Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 11th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter name | THE VARIETY AND UNITY OF INDIA |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 11th |
UP Board Syllabus Chapter 5 Class 11th English (Prose) |
Introduction to the lesson
Introduction to the lesson: This lesson has been written by Jawahar Lal Nehru The present extract is taken from “The Discovery of India. In this lesson the writer
points out that Indians have different personal appearances, languages, traditions and rituals depending on the regions they live in. But despite these differences,
they are Indians. They have a common chain of culture and patriotism among them. Indianism enable them to be united in the diversity of India.
पाठ का परिचय
पाठ का परिचय-प्रस्तुत पाठ जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है। यह भारत की खोज’ नामक पुस्तक से लिया गया है। प्रस्तुत पाठ में लेख यह बतलाता है कि भारत के लोगों की अपने-अपने निवासीय क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न आकृतियाँ, भाषाएँ, परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज है। किन्तु इन भिन्नताओं के बावजूद भी वे भारतीय हैं। उनमें संस्कृति और देशभक्ति को एक सूत्र में बांधा गया है। भारतीयता उन्हें भिन्नता में एकता में रहने योग्य बनाती है।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para1
Para1: भारत की विविधता महान है, यह स्पष्ट है: यह धरातल पर आधारित है और इसे हर कोई देख सकता है। इसका सम्बन्ध स्वयं भौतिक परिदृश्य तथा मानसिक आदतों तथा लक्षणों से है। बाहरी नजर से देखने में उत्तर-पश्चिम के पठान और सुदूर दक्षिण के तमिल में बहुत कम समानता है। उनकी नस्ल एक नहीं है. यद्यपि इनमें कुछ सामान्य गुण एक जैसे हो सकते हैं-वे चेहरे और बनावट, खानपान तथा वेशभूषा व स्वाभाविक रूप से भाषा में अलग हैं। उत्तर-पश्चिम सीमा पर पहले से ही मध्य एशिया का प्रभाव है और कश्मीर की तरह ही वहाँ के अनेक रीति-रिवाज हिमालय के उस पार के देशों की याद दिलाते हैं। पठानों के लोकप्रिय नृत्य अद्भुत प्रकार से रूस के कज्जाक नृत्य के समान हैं। इन सभी भिन्नताओं के बावजूद पठानों पर भारत का स्पष्ट प्रभाव है जितना कि तमिलों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। यह आश्चर्यजनक बात नहीं है क्योंकि ये सीमावर्ती क्षेत्र तथा वास्तव में अफगानिस्तान भी हजारों वर्षों तक भारत से जुड़े रहे हैं। प्राचीन तुर्की तथा अन्य जातियाँ जो अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के भागों में निवास करती थीं, इस्लाम धर्म के आने से पहले अधिकांश रूप से बौद्ध धर्म की
मानने वाली थी और उससे भी पहले, महाकाव्य काल में हिन्दू धर्म की मानने वाली थीं।
सीमान्त क्षेत्र,पुरानी सभ्यता के मुख्य केन्द्रों में से एक था। वहाँ अब भी स्मारकों और मठों के अनेक खण्डहर हैं. विशेष रूप से विख्यात विश्वविद्यालय तक्षशिला के अवशेष पाये जाते हैं जो दो हजार वर्ष पहले अपनी प्रसिद्धि की चरम सीमा पर था और सारे भारत तथा एशिया के विभिन्न भागों से विद्यार्थियों को आकर्षित करता था। धर्म के परिवर्तन ने कुछ अन्तर अवश्य उत्पन्न किया लेकिन वे उन मानसिक पष्ठभूमियों को पूरा
तरह नहीं बदल सके जो उन क्षेत्रों के लोगों में विकसित हो गई थीं।
Para 2
Para2: पठान और तमिल देश के दी सिरों पर स्थित लोगों के उदाहरण हैं। दूसरी जातियाँ इन सुदूरवर्ती किनारों के बीच में स्थित हैं। उन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं किन्तु उन सभी में इससे भी अधिक भारतीयता की छाप है। हमें यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि किस प्रकार बंगालियो. मराठों, गुजरातियों, तमिलों, आन्धवासियों, उड़ीसावासियों, असमियों, कन्नड़ों, मलयालियों, सिन्धिया पंजाबियों, पठानों, कश्मीरियों, राजपूतों और हिन्दी-भाषियों के विशाल केन्द्रीय समूह ने सैकड़ों वर्षों तक
अपने विशेष गुणों को बनाए रखा है, अब भी कम-ज्यादा वही गुण या कमियाँ उनमें मौजूद हैं जिनका । हमें प्राचीन परम्पराओं अथवा अभिलेखों से पता चलता है और फिर भी इन सभी गुणों में वे स्पष्ट रूप से
उसी राष्ट्रीय विरासत व नैतिक व मानसिक गुणों को अपनाते हए भारतीय बने रहे हैं। इस विरासत के साथ कुछ सजीव एव गतिमान तत्व मौजूद थे जो रहन-सहन और जीवन के प्रति दार्शनिक भाव में प्रकटbहोते थे। प्राचीन चीन की तरह भारत भी स्वयं में एक संसार था. उनकी एक संस्कृति और सभ्यता थी जिसने सभी बातों को एक स्वरूप दिया। विदेशी प्रभाव आते रहे और उनकी संस्कृति को प्रभावित करते रहे तथा उसी में विलीन हो गए। विघटनकारी विचारधाराओं ने शीघ्र ही शोषित करने के प्रयास को जन्म
दिया । सभ्यता के आरम्भ से ही किसी न किसी प्रकार की एकता का स्वप्न भारत के मन में मौजूद रहा है।
वह एकता बाहर से लादी गई किसी वस्तु जैसी नहीं सोची गई थी और न वह बाहरी तत्वों अथवा विदेशी विश्वासों का प्रमाण थी। यह एकता इन सबसे अधिक गहरी कोई चीज थी और इसके दायरे में विश्वास तथा रीति-रिवाजों की अत्यधिक सहनशीलता प्रयोग की जाती थी तथा प्रत्येक मिग्मता को
अंगीकार किया गया तथा उसे प्रोत्साहन भी दिया गया।
Para 3
Para 3 : एक राष्ट्रीय संवर्ग में भी, चाहे वह कितना ही एकता में बँधा हुआ हो, छोटे-बड़े मतभद हमेशा देखने को मिलते हैं। उस वर्ग की मौलिक एकता तब स्पष्ट दिखाई देती है जब उसकी तुलना किसी अन्य राष्ट्रीय संवर्ग से की जाती है, यद्यपि दो आस-पड़ोस के क्षेत्रों के भेद कमजोर हो जाते है या
आपस में मिल जाते हैं और आधुनिक उन्नति सभी स्थानों पर एक विशेष प्रकार की एकाग्रता स्थापित करती है। प्राचीन तथा मध्यकाल में, आधुनिक राष्ट्र का विचार उत्पन्न नहीं हुआ था। सामन्सशाही, धार्मिक, जातीय या सांस्कृतिक बन्धनों को अधिक महत्व प्राप्त था। फिर भी मेरे विधार से लिखित इतिहास में किसी भी समय कोई भी भारतवासी भारत के किसी भी भाग में कम या अधिक अपने घर जैसी सुख-सुविधा अनुभव करता होगा तथा किसी दूसरे देश में स्वयं को अपरिचित था विदेशी अनुभव करता
होगा। जिन देशों ने आंशिक रूप से उसकी संस्कृति या धर्म को अपना लिया होगा वहाँ वह स्वयं को कम अजनवी महसूस करता होगा। उसने निश्चय ही उन देशों में स्वयं को कम अजनबी अनुभव किया होगा
जिन्होंने आंशिक रूप से उसकी संस्कृति या धर्म को अपना लिया हो। जो लोग भारत से बाहर उत्पन्न होने वाले धर्म को मानते थे जैस-ईसाई, यहूदी, पारसी. मुसलमान और भारत में आकर यहाँ बस गये, वे कुछ पीदियों से स्पष्टतः भारतीय बन गए जो भारतवासी इनमें से कुछ इन धर्मों में चले गए वे भी धर्म परिवर्तन के बावजूद हमेशा भारतवासी ही बने रहे। वे सब अन्य देशों में भारतवासी तथा विदेशी समझे जाते थे, चाहे दोनों के बीच धर्म समान रहा हो।
Para 4
Para4: आज जबकि राष्ट्रीयता की भावना बहुत अधिक विकसित हो गई है, विदेशों में रहने वाले भारतीयों का एक राष्ट्रीय समुदाय बन जाता है और वे अपने आन्तरिक मतभेदों के होते हुए भी विभिन्न उद्देश्यों के लिए एक साथ रहते हैं। भारतीय ईसाई एक भारतीय ही माना जाता है, चाहे वह कहीं भी चला जाए। एक भारतीय मुसलमान तुकी, सऊदी अरब, ईरान या किसी अन्य देश में, जहाँ इस्लाम मुख्य धर्म है, एक भारतीय ही माना जाता है।
Para 5
Para5:मैं स्वीकार करता हूँ कि हम सभी के मन में अपनी मातृभूमि के अलग-अलग चित्र हैं तथा कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल एक जैसा नहीं सोचेंगे। जब मैं भारत के विषय में सोचता हूँ तो मैं अनेक बातों के बारे में सोचता हैं। विस्तृत मैदानों के बारे में जिनमें असंख्य छोटे-छोटे गाँव बसे हैं। उन कस्बों
और मगरों के विषय में, जिनको मैं देखने गया हूँ, वर्षा ऋतु के जादू के बारे में जो सुखी झुलसी हुई जमीन में जीवन डाल देती है और उसे अचानक सुन्दरता द हरियाली के चमकीले विस्तृत क्षेत्र में परिवर्तित कर देती है, विस्तृत नदियों और बहते हुए पानी के विषय में, ठण्डे और नीरस वातावरण वाले खैबर दर्रे के बारे में, भारत के दक्षिणी क्षेत्र के बारे में, लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक आचरण के बारे में, और सबसे बढ़कर बर्फ से ढके हिमालय के बारे में, या वसन्त ऋतु में नवीन पुष्पों से ढकी हुई
कश्मीर की किसी पर्वतीय घाटी के बारे में, जिसमें होकर कलकल की ध्वनि करता हुआ कोई झरना बह रहा हो। हम अपनी पसन्द के चित्र बनाते हैं और उन्हें मन में स्थापित किए रहते हैं। और इसीलिए मैंने उष्ण और उप उष्ण कटिबन्धीय देश के अधिक सामान्य चित्र की अपेक्षा इस पर्वतीय पृष्ठभमि का चनाव किया है। दोनों चित्र उचित हैं क्योंकि भारत उष्ण कटिबन्ध से लेकर समशीतोष्ण प्रदेशों तक अर्थात भूमध्य रेखा के निकट गर्म स्थलों से एशिया के ठण्डे क्षेत्रों तक फैला हुआ है।
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