UP Board Chapter 4 Class 11th THE KITE MAKER
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 11th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter name | THE KITE MAKER |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 11th |
UP board chapter 4 Class 11 English
- UP Board Chapter 4 Class 11th THE KITE MAKER
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- UP Board Chapter 4 Class 11 Explanation
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Introduction
Introduction to the lesson : This lesson has been written by Ruskin Bond. Hebwas born at Kasauli (India) in 1934. This isa storyofan old kite maker Mahmood. He hadagood business in the prime of hislife.But the social fashion changed and
people lost interest in kite-flying. In this story the writer describes the simple and easy life ofearlier days when evenakitemaker had a social reputation. People had concernand affection foreach other. Through Mahmood and his grandson, Ali, the
wirter has explained the difference between the past and the present. The story arouses in us pathetic feelings for old age.
पाठ का परिचय-प्रस्तुत पाठ Ruskin Bond द्वारा लिखा गया है। वह कसौली (भारत) में सन् 1934 में पैदा हुआ था। यह एक बूढ़े पतंग बनाने वाले महमद की कहानी है। अपने जवानी के समय में
उसका अच्छा व्यापार था। किन्तु सामाजिक फैशन बदल गया और लोगों की पतंग उड़ाने की रुचि समाप्त हो गई। इस कहानी में लेखक प्रारम्भिक जीवन की सरल और सादा जिन्दगी का वर्णन करता है जब पतंग बनाने वाले का भी सामाजिक सम्मान था। लोगों में एक दूसरे के प्रति लगाव और प्यार था। महमूद और उसके नाती अली के माध्यम से लेखक विगत और वर्तमान का अन्तर प्रस्तुत करता है। कहानी हमारे अन्दर दर्दनाक भावनाएँ जागृत करती है।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para 1
Para 1 : उस गली में जो गली रामनाथ के नाम से जानी जाती थी, एक उजड़ी हुई मस्जिद थी जिसकी दरारों में उगा हुआ बरगद का पेड़, उस गली का एक मात्र पेड़ था। और छोटे अली की पतंग
उसकी शाखाओं में उलझ गई थी।
Para 2
Para 2 : वह लड़का, नंगे पैर और फटी कमीज पहने, सँकरी गली में लगे हुए गोल और चिकने पत्थरों पर दौड़कर वहाँ पहुँचा जहाँ उसका दादा अपने घर के पिछले भाग में आँगन की धूप में स्वप्न
देखता हुआ सा ऊँघते हुए बैठा थे। दादा ! बालक चिल्लाया, पतंग चली गई।
Para 3
Para 3 : बूदा अपने दिवास्वप्न से चौंककर जाग गया और उसने अपना सिर ऊँचा उठाते हुए अपनी दादी प्रदर्शित की जो यदि मेंहदी की पत्तियों से लाल नहीं रंगी होती तो सफेद होती। क्या डोर टूट
गई?’ उसने पूछा। ‘मुझे मालूम है कि आजकल पतंग की डोर वैसी नहीं होती जैसी हुआ करती थी।’नहीं दादा, पतंग बरगद के पेड़ में अटक गई है।
Para 4
Para 4 : बूदा धीरे से हँसा। ‘मेरे बच्चे, तुम्हें अभी सीखना है कि पतंग ठीक तरह कैसे उड़ाई जाती है। और मैं इतना अधिक बूदा हूँ कि तुम्हें सिखा नहीं सकता, यही अफसोस है। परन्तु तुम्हें दूसरी पतंग मिलेगी।’ वह बाँस, कागज और पतले रेशम से अभी एक नई पतंग बना चुका था, और वह पतंग धूप में सूख रही थी। वह पतंग छोटी हरी पूँछ वाली पीले गुलाबी रंग की पतंग थी। बूदे महमूद ने वह पतंग अली को दे दी। वह लड़का अपने पैरों के पंजों के बल पर ऊपर उठा और अपने दादा के पोपले गालों को चूम लिया।”मैं इसे नहीं खोऊँगा।’ उसने कहा। ‘यह पतंग चिड़िया की तरह उड़ेगी।’
वह एकदम एड़ियों के बल घूमा और उछलता हुआ आँगन के बाहर चला गया।
Para 5
Para 5 :बढा धप में बैठा स्वप्न देखता रहा। उसकी पतंग की दुकान बन्द हो गई थी क्योंकि वह सारा घर-परिवार कई वर्ष पहले एक कबाड़िए को बेच चुका था। किन्तु वह अपने मनोरन्जन तथा अपने
नाती अली के खिलौनों के रूप में अब भी पतंग बनाता था। उन दिनों अधिक लोग पतंग नहीं खरीदते थे। जवान लोग पतंग को तुच्छ समझते थे और अपना पैसा सिनेमा पर खर्च करना अधिक पसन्द करते थे। इसके अतिरिक्त पतंग उड़ाने के लिए मैदान कम बचे थे। जो हरा-भरा मैदान पराने किले की दीवारों से लेकर नदी के किनारे तक फैला था उसे शहर अपने में समेट चुका था।
Para 6
Para 6 : लेकिन बढे को वह समय याद था, जब वयस्क लोग उस मैदान में पतंग उड़ाया करते थे. और पतंगबाजी की बड़ी लड़ाइयाँ होती थी, पतंगें आकाश में अचानक मुड़कर झपट्टा मारती हई.
एक-दसरे से तब तक उलझी रहती थी, जब तक किसी एक पतंग की डोरी कट नहीं जाती। तब कटकर मक्त हर्ड पतंग असीमित आकाश में उड़ती चली जाती थी। पतंग के पेचों पर बड़ी-बड़ी शर्ते
लगाई जाती थीं और पैसा एक हाथ से दूसरे के हाथ में चला जाता था।
Para 7
Para7: उन दिनों पतंग उड़ाना नवाबों का खेल था। बूढ़े व्यक्ति को याद है कि किस प्रकार नवाब स्वयं अपने सेवकों सहित इस खेल में सम्मिलित होने के लिए नदी किनारे तक आया करते थे। उन दिनों
पतंग के चमकते कागज को आकाश में देखने के लिए लोगों के पास अवकाश का एक घण्टा व्यतीत करने का समय था। अब प्रत्येक व्यक्ति आशा और उमंग में भरकर जल्दवाजी करता है और पतंगों एवं दिवास्वप्नों की तरह कोमल वस्तुएँ पैरों के नीचे कुचल दी जाती हैं।
Para 8
Para 8: पतंग बनाने वाला महमूद अपनी युवावस्था में पूरे शहर में प्रसिद्ध रहा था। उसकी सुन्दर कारीगरी से बनी कछ पतंगें तो तीन या चार रुपये तक में बिकती थीं। नवाब के कहने पर उसने एक बार। एक विशेष प्रकार की पतंग बनाई थी, जो उस क्षेत्र में दिखने वाली सभी पतंगों से अलग थी। उसमें एक पतले बाँस के ढाँचे पर लटकते हए छोटे बहत हल्के कागज के गोल टुकड़ों की एक श्रृंखला थी। उसने प्रत्येक डिस्क के अन्तिम छोर पर सन्तुलन बनाने के लिए घास की एक गुच्छी बाँध दी थी। सबसे आगे वाली डिस्क की सतह थोडी सी बाहर की ओर झकी हुई थी। उस पर रंग से एक अदभुत चेहरा बना था।। जिसमें छोटे शीशे की बनी दो आँखें लगीं थीं। सिर से पूँछ तक आकार में छोटे होते हुए गोले पतंग को रेंगते हुए सर्प की शक्ल देते थे। इस भारी कारीगरी वाली पतंग को पृथ्वी से ऊपर उठाने और साधने के लिए बड़ी कुशलता की आवश्यकता थी। केवल महमूद ही इसे सँभाल सकता था।।
Para 9
Para 9: निश्चय ही प्रत्येक व्यक्ति ने महमूद द्वारा बनाई गई सर्प के आकार वाली पतंग के बारे में सुना था। चारों ओर यह बात फैल गई कि उस पतंग में अलौकिक शक्ति है। नवाब की उपस्थिति में
सर्वप्रथम इस पतंग को उड़ते हुए देखने के लिए मैदान में बहुत भीड़ जमा हुई। पहले प्रयास में पतंग जमीन से जरा भी नहीं हिली। गोल टकडे ने एक दख भरी आपत्ति करती हुई आवाज की। पतंग में लगे। छोटे शीशों में सूरज का प्रतिबिम्ब बना जिससे पतंग एक असंतुष्ट जीवित प्राणी जैसी लगी।
Para 10
Para 10 : तभी दाहिनी ओर से तेज हवा चली और उस सर्पाकार पतंग ने चक्कर काटकर काफी ऊपर रास्ता तय करते हुए आकाश में उड़ान भरी। अब सूरज पतंग के शीशों में चमक रहा था। जब वह
बहुत ऊपर चली गई तो डोरी को जोर से खींचा, और महमूद के युवा बेटों को रील की चकरी पकड़कर उसकी सहायता करनी पड़ी। लेकिन फिर भी पतंग खींचती ही रही मानो उसने खुले आकाश में उड़ने का निश्चय कर लिया हो।
Para 1 1
Para 11: और तभी ऐसा हुआ। पतंग की डोर टूट गई, और वह शीघता से सूर्य की ओर उछल गई और तब तक आकाश में उड़ती रही जब तक कि आँखों से ओझल नहीं हो गई। वह फिर दिखाई नहीं पड़ी। बाद में महमूद आश्चर्य के साथ यह सोचता रहा कि क्या उसने उस विशाल पतंग को अधिक चमकीला और जीवन्त बना दिया था। उसने उस जैसी पतंग फिर कभी नहीं बनाई। लेकिन इसके स्थान पर नवाब को एक संगीत पूर्ण पतंग भेंट की। यह पतंग वीणा के समान स्वर निकालती थी।
Para 1 2
Para 12 : निश्चित ही वे फुर्सत के दिन थे। कुछ वर्ष पहले नवाब की मृत्यु हो गई थी। उनके उत्तराधिकारी महमद की तरह ही गरीब थे। नवाब कवियों की तरह पतंग बनाने वालों के भी संरक्षक होते।
थे। महमूद का अब कोई भला सोचने वाला नहीं था। गली का कोई भी व्यक्ति उसका नाम व व्यवसाय नहीं पूछता था क्योंकि गली में बहुत लोग थे और पड़ोसियों के बारे में चिन्ता नहीं करते थे।
Para 13
Para 13 : जब महमूद युवा था और बीमार पड़ जाता था तो पड़ोस का प्रत्येक व्यक्ति उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछने आता था। अब उसका जीवन समाप्त होने को है, उसके पास कोई नहीं आता,
है। उसके पराने मित्रों में से अधिकांश मर चके हैं। उसके पत्र बड़े हो गये हैं। एक पत्र स्थानीय गैरेज में। काम कर रहा है, दूसरा पाकिस्तान में रह गया है जहाँ वह विभाजन के समय था।
Para 14
Para 14: जो बच्चे दस वर्ष पहले उससे पतंग खरीदा करते थे, अब जवान हो गये है आर, जीवन-यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके पास उस बूढ़े और उसकी पुरानी बातों की यादों के लिए
समय नहीं है। जल्दी-जल्दी परिवर्तनशील प्रतिस्पर्धा वाले संसार में बड़े होने पर वे, बूढ़े पतंग बनान वाले के प्रति उतने ही उदासीन हैं जितने कि बरगद के पेड़ के प्रति।
Para 15
Para 15 : वह और बरगद का पेड़ स्थायी वस्तुओं के समान सुनिश्चित मान लिए गए थे जिनस उनके चारों ओर के जनः समूह का कोई सम्बन्ध नहीं था। अब लोग अपनी समस्याओं तथा योजना ओं
पर विचार करने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे एकत्रित नहीं होते थे। केवल गर्मियों के दिनों में कभी कोई व्यक्ति तेज धूप से बचने के लिए उसके नीचे शरण ले लेता था।
Para 16
Para 16: लेकिन उसका नाती निश्चय ही वहीं था। यह अच्छी बात थी कि उसका बेटा पास में ही काम करता था तथा वह अपनी पत्नी के साथ महमूद के घर में रह सकते थे। लड़के को जाड़ों की धूप
में खेलते हुए देखकर उसका मन प्रसन्न हो उठता था। वह बालक महमूद के लिए भली प्रकार पोषित। किए गये उस बढ़ते हुए पौधे के समान था जिसमें से प्रतिदिन नई कोपलें निकल रही हो।
Para 17
Para 17 : पेड़ों और मनुष्य में बनावट के हिसाब से बहुत समानता होती है। यदि उन्हें चोट न पहुँचाई जाए या भूखा न रखा जाए या काट न डाला जाए तो वे एक ही गति से बढ़ते हैं। अपने यौवन
काल में वे काफी चमकीले होते हैं और वृद्धावस्था में थोड़ा झुक जाते हैं। वे स्मरण करते हैं और सहजता से टूटने वाले कमजोर अंगों को धूप में फैलाते हैं और आह भरकर अपनी अन्तिम पत्तियों को गिरा देते
Para 18
Para 18 : महमूद बरगद के पेड़ के समान था। उसके हाथ उस पुराने पेड़ की जड़ों के समान गाँठदार और टेढ़े-मेढ़े थे। अली आँगन के कोने में रोपी हुई छुई-मुई की नई कोंपल के समान था। दो
वर्ष में अली और वह पौधा उस शक्ति और आत्म विश्वास को प्राप्त कर लेंगे जो यौवन की मुख्य
विशेषताएँ हैं।
Para 19
Para 19: गली में आवाजें धीमी पड़ गयीं और महमूद को आश्चर्य हो रहा था कि क्या वह सो जाएगा और सन्दर तथा बलशाली पतंग के स्वप्न देखने लगेगा, जैसा कि वह प्रायः देखता है. जो पतंग
हिन्दुओं के विशाल सफेद पक्षी गरुड़ से मिलती-जुलती होगी। जो भगवान विष्णु का प्रसिद्ध वाहन है।
Para 20
Para 20 : वह छोटे अली के लिए अद्भुत नई पतंग बनाना चाहता है। उसके पास उस बच्चे के लिए छोड़ जाने को और कुछ नहीं था।
Para 21
Para 21 : उसने दर से अली की आवाज सुनी, किन्तु वह यह नहीं समझ सका कि लड़का उसे पुकार रहा था। उसकी आवाज दूर से आती प्रतीत हो रही थी।
Para 22
Para 22. अली आँगन के द्वार पर यह पूछ रहा था कि क्या उसकी माँ बाजार से लौट आई है या नहीं। जब महमद ने उत्तर नहीं दिया, तो लड़का अपने प्रश्न को दोहराता हुआ आगे बढ़ा। सरज की
रोशनी बढे के सिर पर एक ओर से दूसरी ओर तक तिरछी पड़ रही थी। उसकी लहराती दादी पर एक छोटी सी सफेद तितली बैठी हुई थी। महमूद शान्त था। जब अली ने अपना नन्हा भरा हाथ बढे के
कन्धे पर रखा, तो उसे कोई उत्तर नहीं मिला। बच्चे ने अपनी जेब में रखी कंचों की रगड के समान हल्की सी आवाज सुनी।
Para 23
Para 23: यकायक अली डरकर मुड़ा और दरवाजे की ओर बढ़ा और गली में अपनी माँ को पुकारता हुआ दौड़ता चला गया। हवा के तेज झोके ने बरगद के पेड़ में अटकी हुई पतंग को ऊपर उता
दिया और संघर्षरत, पसीना बहाते हुए शहर से बहुत ऊपर नीले आकाश में ले गया।।
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