UP Board syllabus Chapter 7 Class 12th THE HERITAGE OF INDIA |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter name | THE HERITAGE OF INDIA |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 12th |
UP Board Syllabus Chapter 7 Class 12th English (Prose) |
Introduction to the lesson
Introduction to the lesson : The writer of this lesson is A.L. Basham. The present extract has been taken from his book ‘The Wonder That Was India. This lesson, in a way, is a survey of the Indian culture. All great Indian leaders–Ram Mahan Roy, Vivekanand and Mahatma Gandhi-Jaid emphasis on social reform and social service. Mahatma Gandhi was much influenced by Western ideas. He shifted the whole emphasis of Hindu thought towards a popular and equalitarion
social order, in place of the hierarchy of class and caste.
पाठ का परिचय
पाठ का परिचय : प्रस्तुत पाठ के लेखक A. L. Basham हैं। यह अंश उन की पुस्तक “The Wonder That Was India’ से अवतरित है। प्रस्तुत पाठ, एक प्रकार से, भारतीय संस्कृति का अन्वेषण है। सभी भारतीय नेताओं-राममोहन रॉय, विवेकानन्द और महात्मा गांधी-ने समाज सुधार तथा समाज सेवा पर बल दिया। महात्मा गान्धी पश्चिमी विचारों से अधिक प्रभावित थे। उन्होंने वर्ग व जाति के स्थान पर लोकप्रिय और गुणात्मक सामाजिक व्यवस्था की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para 1
Para 1: राजा राममोहन राय ने सामाजिक सुधार की प्रबल वकालत द्वारा अपना समर्थन प्रकट किया और समाज सेवा के नये युग का श्री गणेश किया; विवेकानन्द ने इसे राष्ट्रवादी स्वर में दोहराया, जब उन्होंने यह घोषणा की कि समाज-सेवा मातृभूमि की सेवा का महान रूप है। अन्य महान भारतीयों ने जिनमें महात्मा गान्धी मुख्य है, समाज सेवा को धार्मिक कर्तव्य के रूप में अग्रसर किया। वह विकास उनके अनुयायियों के द्वारा चल रहा है।
Para 2
Para2: अनेक भारतीयों व यूरोपवासियों द्वारा महात्मा गन्धी को भारतीय परम्परा का विशिष्ट प्रतिनिधि माना गया किन्तु यह निर्णय अनुचित है। क्योंकि वे पश्चिमी विचारधारा से अधिक प्रभावित थे। गान्धीजी अपनी प्राचीन संस्कृति के मूल सिद्धान्तों में विश्वास करते थे, परन्तु दलित वर्ग के लिए उनका गहरा प्रेम था और जाति प्रथा के प्रति घृणा थी, यद्यपि प्राचीन भारत में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं थी, और वे अपनी इस धारणा में किसी भी भारतीय तत्व की अपेक्षा यूरोप के 19 वीं शताब्दी के उदारवाद के
अधिक ऋणी थे। जैसा हम जान चुके है, अहिंसा में उनका विश्वास किसी भी प्रकार से हिन्दुत्व का प्रतिरूप नहीं था-विद्रोह में उनसे आगे, योग्य मराठा ब्राह्मण बालगंगाधर तिलक, और गान्धीजी के उत्साही सहायक सुभाषचन्द्र बोस इस सम्बन्ध में कहीं अधिक कट्टर थे। गान्धीजी के शान्तिवाद के लिए
हमें ईसा के ‘सरमन ऑन द माउण्ट’ तथा टॉलस्टाय की ओर देखना चाहिए। स्त्रियों के अधिकारों के लिए उनका एक आन्दोलन चलाना भी पश्चिमी प्रभाव का फल है। सामाजिक सन्दभों में वे सदा एक परम्परावादी न होकर एक आविष्कारक रहे। यद्यपि उनके कुछ साथी उनके सीमित समाज-सधार के
कार्यक्रम को काफी सुस्त मानते थे। फिर भी वे हिन्दूवादी विचारधारा के पूर्ण प्रभाव को वर्ग तथा जाति की परम्परा से हटाकर जनप्रिय तथा समतामूलक सामाजिक व्यवस्था की ओर मोड़ देने में सफल रहे। 19 वीं शताब्दी के कम लोकप्रिय सुधारकों के कार्य को अपनात हुए गान्धीजी व भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस वाले उनके अनयायियों ने, शताब्दियों की निष्क्रयता के पश्चात्, हिन्दू सभ्यता को एक नई दिशा और जीवन प्रदान किया है।
Para 3
Para3: आज ऐसे कम ही भारतवासी है, चाहे उनकी धार्मिक धारणाएँ कुछ भी हो जो अपनी प्राचीन संस्कृति पर गर्व न करते हों, तथा प्रबुद्ध भारतीयो में ऐसे कम है जो भारतीय संस्कृति की कुछ कमजोरियों को त्यागने के लिए तत्पर न हों, ताकि भारत का विकास उन्नत हो सके। राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र में भारत के समक्ष अनेक विकट समस्याएँ हैं। कोई भी व्यक्ति किसी निश्चय के साथ उसके भविष्य के बारे में पूर्ण अनुमान नहीं लगा सकता। किन्तु यह भविष्यवाणी निश्चित रूप से की जा सकती
है कि भविष्य चाहे कुछ भी हो, आने वाली पीढ़ियों के भारतीय लोग यूरोपवासियों का अन्धानुकरण नहीं करेंगे, बल्कि वे ऐसे लोग होंगे जो अपनी परम्पराओं से दृढतापूर्वक जुड़े हों और अपनी संस्कृति की निरन्तरा के प्रति जाग्रत हों। स्वतन्त्रता के केवल सात वर्ष बाद ही अपने आपको राष्ट्रीय स्तर पर बुरा कहने की प्रवृति तथा केवल अपनी सभ्यता को बलपूर्वक अच्छा मानने की उन्मत्त भावना लुप्त हो रही है। हम विश्वास करते हैं कि हिन्दू सभ्यता समन्वय के अपने सर्वोत्तम चमत्कार को प्रदर्शित कर रही है। भतकाल में इसने विभिन्न सभ्यताओं -भारतीय, यरोपीय, मेसोपोटामियन, ईरानी, यूनानी, रोमन, सिथियन, तुर्की, फारसी तथा अरबदेशीय-के तत्त्वों को ग्रहण किया, अनुकूल बनाया और अपने में मिला लिया। भारतीय संस्कृति प्रत्येक नये प्रभाव के साथ कुछ परिवर्तित हुई। अब यह पश्चिमी संस्कृति को आत्मसात करती जा रही है।
Para 4
Para4:हम विश्वास करते हैं कि हिन्दू सभ्यता अपनी निरन्तरता को बनाए रखेगी। भगवद्गीता कर्म प्रधान लोगों को और उपनिषद् विचारशील लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे। भारतीय जीवनचर्या की सुन्दरता और अच्छाई निरन्तर बनी रहेगी चाहे इस पर पश्चिम की श्रम की बचत करने वाली युक्तियों का कितना ही प्रभाव क्यों न हो। लोग हमेशा महाभारत और रामायण के महापुरुषों की गाथाओं तथा दृष्यन्त और शकुन्तला, पुरुरवा और उर्वशी की प्रेम कथाओं का आनन्द लेते रहेंगे। शान्ति और आनन्द से, जो सदा भारतीय जीवन में व्याप्त रहे हैं तथा अत्याचार, रोग और निर्धनता ने कभी इसे बोझिल नहीं किया है, पश्चिम की उत्तेजनापूर्ण प्रवृतियों के प्रभाव में निश्चित रूप से कभी नष्ट नहीं होगी।
Para 5
Para5:प्राचनी भारतीय संस्कृति में जो कुछ भी सारहीन था वह पहले ही नष्ट हो चुका है। वैदिक काल की गलत तथा पाशविक सार्वजनिक बलि को बहुत पहले भुला दिया गया है। यद्यपि कुछ सम्प्रदायों में अब भी पशुबलि दी जा रही है। विधवाओं का अपने पति की चिता पर जलाया जाना काफी समय पहले बन्द हो चुका है। अब कानूनन लड़कियों का बचपन में विवाह नहीं हो सकता। सम्पूर्ण भारत में बसों और रेलगाड़ियों में ब्राह्मण अपवित्रता की चिन्ता किए बिना दलित जातियों के व्यक्तियों के सम्पर्क में आते हैं एवं मन्दिर के द्वार कानूनन सबके लिए खुले हैं। जाति प्रथा समाप्त होती जा रही है। यह प्रक्रिया बहुत पहले ही प्रारम्भ हो गई थी लेकिन अब इसकी गति इतनी तेज हो गई है कि एक या दो पीढ़ी में जाति प्रथा के अधिक आपत्तिजनक तत्व अदृश्य हो जाएंगे। पारिवारिक पुरानी प्रथाएँ वर्तमान
परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको बदल रही हैं। वास्तव में सम्पूर्ण भारत का परिदृश्य ही बदल रहा है, लेकिन सांस्कृतिक परम्परा लगातार प्रवाहित है और भविष्य में यह रुकेगा नहीं।
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