Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter name | A FELLOW TRAVELLER |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 12th |
UP board Chapter 2 Class 12 English
- UP Board Master Chapter 2 Class 12th A FELLOW TRAVELLER
- UP Board Master Chapter 2 Class 12th Summary of the Lesson
- UP Board Master Chapter 2 Class 12 Explanation
- UP Board Master chapter 2 Class 12 Comprehension Questions on Paras
- UP board Master chapter 2 Class 12 Short Questions Answer
- UP board chapter 2 Class 12 Long Questions Answer
- UP board chapter 2 Class 12 FILL IN THE BLANKS
Introduction to the lesson
Introduction to the lesson : The writer of this essay is A.G.Gardiner. The present essay is taken from his long essay ‘Leaves in the wind’. It is a personal
essay. In this essay the author develops a feeling of affection for a mosquito. He regards him as a fellow traveller. He was travelling in a night train. When all the travellers left the compartmenta mosquito came to trouble him.The author tried
to kill it but he could not. After many unsuccessful attempts the author finally accepted the mosquitoas a friendly fellow-traveller. ।
पाठ का परिचय
पाठ का परिचय-इस निबन्ध को A.G. Gardiner ने लिखा है। प्रस्तुत निबन्ध लेखक के लम्बे निबन्ध ‘Leaves in the Wind’ से उदधत है। यह व्यक्तिगत निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक मच्छर
के प्रति स्नेह की भावना उत्पन्न करता है। वह उसे सहयात्री मानता है। लेखक रात्रि ट्रेन से यात्रा कर रहा था। जब सभी यात्री उतर गये तो एक मच्छर उसे तंग करने के लिए आ गया । लेखक ने उसे मारना चाहा लेकिन ऐसा नहीं कर सका। कई असफल प्रयासों के बाद लेखक ने उसे अपना सहयात्री बना लिया।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para 1
Para1: मैं नहीं जानता कि हम में से किसने रेल के डिब्बे में पहले प्रवेश किया। वास्तव में मुझे बिल्कुल पता नहीं चला कि वह कुछ समय से डिब्बे में था। यह लन्दन से मध्यवर्ती क्षेत्र के एक उप नगर के लिए जाने वाली अन्तिम गाड़ी थी-यह प्रत्येक स्टेशन पर रूकने वाली गाड़ी, अत्यन्त धीमी चलने वाली गाडी उन गाडियों में से एक है जो आपको अनन्त काल का बोध कराती है। यात्रा आरम्भ करते
समय यह काफी भरी हुई थी, परन्तु जैसे-जैसे हम नगर के बाहरी स्टेशनों पर रुकते गये, यात्री एक-एक दो-दो करके उतरते गये और लन्दन की बाहरी सीमा को छोड़ने के समय तक मैं डिब्बे में
अकेला रह गया या मैंने यह सोचा था कि मैं अकेला था।
Para 2
Paran 2: जो गाडी रात में शोर मचाती झटके देकर हिलती हई चलती है उसमें अकेले होने में स्वतन्त्रता का सुखद आभास होता है। यह बड़ी सुहावनी स्वतन्त्रता और स्वच्छंदता होती है। आप जो भी चाहें कर सकते हैं। आप जितना तेज आवाज में अपने से बातें कर सकते हैं और कोई भी आप की बात नहीं सन सकता। आप जोन्स (काल्पनिक नाम) से तर्क-वितर्क कर सकते हैं और उसके विरोधी प्रहार के बिना सफलतापूर्वक उसे हरा सकते हैं। आप अपने सिर के बल खड़े हो सकते हैं और कोई भी आपको देख नहीं सकता। आप बिना व्यवधान के गा सकते है या दो कदम नाच सकते हैं या गोल्फ में गेंद मारने। का अभ्यास कर सकते हैं या फर्श पर कचे का खेल, खेल सकते है। आप बिना किसी व्यक्ति के विरोध के खिड़की खोल सकते हैं या दोनों को बन्द कर सकते हैं। वास्तव में, आप खोलते और बन्द करते हुए। एक प्रकार का स्वतन्त्रता समारोह मना सकते हैं। आप अपनी पसन्द के अनुसार डिब्बे के किसी कोने में बैठ सकते हैं और बारी-बारी से सभी का उपयोग कर सकते हैं। आप गद्दों पर पूरे फैलकर लेट सकते। हैं और अंग्रेजी राज्य के सुरक्षा अधिनियम के नियमों और उसमें निहित भाव को तोड़ने के सुख का आनन्द ले सकते हैं। इस अधिनियम को यह पता भी नहीं चलेगा कि उसका हृदय तोड़ा जा रहा है। आप इस अधिनियम से बच निकले हैं।
Para 3
Para 3 : उस रात मैंने इनमें से कोई काम नहीं किया। ये सब बातें मेरे ध्यान में ही नहीं आई। मैंने जो कार्य किया वह अति सामान्य था। जब मेरा अन्तिम साथी भी चला गया तो मैंने अपना अखबार नीचे रख दिया, अपने हाथ-पैरों को फैलाकर अंगड़ाई ली. खड़े होकर गर्मी की शान्त रात को, जिसमें मैं यात्रा कर रहा था, खिड़की से बाहर देखा। दिन के धुंधलके को देखा जो अभी उत्तरी आकाश में छाया था। गाड़ी में इस पार से उस पार गया और दूसरी खिड़की से बाहर देखा, एक सिगरेट जलाई, बैठ गया और फिर से समाचार पत्र पढ़ने लगा। इसके बाद मुझे अपने सहयात्री का पता चला। वह आया और मेरी नाक पर बैठ गया…. वह पंखवाले, तेज, साहसी कीट-पंतगों में से एक था जिन्हें हम अपनी भाषा में मच्छर कहते हैं। मैंने उसे अपनी नाक पर से उड़ा दिया। उसने डिब्बे का एक चक्कर लगाया, डिब्बे की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई का निरीक्षण किया. प्रत्येक खिड़की पर गया, रोशनी के चारों ओर फड़फाड़ाया। उसने निर्णय लिया कि कौने में बैठे विशाल प्राणी अर्थात् लेखक से दिलचस्प कोई दूसरी वस्तु नहीं, वह आया और मेरी गर्दन को देखा।
Para 4
Para 4 : मैंने उसे फिर उड़ा दिया। वह उछल कर हट गया. डिब्बे का एक बार फिर चक्कर लगाया, लौटकर धूर्ततापूर्वक मेरे हाथ के पिछले भाग पर बैठ गया। मैंने कहा, इतना काफी है, उदारता
की अपनी सीमा होती है। दो बार तुम्हें सचेत किया जा चुका है कि मैं विशिष्ट व्यक्ति हूँ, मेरे व्यक्तित्व की विशिष्टता अनजान लोगों की गुदगुदाने की अभद्रता पर रोष प्रकट करती है। मैं काली टोपी पहनता हूँ
अर्थात् न्यायाधीश का पद ग्रहण करता हूँ। मैं तुम्हें मृत्यु दण्ड देता हूँ। न्याय की यही माँग है और न्यायालय इसे देता है। तुम्हारे विरुद्ध अनेक आरोप हैं। तुम आवारा हो तुम जनता को कष्ट देने वाले हो; तुम बिना टिकट यात्रा कर रहे हो, तुम्हारे पास भोजन के लिए कपन भी नहीं है। इस सब तथा अन्य बहुत से गैर-कानूनी कार्यों के लिए तुम अब मरने वाले हो। मैंने अपने सीधे हाथ से तेज और घातक प्रहार किया। वह ढीठतापूर्वक प्रहार को आसानी से इस प्रकार बचा गया कि मैंने अपने को अपमानित महसूस किया। मेरा घमण्ड जाग उठा। मैं अपने हाथ से और समाचार पत्र से उस पर झपटा। मैं अपनी सीट पर उछलकर चढ़ गया और लैम्प के चारों ओर उसका पीछा किया; मैंने बिल्ली जैसी चालाकीपूर्ण चालें अपनाई, जब तक वह नीचे उतरे उसकी प्रतीक्षा की। भयानक रूप से किन्तु धीरे-धीरे उसके पास गया और अचानक ही भयंकर रूप से उस पर प्रहार किया।
Para 5
Para 5: यह सब बेकार गया। वह मेरे साथ खुलकर और चालाकी दिखाते हुए इस प्रकार खेला, जैसे कोई कुशल साँड लड़ाका एक कुद्ध साँड के चारों ओर करतब दिखा रहा हो। यह स्पष्ट था कि वह
इस प्रकार शान्ति भंग करके आनन्द ले रहा था। उसे थोड़े से खेल की इच्छा थी और ऐसा कौन-सा बदिया खेल हो सकता था जैसा इस विशाल लम्बे चौड़े पवन चक्की जैसे प्राणी के द्वारा पीछा किया। जाना, जिसका स्वाद इतना अच्छा हो और जो इतना असहाय तथा मूर्ख प्रतीत हो? मैं उसकी भावना को।
समझकर उसमें आनन्द लेने लगा। वह मेरे लिए मात्र एक कीड़ा-मकोड़ा नहीं था। वह एक व्यक्तित्व के रूप में विकसित हो रहा था, एक बुद्धिमान जीव के रूप में इस डिब्बे के स्वामित्व पर मेरे साथ बराबरी का दावा कर रहा था। मेरे दिल में उसके प्रति प्यार उत्पन्न होने लगा और घमण्ड की भावना समाप्त होने लगी। मैं उस प्राणी से स्वयं को श्रेष्ठ कैसे मान सकता था जो स्पष्ट रूप से होने वाली उस प्रतियोगिता में मेरा मालिक बन गया था ? फिर उदार क्यों न बनें ? उदारता और दया मनुष्य के सर्वश्रेष्ठ गुण है। मैं इन उत्तम गुणों के द्वारा अपने सम्मान को फिर से प्राप्त कर सकता था। इस समय में एक हास्यास्पद व्यक्ति था, हँसी और उपेक्षा का पात्र । दया दिखाकर मैं मनुष्य के नैतिक गौरव की पुनः स्थापना कर सकता था और सम्मानपूर्वक अपने स्थान पर लौटकर जा सकता था। मैंने अपने स्थान पर लौटकर जाते।
हुए कहा-मैं मृत्युदण्ड को वापस लेता हूँ। मैं तुम्हें मार नहीं सकता, इसलिए तुम्हारी सजा को माफ कर सकता हूँ। मैं ऐसा ही कर रहा हूँ अर्थात् तुम्हें मुक्त करता हूँ।
Para 6
Para6: मैंने अपना समाचार पत्र उठा लिया और वह आया और उस पर बैठ गया। मैंने कहा-मूर्ख तमने स्वयं को मेरे हवाले कर दिया है। मुझे केवल सम्मानित साप्ताहिक पत्रिका के पन्नों को जोर से
दबा देना है और तुम एक लाश बन जाओगे। तुम इस पत्रिका में छपे दो लेखों ‘Peace Traps’ और। The Modesty of Mr. Hughes’ के बीच दब जाओगे! लेकिन मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैंने तुम्हारा दण्ड स्थगित कर दिया है। मैं तुम्हें यह आश्वस्त कर दूंगा कि मैं लेखक रूपी यह विशाल जानवर किसी बात को कहता है तो उसे वह पूरा भी करता है। इसके अतिरिक्त, अब तुम्हें मारने की मेरी इच्छा भी नहीं है।
तुम्हें भली भाँति समझ लेने के पश्चात मझे तम्हारे प्रति एक प्रकार का स्नेह अनुभव होने लगा है। मुझे लगता है कि सेंट फ्रांसिस तुम्हें अपना छोटा भाई मानते। मैं ईसाई उदारता और शालीनता के समान
इतना आगे नहीं बढ़ सकता। परन्तु मैं इससे भी आगे का सम्बन्ध मानता हूँ। भाग्य ने गर्मियों की इस रात में हमें सहयात्री बन दिया है। मैं तुम्हें रोचक लगा हूँ, तुमने मेरा मनोरंजन किया है। दोनों का
अहसान बराबर है और इस मौलिक तथ्य पर आधारित है कि हम दोनों नाशवान प्राणी हैं। जीवन के सुखद और दुखद पहलू हम दोनों में समान रूप से मौजूद हैं। मैं समझता हूँ कि तुम्हें अपनी इस यात्रा
के सम्बन्ध में कुछ पता नहीं होगा। मैं स्वयं आश्वस्त नहीं हूँ कि मैं अपनी इस यात्रा के बारे में अधिक जानता हूँ। यदि हम इस पर विचार करें तो हम काफी हद तक समान हैं-केवल एक आभास जो कभी है और कभी नहीं, रात्रि समय में प्रकाशयुक्त गाड़ी में आते हुए, थोड़ी देर प्रकाश के चारों ओर फड़फड़ाते हुए और रात में ही बाहर चले जाते हुए। कदाचित………..
Para 7
Para7: “क्या आप आज रात को कहीं और आगे जा रहें हैं, श्रीमान जी?” खिड़की पर से किसी ने कहा। यह एक मेरा परिचित कुली था जो मुझे संकेत दे रहा था कि यही मेरा स्टेशन था। मैंने उसे
धन्यवाद दिया और कहा कि मैं अवश्य ही ऊँघने लगा होऊँगा। अपनी टोपी और छी पकडकर मैं ग्रीष्ण ऋत की शीतल रात में बाहर निकल गया। जैसे ही मैंने डिब्बे का दरवाजा बन्द किया तो अपने सहयात्री को लैम्प के चारों ओर फड़फड़ाते हुए देखा।
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