विविधा भवानी प्रसाद मिश्र – परिचय – बूंद टपकी एक नभ से |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Subject | Sahityik Hindi |
Class | 12th |
हिन्दी पद्य- | विविधा भवानी प्रसाद मिश्र – बूंद टपकी एक नभ से |
Chapter | 11 |
Categories | Sahityik Hindi Class 12th |
website Name | upboarmaster.com |
संक्षिप्त परिचय
नाम | भवानी प्रसाद मिश्र |
जन्म | 1914 ई. में होशंगाबाद जिले के हिगरिया ग्राम |
पिता का नाम | श्री सीताराम मिश्र |
माता का नाम | श्रीमती गोमती देवी |
शिक्षा | बी.ए |
कृतियाँ | गीत-फरोश, अँधेरी कविताएँ, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, मानसरोवर |
उपलब्धियाँ | आकाशवाणी के मुम्बई केन्द्र में हिन्दी विभाग के प्रधान पद से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने ‘सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय’ का सम्पादन किया। |
मृत्यु | 1985 ई. |
जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
प्रयोगशील एवं नई कविता के सशक्त कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, 1914 को होशंगाबाद जिले के रखा’ तट पर बसे ‘टिगरिया’ नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सीताराम मिश्र तथा माता का नाम श्रीमती देवी था। जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज से बी.ए. करने के बाद वर्ष 1942 के आन्दोलन में तीन वर्ष के लिए जेल गए। जेल में ही इन्होंने बांग्ला भाषा का अध्ययन किया। आकाशवाणी के मुम्बई केन्द्र में हिन्दी विभाग के प्रधान पद से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने ‘सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय’ का सम्पादन किया। 1985 ई. में इन्होंने इस संसार से विदा ली।
साहित्यिक गतिविधियाँ
इनकी रचनाओं पर गाँधी-दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। चिन्तनशीलता इनकी रचनाओं की एक प्रमुख विशिष्टता है। इन्होंने जीवन से जुड़ी गहरी विडम्बनाओं एवं विसंगतियों को सरल शैली में चित्रित किया
है। प्रकृति सौन्दर्य चित्रण में इनका मन बहुत रमता था। इनकी कविताओं में वैयक्तिता एवं आत्मानुभूति के स्वर भी मुखरित हुए है।
कृतियाँ
अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ में शमिल होने से इनकी रचनाओं से पहली बार पाठक परिचित हुए। इसके अतिरिक्त इनकी प्रमुख रचनाएँ-गीत-फरोश, चकित है दुःख, अँधेरी कविताएँ, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, मानसरोवर दिन, कालजयी आदि हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
- प्रेम की एक पक्षीयता के दर्शन मिश्र जी की कविता में प्रेम की एक पक्षीयता के दर्शन होते हैं। उसमें आकुलता, आँसू और अभाव की चर्चा अधिक हुई है।
- मानववादी कलाकार मिश्र जी एक मानववादी कलाकार हैं। मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा उनका अभीष्ठ है। मानववादी भावना उनके काव्य में सर्वत्र समाहित है, चाहे कवि प्रकृति की दृश्यावली में डूबा हो या विशेष मनःस्थिति में आत्मस्थ हो गया हो।
- प्रगतिशील चेतना मिश्र जी के काव्य में प्रगतिशील चेतना के भी दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी प्रगतिशील चेतना से पूँजीपतियों, सामन्तों और शासकों के अत्याचारों का सजीव वर्णन किया है।
- प्रकृति चित्रण मिश्र जी प्रकृति के कवि हैं। इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य के चित्र इतनी गहराई से ओर सजीवता से उभारे हैं कि उनमें प्रकृति, मोहक और यथार्थ रूप में साकार हो उठी है।
- गाँधीवादी विचारधारा गाँधी दर्शन अनुभूति के स्तर पर उनके विचारों में घुलमिल कर उनके काव्य में प्रकट हुआ है। उन्होंने अपने ‘गाँधी पंचशती’ कविता संग्रह में अपनी गाँधीवादी विचारधारा का भव्य परिचय दिया है।।
कला पक्ष
- भाषा मिश्र जी की भाषा सहज, सरल, बोधगम्य और स्वाभाविक बन पड़ी है। इन्होंने स्वयं को संस्कृत की तत्सम शब्दावली से बचाकर सामान्य भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।
- शैली मिश्र जी की भाषा की तरह ही शैली भी सरल, सहज और।
प्रवाहमय है। - बिम्ब एवं प्रतीक योजना मिश्र जी ने अपने व्यक्तित्व अनुभूति और आस्था के सन्दर्भ में प्रतीकों का प्रयोग किया है, इसके साथ ही अपनी कविता में विविध प्रकार के बिम्बों को भी अपनाया है।
- अलंकार एवं छन्द मिश्र जी ने अपने काव्य में अलंकारों का सरल, सहज और स्वाभाविक प्रयोग किया है। अलंकारों का छलीरूप मिश्र जी को मोहित नहीं कर सका। प्रयोगवादी प्रवृत्ति के कारण इन्होंने अधिकांश रूप से छन्द मुक्त कविताएँ लिखी हैं, परन्तु उनमें लय और ध्वन्यात्मकता का पूर्ण ध्यान रखा है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
प्रयोगवादी कवियों में भवानी प्रसाद मिश्र एक प्रख्यात कवि के रूप में जान। जाते हैं। प्रयोगवादी एवं नई कविता की काव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि के रूप में। इन्हें अत्यधिक सम्मान प्राप्त है।
पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या
बूंद टपकी एक नभ से
- बूंद टपकी एक नभ से, किसी ने झुककर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो, हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो,
ठगा सा कोई किसी की आँख देखे रह गया हो,
उस बहुत से रूप को, रोमांच रोके सह गया हो।
शब्दार्थ झरोखा-रोशनदान, खिड़की; कस-बाँधना; रोमांच-पुलका
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘दूसरा सप्तक’ में ‘बूंद टपकी एक नभ से’ शीर्षक । कविता से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने आकाश से बूंद के टपकने जैसी सामान्य-सी प्राकृतिक घटना को अनेक उपमानों के माध्यम से व्यक्त किया है।
व्याख्या कवि को आकाश से टपकी बूंद प्रणय विभोर होकर झरोखे से एक झलक दिखाकर छिप जाने वाली प्रेमिका की छवि जैसी लगती है अर्थात् कवि को ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी प्रेयसी ने झरोखे से झाँकते हुए हँस दिया हो और उसने अपनी हँसती हुई आँख से प्रेमी को स्नेह-सूत्र में बाँध दिया हो। कहने का तात्पर्य यह है कि आकाश से टपकी बँद प्रेयसी के रूप में जब प्रेमी पर गिरती है, तो उसे लगता है जैसे उसने उसे अपनी ओर आकर्षित कर अपने बाहुपाश में बाँध दिया हो। आगे कवि कहता है-आकाश से टपकती हुई वह बूँद ऐसी लगी, जैसे प्रणय। भाव से युक्त प्रेयसी की आँखों को देखकर कोई पथिक ठगा-सा रह गया है और अपनी प्रेमानुभूतियों पर अंकुश लगाकर प्रेयसी के उस अनुपम सौन्दर्य को देखकर उत्पन्न हुए प्रणय के भाव को सहन कर लिया हो।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(1) बूंद के माध्यम से प्रेमिका के द्वारा चित्त को आकर्षित करने के लिए किए। जाने वाले व भावों की अभिव्यक्ति की है।
(ii) रस शृंगार
कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली
शैली चित्रात्मक एवं वर्णनात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद और माधुर्य शब्द शक्ति लक्षणा
- 2 बूंद टपकी एक नभ से, और जैसे पथिक
छू मुस्कान, चौंके और घूमे आँख उसकी.
जिस तरह हँसती हुई-सी आँख चूमे,
उस तरह मैंने उठाई आँख : बादल फट गया था,
चन्द्र पर आता हुआ-सा अभ्र थोड़ा हट गया था।
शब्दार्थ नभ-आकाश, पथिक-राही (प्रेमी); अभ्र-बादल।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने आकाश से बूंद टपकने जैसी सामान्य सी प्राकतिक घटना को अनेक उपमानों से संजोया है।
व्याख्या कवि आकाश से टपकी एक बूंद को प्रेयसी/सुन्दरी की संज्ञा प्रदान करता हुआ कहता है कि आकाश से टपकती हुई बूंद ऐसी लगी मानो कोई पथिक किसी सुन्दरी की मुसकान को देखकर अचानक चौंक पड़े और उसकी दृष्टि उन मुसकराती हुई आँखों को देखने के लिए उसी ओर घूम पड़े अर्थात् पथिक सुन्दरी के रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उसकी ओर टकटकी लगाकर
देखता रहे। कवि आगे कहता है कि जिस प्रकार प्रेम के भावों से हँसती हुई आँखों का अनुभव किया जाता है। उसी प्रकार मैंने अपनी आँखें उठाई और आकाश की ओर देखा तो बादल फट गया था अर्थात् जब मैंने नायिका की ओर देखा तो उसके मुख पर पड़ा हुआ घूघट हट गया था और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो चन्द्रमा के ऊपर से बादल हट गया हो।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायक की नायिका के प्रति कोमल भावों की अभिव्यक्ति की है।
(ii) रस श्रृंगार
कला पक्ष
भाषा सरल, सरस खड़ीबोली शैली चित्रात्मक एवं वर्णनात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद और माधुर्य शब्द शक्ति लक्षणा
- 3 बूंद टपकी एक नभ से, ये कि जैसे आँख मिलते ही
झरोखा बन्द हो ले, और नूपुर ध्वनि, झमक कर,
जिस तरह द्रुत छन्द हो ले, उस तरह बादल सिमट कर
चन्द्र पर छाये अचानक, और पानी की हजारों बूंद,
तब आए अचानक।
शब्दार्थ नूपुर-ध्वनि घुघरुओं की आवाज़; द्रुत-तीव्र।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने आकाश से बँद के टपकने जैसी सामान्य-सी प्राकृतिक घटना को अनेक उपमानों के माध्यम से व्यक्त किया है।
व्याख्या कवि आकाश से टपकी बूंद का वर्णन करता हुआ कहता है कि आकाश से टपकती हुई वह बूँद ऐसी प्रतीत हुई मानों नायिका ने अपना लज्जा रूपी घूघट हटा के कवि से आँखें मिलाई हों, किन्तु पुनः उसने कवि को देखते ही लज्जा का अनुभव करके अपना घूघट वापस ढक लिया और कवि को नायिका के मुख का सुन्दर झरोखा (नजारा) अर्थात् उसके रूप-सौन्दर्य के दर्शन होने बन्द हो गए। इसके साथ ही घुघरुओं की आवाज़ तीव्र गतिवाले छन्द की भाँति
तेज हो गई। तभी बादल सिमटकर अचानक चन्द्रमा पर छा गए और हजारों पानी की बूंदें धरती पर गिरने लगीं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) बूंद के टपकने के अनेकानेक बिम्ब इस गीत में प्रस्तुत किए गए हैं और वे सभी पाठक को सहज रूप से मुग्ध कर लेते हैं।
(ii) रस शृंगार
कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली
शैली चित्रात्मक एवं वर्णनात्मक
छन्द मुक्त अलंकार उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद और माधुर्य शब्द शक्ति लक्षणा
पद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तर
बूंद टपकी एक नभ से
- बूंद टपकी एक नभ से, किसी ने झुककर झरोखे से
कि जैसे हँस दिया हो, हँस रही-सी आँख ने जैसे
किसी को कस दिया हो, ठगा-सा कोई किसी की आँख
देखे रह गया हो, उस बहुत से रूप को,
रोमांच रोके सह गया हो। बूंद टपकी एक नभ से,
और जैसे पथिक छू मुस्कान, चौंके और घूमे आँख उसकी,
जिस तरह हँसती हुई-सी आँख चूमे,
उस तरह मैंने उठाई आँख : बादल फट गया था,
चन्द्र पर आता हुआ-सा अभ्र थोड़ा हट गया था।
उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से अवतरित हैं तथा उसके रचनाकार कौन
उत्तर प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘दूसरा सप्तक’ काव्य संग्रह में संकलित कविता ‘बूंद टपकी एक नभ से’ से अवतरित हैं तथा इसके रचनाकार ‘भवानीप्रसाद मिश्र’ जी
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बँद के माध्यम से प्रेमिका के द्वारा चित्त को आकर्षित करने के लिए किए जाने वाले भावों की अभिव्यक्ति की है। कवि ने इसके साथ ही आकाश में बूंद के टपकने जैसी सामान्य-सी प्राकृतिक घटना को अनेक उपमानों से व्यक्त किया है।
(iii) “हँस रही-सी आँख ने जैसे, किसी को कस दिया हो।”पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि आकाश से टपकी बूंद प्रेयसी के रूप में जब प्रेमी पर गिरती है, तो उसे लगता है जैसे उसने उसे अपनी ओर आकर्षित कर अपने बहुपाश में बाँध दिया हो।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जब नायिका की ओर देखा तब क्या हुआ था?
उत्तर कवि ने जब अपनी आँखें उठाई और आकाश की ओर देखा तो बादल फट । गया था अर्थात जब उन्होंने नायिका की ओर देखा तो उसके मुख पर पड़ा हुआ यूँघट हट गया था और ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो चन्द्रमा के ऊपर से बादल हट गए हों। यहाँ चन्द्रमा को नायिका के तथा घुघट को बादल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में उपमा, उत्प्रेक्ष एवं अनुप्रास अलंकार हैं।