UP Board Chapter 1 Class 12th A GIRL WITH A BASKET
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter name | A GIRL WITH A BASKET |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 12th |
UP Board chapter 1 Class 12 English
Introduction
Introduction to the lesson : The writer of this lesson is William C. Douglas. He was the judge of the Supreme Court ofAmerica. He came to India in 1950. At that time India was facing the refugee problem. On his way he saw the plains and forests, villages and theirmud houses. The writer saw somerefugees at the railway station. He saw the children of the refugees. They descended on him like locusts. They were selling baskets and fans. Among them was a beautiful girl of nine. She was an aggressive vendor. She compelled the author to buy her basket. He did notथे। want to purchase it. He deposited some money in her basket.At this she wept and returned the money. He felt that people of India had a passion for independence. They had a pride…
पाठ का परिचय-
पाठ का परिचय-प्रस्तुत पाठ का लेखक William C. Douglas है। वह अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट का जज था। वह 1950 में भारत आया। उस समय भारत शरणार्थी समस्या का सामना कर रहा था। रास्ते में उसने मैदान, जंगल, गाँव और उनके मिट्टी के घर देखे। लेखक ने कुछ शरणार्थियों को स्टेशन पर देखा। वे टिड़ियों की भाँति उसकी तरफ लपके। उसने कुछ शरणार्थी बच्चे देखे। वे टोकरियाँ और। पंखे बेच रहे थे। उनमें एक नौ वर्ष की लड़की भी थी। वह जुझारु विक्रेता थी। उसने लेखक को टोकरी खरीदने के लिए मजबूर किया। लेखक ने कुछ धन उसकी टोकरी में डाल दिया। इस पर वह रोने लगी। और धन वापस कर दिया। लेखक ने महसूस किया कि भारत के लोग स्वतन्त्रता के दीवाने थे। उनमें गर्व था।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para 1
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para 1: मैं नई दिल्ली से हिमालय के लिए चल दिया। मैं बरेली तक रेलगाड़ी से जा रहा था फिर रानीखेत तक कार से जाना था। यह प्राचीन अंग्रेजों की सैनिक पर्वतीय छावनी थी जो बर्फ से ढके 120 मील तक फैले हिमालय के सामने 6000 फीट ऊँची पर्वत श्रेणी पर स्थित है। गाड़ी धीमी गति से चल रही थी और यह रास्ते के सभी स्टेशनों पर रुकती थी। मैं प्रत्येक स्टेशन पर दरवाजे खोल देता था और प्लेटफार्म पर घूमता था।
Para 2
Para 2 : प्लेटफार्म सिखों, मुसलमानों, हिन्दुओं, सैनिकों, व्यापारियों, पुजारियों, कुलियों, भिखारियों और फेरी वालों से भरे थे। लगभग प्रत्येक व्यक्ति नंगे पैर था और ढीले सफेद वस्त्र पहिने था। मैं कम से कम तीन व्यक्तियों से पूछता तब मुझे एक अंग्रेजी बोलने वाला मिलता था। हम संसार के मामलों और प्रत्येक उस महत्वपूर्ण विषय पर बात करते जो उस दिन के समाचारों में होता था। इस प्रकार से मैं सरकारी दृष्टिकोण तथा रिपोर्ट से जनता के विचारों की तुलना करके राष्ट्र के लोगों की भावना जानने की
कोशिश करता था।
Para 3
Para 3: यह रास्ता भारत के सर्वाधिक विकसित कृषि क्षेत्रों में से एक था, जहाँ से हम गुजर रहे थे। यह ऊपरी गंगा नदी का मैदान था, जो समुद्र तल से एक हजार फीट ऊँचा लेकिन तेज गर्मी और
अधिक वर्षा वाला क्षेत्र था। गंगा भूरे रंग की गाद के रूप में थी। वह बाढ़ के पानी से उफन रही थी। इसके बाद के पानी में हजारों एकड़ चावल के खेत डूबे हुए थे। उसके उत्तर की ओर जंगल थे जिनमें मनुष्य के सिर से ऊँची घास थी और कहीं-कहीं पेड़ों के समूह थे। इन जंगलों में चीते, हाथी, अजगर तथा जहरीले सर्प रहते थे। इसके अतिरिक्त समतल भूमि थी, जो क्षितिज तक फैली थी, किन्तु यहाँ-वहाँ पवित्र बरगद तथा पीपल के वृक्षों की कतारें थीं जो यूरोपीय ऐल्म वृक्ष जैसे आकार के थे और उनके तने मोटे तथा घुमावदार थे। दक्षिण-पश्चिम की ओर से गर्म व नम हवा चल रही थी। स्टेशनों पर खाने की तलाश में बन्दर पेड़ों से उछलकर आ जाते थे-उनमें कुछ बन्दरियाँ भी होती थीं। उनके पेट से बच्चे चिपके होते थे। जिन गाँवों से होकर हम गुजर रहे थे उनकी दीवारें पानी और गोबर मिली मिट्टी से बनी थीं। उनकी नुकीली छतों पर छप्पर पड़े थे-ढलुआ बल्लियों पर फैले हुए बाँसों पर घास के बण्डल बँधे थे। छप्परों पर कहू की मटमैली मोटी बेलें लटकी हुई थीं जिन पर खिले फूल पीले रंग की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं जैसी लग रही थीं।
Para 4
Para 4: मेरा लोगों से बात करने का क्रम एक स्टेशन पर टूट गया। मैं जैसे ही डिब्बे से नीचे उतरा। बच्चों की टोली मेरे चारों ओर एकत्रित हो गई। वे टोकरियाँ बेच रहे थे-जो हाथ से बुनी, सरकण्डे की सादा डिजायन की बनी थीं। वे टोकरियों को ऊँचा उठाये हुए थे और तेज आवाज में ऐसे शब्द बोल रहे। थे जिन्हें मैं समझ नहीं रहा था, लेकिन उनके शब्द उनकी इच्छा स्पष्ट रूप से प्रकट कर रहे थे।
Para 5
Para 5: ये शरणार्थी बच्चे थे। जब भारत और पाकिस्तान के विभाजन का निर्णय हुआ था तो। लाखों लोगों ने अपने निवास स्थानों को छोड़ दिया था। नब्बे लाख लोग धार्मिक उन्माद के डर से। पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए थे। वे वहाँ से चलते समय पूरी तरह निर्धन थे। जब उन्होंने अपनी लम्बी कठिन यात्रा आरम्भ की तो वे और भी निर्धन हो गये। क्योंकि जो कुछ भी वे थोड़ा-बहुत ला सकते थे वह कुछ भोजन व सामान था जो समाप्त हो गया। शीघ्र ही उनकी भोजन सामग्री भी समाप्त हो गई यात्रा आरम्भ करने के कुछ दिन पश्चात् वे रास्ते में ही अकाल के कारण गिरने लगे और गिरकर वहीं मर जाते थे।
Para 6
Para 6 : टोकरियाँ बेचने वाले बच्चे इन्हीं शरणार्थियों के बेटे-बेटियाँ थे। वे या उनके माता-पिता या रिश्तेदार शहरों में एकत्र हो गये थे। वे छोटी खुली दुकाने लगाकर तथा साधारण वस्तुएं बनाकर पहले से ही भीड़ भरे बाजारों में बेचने का प्रयत्न कर रहे थे। वे कपड़ा तथा घास से बनी झोपड़ियो जो लाइन में बनी थीं, में रहते थे। ये शरणार्थी जो छोटे किसान थे, जीवन भर थोड़े में जीवन-यापन करने के अभ्यस्त थे। क्योंकि उनकी वार्षिक आय सौ डालर से अधिक नहीं थी। साधारण अप्रशिक्षित मजदूर प्रतिदिन तीन सेन्ट या सप्ताह में दो डालर से कम कमाता है। दिन में एक बार भोजन मिलता है-एक प्याज, एक रोटी, दाल का कटोरा साथ में दूध, शायद थोड़ा सा बकरी के दूध का पनीर। न चाय, न
कॉफी, न चिकनाई, न मिठाई, न गोश्त । एक साल में सौ डालर से सप्ताह में दो डालर भी नहीं होते। फिर भी इतना कम धन टोकरियाँ बेचकर नहीं कमाया जा सकता था जो इतने गरीब हैं कि टोकरियाँ नहीं खरीद सकते । निस्सन्देह यही कारण है कि वे छोटे बच्चे इसीलिए मेरे ऊपर टिड्डियों की भाँति टूट पड़े। एक अमेरिकी खरीदार उन्हें सर्वाधिक आशाजनक प्रतीत हुआ।
Para 7
Para 7: मैंने कुछ आने में एक छोटी सी टोकरी खरीदी, थोड़े से अधिक पैसों में एक दूसरी फलों की टोकरी, एक रुपये में एक सुन्दर रद्दी कागज डालने की टोकरी, एक रुपये में एक सिलाई के सामान की टोकरी, एक या दो आना प्रति नग में कुछ पंखे खरीदे। मेरे हाथ भर गए थे और मैंने पचास सेन्ट भी खर्च नहीं किए थे। बच्चे अपने माल की जोर से आवाज लगाते हुए घूम रहे थे। मैं बच्चों से पूरी तरह घिरा आगे बढ़ने में असमर्थ एक कैदी बन गया था। सबसे अधिक मेहनती, चुस्त विक्रेता नौ साल की एक सन्दर लड़की थी जो मेरे सामने खड़ी थी। उसके पास मूठ वाली एक सुन्दर टोकरी थी और उसके लिए वह डेद रुपया या लगभग तीस सेन्ट चाहती था। वह जोर देकर अपनी बात कहती थी। उसकी आँखों में आंसू थे। वह बहुत आग्रह कर रही थी। उसक स्वर म किसी भी हृदय को झकझोर देने वाली करुणा थी।
Para 8
Para 8: मेरे दोनों हाथ सामान से भरे थे। एक और टोकरी के लिए न तो आवश्यकता थी और न हाथों में जगह थी। अपने बाये हाथ में टोकरियों और पखा का रखकर, मेने अपने सीधे हाथ वाली कोट। की जेब से हाथ डालकर कुछ रेजगारी निकाली-शायद वह कुल पन्द्रह सेन्ट थे-जो मैंने उस टोकरी में। रख दिये जिसे वह लड़की मेरे समक्ष कातर ढंग से पकड़े हुए थी। मैंने उसे यह समझाने की कोशिश की। कि मैं टोकरी नहीं खरीद सकता, किन्तु उसके बदले धन का उपहार दे रहा हूँ। मैंने तत्काल यह अनुभव। किया कि मैंने कोई अपराध कर दिया है। इस नौ वर्ष की बच्ची ने, जो फटे कपड़े पहने थी और भुखमरी की शिकार थी, अपनी ठोदी ऊपर उठाई, टोकरी में हाथ डाला और एक स्वाभिमानी स्त्री की भाँति गौरव
के साथ पैसा लौटा दिया। केवल एक ही कार्य था जो मैं कर सकता था। मैंने टोकरी खरीद ली। उसने अपने आँसू पोंछे, मुस्कराई और प्लेटफार्म से तेजी से भागकर किसी झोपड़ी की ओर चली गई जहाँ उस रात के लिए उसके पास कम से कम तीस सेन्ट हो गये।
Para 9
Para 9 : मैंने यह कहानी पं. जवाहरलाल नेहरू को सुनाई। मैंने उन्हें यह बताया कि यह भी एक कारण है जिससे मैं भारत को स्नेह करने लगा हूँ।
Para 10
Para 10: जो लोग मैंने भारत में देखे-गाँव में तथा ऊंचे पदों पर स्थित उनमें स्वाभिमान तथा। अच्छा व्यवहार और योग्य नागरिकता की भावना मौजूद है। उनमें स्वतन्त्रता के लिए तीन लालसा भी हा इस सुन्दर बच्ची ने-“जो गन्दगी और गरीबी में पली थी, जिसे भाषा और व्यवहार की किसी स्कूल म शिक्षा नहीं मिली थी-मुझे भारत की आन्तरिक भावना-प्रधान आत्मा की छवि दिखला दी थी।
UP Board Chapter 1 Class 12 English