UP Board syllabus Chapter 6 Class 12th WOMEN’S EDUCATION |
Board | UP Board |
Text book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | English |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter name | WOMEN’S EDUCATION |
Chapter Number | Number 1 Introduction |
Category | English PROSE Class 12th |
UP Board Syllabus Chapter 6 Class 12th English (Prose) |
Introduction to the lesson
Introduction to the lesson : This lesson has been written by Dr. S. Radhakrishnan, the former President of India. He was a great philosopher. statesman and effective speaker. This lesson has been selected from his book ‘True Knowledge’ According to the author the education of women is very necessary in India. He advocates a change in the education system. Our education should not only be broad but should also be deep. Compassion is a characteristic of women. Our great classics should be studied. The author wants that women should enjoy
the same status as they used to enjoy in ancient India.
पाठ का परिचय
पाठ का परिचय : प्रस्तुत पाठ डा एस. राधाकृष्णन, पूर्व राष्ट्रपति भारत, द्वारा लिखित है। वे एक महान दार्शनिक, राजनीतिक तथा प्रभावशाली वक्ता थे। यह पाठ उनकी पुस्तक ‘True Knowledge’ से चयनित है। लेखक के अनुसार भारत की स्त्रियों की शिक्षा परम आवश्यक है। वे शिक्षा में परिवर्तन की वकालत करते हैं। हमारी शिक्षा केवल विस्तृत ही नहीं होनी चाहिए बल्कि गहराई वाली भी होनी चाहिए। दया स्त्रियों का चारित्रिक गुण है। अपने महाकाव्य पढ़े जाने चाहिए। लेएक की इच्छा है कि स्त्रियों को वही दर्जा प्राप्त होना चाहिए जैसा कि उन्हें प्राचीन भारत में प्राप्त था।
पाठ का हिन्दी अनुवाद
Para l
Para l: आप लोग एक ऐसे युग में रह रहे हैं जिसमें स्त्रियों के लिए सामाजिक कार्य, सार्वजनिक जीवन तथा प्रशासन के लिए महान अवसर हैं। समाज को अनुशासित मस्तिष्क तथा मर्यादित आचरण वाली स्त्रियों की आवश्यकता है। आप जिस प्रकार का भी कार्य अपनाएँ, उसे ईमानदारी और अनुशासित मस्तिष्क से करें। तब आपको सफलता और अपने कार्य का आनन्द प्राप्त होगा।
Para 2
Para 2 : वास्तव में हमारे देश में, जहाँ तक लड़कियों की शिक्षा का सम्बन्ध है, पर्याप्त रूप से प्रसारित नहीं है। अतः प्रत्येक संस्था, जो लड़कियों की शिक्षा के लिए योगदान करती है, मान्यता और प्रोत्साहन पाने योग्य है। लेकिन मेरी तीव्र इच्छा है कि लड़कियों को जिस प्रकार की शिक्षा दी जाये वह केवल विस्तृत ही न हो बल्कि गहराई वाली भी हो। हमारी शिक्षा में गहराई की कमी है। हम विद्वान और कुशल हो सकते हैं, किन्तु यदि हमारे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है तो हमारा जीवन, अन्धा, दोषपूर्ण और कटू बन जाता है। गीता कहती है : व्यवसायनिक बुद्धिरिकेह । अर्थात निश्चयात्मक बुद्धि एक ही है। वास्तव में सुसंस्कृत मस्तिष्क, मस्तिष्क में एकाग्रता और उस एकमात्र उद्देश्य के प्रति समर्पण होना है। संस्कतिन मस्तिष्क के लिए समस्त जीवन अनेक दिशाओं में बिखरा रहता है- एक साथ विभिन्न उोच लिए हए और असीमित । अतः यह आवश्यक है कि जो शिक्षा आप इन संस्थाओं में प्राप्त करें वह आपको केवल ज्ञान तथा कुशलता ही नहीं दे बल्कि जीवन में एक निश्चित उद्देश्य भी प्रदान करे। यह
उद्देश्य क्या हो-इसे आपको स्वयं निश्चित करना होगा। कहा जाता है कि विद्या विवेक देती है, विमर्शरूपिणी विद्या आपको उचित का ज्ञान देती है और गलत कार्यों से बचने में सहायता करती है। अतः
आपको यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि इस पीढ़ी में आपसे किस चीज की अपेक्षा की जाती है। बह उद्देश्य जो शताब्दियों पहले उचित था आज हमारे देश तथा विश्व की बदली हुई परिस्थितियों को
देखकर उचित नहीं हो सकता। अतः जो उद्देश्य आप अपने जीवन में चुनें, वह वर्तमान पीढ़ी की समयानुसार आवश्यकताओं के अनुकूल होना चाहिए।
Para 3
Para3: प्रत्येक बार हम कोई भी कार्य प्रारम्भ करते समय ईश्वर की प्रार्थना करते हैं और शान्ति, शान्ति, शान्ति कहकर समाप्त करते हैं। शिक्षकों और विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है कि वे एक-दूसरे के प्रति घृणा से बचें।
Para 4
Para4: दया वह गुण है जो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की मुख्य विशेषता है। कुछ समय पहले मन एक पुस्तक पदी थी जिसमें नारी के पतन की चर्चा की गई थी। उसमें लिख था कि नारी का पतन
इसलिए हुआ है क्योंकि इसमें दया की मात्रा में कमी आई है। दूसरे शब्दों में, स्त्री का स्वाभाविक गुण दया है। यदि आप में क्या नहीं है तो आप मानव ही नहीं हैं। अतः प्रत्येक मानव के लिए विचारशीलता, वया और सहानुभूति के गुण का विकास करना अति आवश्यक है। इन गुणों के बिना हम केवल नर पशु हैं, इससे अधिक नहीं।
Para 5
Para5: एक प्रसिद्ध श्लोक है जिसमें बताया गया है कि संसार एक विषवृक्ष है। इस अपूर्ण संसार में दो फल अनुकरण करने वाले गुण युक्त हैं। वे हैं हमारे महान ग्रन्थों का अध्ययन और महान विचारकों से विचार-विमर्श ये ही दो बातें हैं जो मनुष्य के मस्तिष्क और हृदय को अच्छा बना सकती हैं।
मेरी तीव्र इच्छा है कि हमें अपने महान ग्रन्थों का और अन्य सभी देशों के महान ग्रन्थों का भी, जो हमें विरासत में मिले हैं, का अध्ययन करना चाहिए। उपनिषद् के एक छोटे सम्वाद में एक प्रश्न पूछा गया है: ‘अच्छे जीवन का सार क्या है ? शिक्षक उत्तर देता है : ‘क्या आपने उत्तर नहीं सुना ?’ तालियों की बिजली जैसी गर्जना हुई :दा दा दा। तुरन्त शिक्षक ने स्पष्ट किया कि ये थे अच्छे जीवन के सार-दम, दान, दया। अच्छा ये ही अच्छे जीवन के आवश्यक तत्व हैं। आप में दम (संयम) होना चाहिए जो मानव की पहचान है। रामायण में जब लक्ष्मण वन जाने के लिए विदा होते हैं तो उनकी माता उनसे कहती हैं
‘राम को अपने पिता दशरथ जैसा मानना, सीता को मेरे जैसा (माँ) मानना, वन को अयोध्या जैसा मानना; जाओ मेरे प्रिय पुत्र जाओ।’
Para 6
Para 6 : हमारे महान ग्रन्थों में अनेक प्रेरणाप्रद गाथाएँ हैं जो हमारे भीतर उच्च नैतिक शक्ति का संचार करेंगी और हमारे लिए वे नियम निर्धारित करेंगी जिन पर हमें आचरण करना है। हमें अच्छी नारियाँ दो, हमारी सभ्यता महान हो जाएगी। हमें अच्छी माताएँ दो, राष्ट्र महान हो जाएगा।
Para 7
Para7: जब आप शिक्षा के बारे में बात करते हैं, तो आपके मन में कई लक्ष्य होते हैं। जिन लोगों को शिक्षा दी जाती है उन्हें उस संसार का ज्ञान दो जिसमें वे रहते हैं-विज्ञान, इतिहास और भूगोल आपको वह ज्ञान प्राप्त कराते हैं। आप लोगों को कोई तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने का प्रशिक्षण भी दें
जिससे वे जीविका चला सकें। अब भी संसार में शिक्षा के ये ही लक्ष्य स्वीकार किए जाते हैं : उस संसार का ज्ञान जिसमें रहते हो और तकनीकी योग्यता जिससे जीविका चला सको। परन्तु हमारे देश की संस्थाओं में जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है उसकी विशेषता क्या है ? हमने सुना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल योग्यता या ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि एक उच्चतर जीवन में प्रवेश करना भी है.nउस संसार में प्रवेश जो स्थान और समय से ऊपर है, यद्यपि बाद वाला संसार पहले वाले संसार को
प्रकाशित और प्रेरित करता है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य यही रहा है। कुछ शताब्दियों तक हमने अपनी नारियों की उपेक्षा की। लेकिन हमारी परम्परा इससे कुछ अलग रही है-
पुरा कल्पेषु नारीनाम्.
मन्दिरा वंदना निश्चितः,
अध्यापनांच वेदानाम्
गायत्री वाचनाम् तथा।
(अर्थात् प्राचीनकाल में नारियों द्वारा मन्दिर में पूजा करना, वेदों का पठन-पाठन करना तथा गायत्री का मन्त्रोच्चारण करना स्वीकृत था।)
Para 8
Para8: प्राचीनकाल में हमारी नारियों का उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार होता था। उन्हें वेदों के अध्ययन का अधिकार था। उन्हें गायत्री मन्त्र के जाप का भी अधिकार था। ये सब कार्य हमारी नारियों के लिए मान्य थे। किन्तु हमारी सभ्यता पतन की ओर चली गई और उस पतन का एक मुख्य कारण
स्त्रियों की पराधीनता है।
Para 9
Para9: स्वतन्त्रता के पश्चात् महात्मा गान्धी के अथक प्रयासों के कारण हमारे देश में एक क्रान्ति हुई है और स्त्रियाँ अपने अधिकार पाने लगी हैं।।
UP Board Syllabus Chapter 6 Class 12th English (Prose) |
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