(vi) विनम्र एवं दयालु वे अत्यन्त विनम्र एवं दयालु हैं। अहंकार उनमें लेशमात्र भी नहीं है। वे किसी का दु:ख नहीं देख सकते। श्रवण कुमार को जब उनका बाण लगता है, तो वे अत्यन्त चिन्तित हो उठते हैं। वे आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनके माता-पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह, राजा दशरथ का चरित्र महान् गुणों से परिपूर्ण है। प्रायश्चित्त और आत्मग्लानि की अग्नि में तपकर वे शुद्ध हो जाते हैं।